Book Title: Geeta Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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बुद्धिम् (बुद्धि) 2/1. निवेशय (नि-विश्+निवेशय) प्रे. प्राज्ञा 2/1 सक. निवसिष्यसि (नि-वस्) भवि 2/1 अक. मन्येव [(मयि) + (एव)] मयि (अस्मद्) 7/1 स. एव (म)=ही. प्रत उध्वं न [(प्रत ऊध्वंम्) + (न)] प्रतऊर्ध्वम् (प्र)= इसके पश्चात् न (प्र) =नहीं.
संशय (संशय) 1/1 133. अथ (अ)=यदि. चित्तं समाषातुं न [(चित्तम्) + (समाधातुम्) +
(न)] चित्तम् (चित्त) 2/1. समाषातुम् (समा-धा) हेकृ. न (अं)= नहीं. शक्नोषि (शक्) व 2|| सक मयि (अस्मद्) 7/1 स्थिरम् (स्थिर) 2/1 वि. अभ्यासयोगेन [(अभ्यास)-(योग) 3/1] ततो मामिच्छाप्तुं धनंजय [(ततः) + (माम्) + (इच्छ) + (पाप्तुम) + (धनंजय)] ततः (म)=तो. माम् (अस्मद्) 2/1 स. इच्छ (इष्)
आज्ञा 2|| सक. प्राप्तुम् (प्राप्) हेकृ. धनंजय (धनंजय) 8/1. 134. अभ्यासेप्यसमर्थोऽसि [(प्रभ्यासे) + (पि) + (असमर्थः) + (प्रति )]
अभ्यासे (अभ्यास) 7/1. पि2 (अ) = भी. असमर्थः (असमर्थ) 1/1 वि. असि (प्रस्) व 2/1 अक. मत्कर्मपरमो भव [(मत्कर्म) + (परमः) + (भव)] [(मत्कर्मन्+मत्कर्म)-(परम) 1|| वि] भव (भू) प्राज्ञा 2/1 अक. मदर्थमपि [(मदर्थम्)+(अपि)] मदर्थम् (अ)=मेरे लिए. अपि (अ)= भी. कर्माणि (कर्मन्) 2/3. कुर्वन्सिहिमवाप्स्यसि [(कुर्वन्) + (सिद्धिम्) + (प्रवाप्स्यसि)] कुर्वन् (कृ+ कुर्वत) व 1/1. सिद्धिम् (सिद्धि) 2/1. अवाप्स्यसि (अव-प्राप्)
भवि 2/1 सक. 1. स्थिर (वि)=श्रद्धालु 2. पि-अपि (कई बार '' का लोप हो जाता है।)
माप्टे : हिन्दी-संस्कृत कोश ।
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[114
गोता
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