Book Title: Geeta Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 155
________________ (दा) व 1/1 सक. ते (युष्मद्) 4/1 स. चक्षुः (चक्षुस्) 2/1 पश्य (दृश्) प्राज्ञा 2/1 सक मे (अस्मद्) 6/1 स योगमेश्वरम् [(योगम्) + (ऐश्वरम्)] योगम् (योग) 2/1. ऐश्वरम् (ऐश्वर) 2/1. 123. विवि (दिव्) 7/1 सूर्यसहस्रस्य [(सूर्य) - (सहस्र) 6/1] भवेद्य ग पत्थिता [(भवेत) + (युगपत्)+(उत्थिता)] भवेत् (भू) विधि 3/1 प्रक. युगपत् (म)= एक ही समय. उत्थिता (उद्-स्था--उद्-स्थित स्त्री उत्थित-+उत्थिता) भूकृ 1/1. यदि (प्र)=यदि भाः (भास्) 1/1 - स्त्री सद्दशी (सदृश+सहशी) 1/1 वि स (तत्) 1/1 सवि स्याभासस्तस्य [(स्यात्) + (भासः) + (तस्य)] स्यात् (प्र) =शायद. भासः (भास्1) 6/1. तस्य (तत्) 6/1 स. महात्मनः (महात्मन्) 6/1. 124. स्वमक्षरं परमं वेदितव्यं त्वमस्य [(त्वम्) + (अक्षरम्) + (परमम्) + (वेदितव्यम्) +(त्वम्) + (अस्य)] त्वम् (युष्मद्) 1/1 स. अक्षरम् (अक्षर) 1/1 वि. परमम् (परम) 1/1 वि. वेदितव्यम् (विद्) विधि कृ 1/1. त्वम् (युष्मद्) 1/1 स. अस्य (इदम्) 6/1 स. विश्वस्य 6/1 परं निषानम् [(परम्)+ (निधानम्)] परम् (पर) 1/1 वि. निधानम् (निधान) 1/1. त्वमव्ययः ] (त्वम्) + (अव्ययः)] त्वम् (युष्मद्) 1/1 स. अव्ययः (अव्यय) 1/1 वि. शाश्वतधर्मगोप्ता [(शाश्वत) वि-(धर्म)-(गोप्तृ) 1/1 वि] सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे [(सनातनः) + (त्वम्) + (पुरुषः)+ (मतः)+(म)] सनातनः (सनातन) 1/1 वि. त्वम् (युष्मद्) 1/1 स. पुरुषः (पुरुष) 1/1. मतः (मन्+मत) भूकृ 1/1 मे (प्रस्मद्) 6/1 स. 1. 'भास्' (स्त्रीलिंग)मामा 2. कृदन्त (मतः) के योग में कर्ता (अस्मद्) में षष्ठी 110 ] गीता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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