Book Title: Epigraphia Indica Vol 08
Author(s): E Hultzsch
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 286
________________ No. 25.] TWO PRAKRIT POEMS AT DHAR. सुत्यं भुषणं पि कयं संका धरणीए तह समुहरिया | किं किन किन विहियं कुम्म तर एत्थ जाए ॥ ४८ ॥ खेभो सोक्खव्महिओ भारुव्वहणे विहार कुम्मस्म । गरुथाण वयसिभायं को मन्मं जाणिडं तरह ॥५०॥ भुषणभरुव्वहपेण वि अर्थ सो विहार कमा । [21] जं रुच्च तं सुहयं परियते काले के सी हु खणो एक्को चित्र धवा सि कच्छवि तुमं तह विहरे जेण तहा जयस्तसत्ती समुप्पुसिभा ॥५३॥ उभयारो गणियाणं जो वि हु सो वि [22] हु कुणेद्र इह लोए । [ग] वि उभयरिचं कुम्मेण परं एष हु जाबो सो विश्व वुश्चद्द जन्मो सहलो हु. तस्स एक्का 1 जस्म सरिच्छो भुषणे न य जाओ नेत्र जम्मिहि ॥ ५५ ॥ जमप्फली जम्मी जो जायरी हो किन्तेय | परभयरणा कए जो जमो सो फलनो [23] पोटभरणा कन्ने [जे जा]या ते सुभा हु तम्मि खणे । पर अयरणस्स कर जाणं जम्रो हु ते धना ॥५७॥ कमढव तं सि जाओ जाएहिम्बि एत्य किं थ अवेहिं । ਨ किं पि जेण विहित्रं प्रवाण मणे न जम्नाइ ॥ ५८ ॥ कमडवर किं भचित यो जम्रो तुम एक परउभयरण क [24] ए अप्पा जेणं तहा खविओो ॥५८॥ निधउपयरचा कए सतो पण पायरं कुणा । वत्थू परभयरणं अप्पा कुम्म तय शेष विडियो 1 कश्च वि जो न दिट्ठो न य सो मणी पढमं चि कुम्मेगं ए 1 अवा हु गई न सो क्वा ॥ ५१॥ खणा न खणा न एत्थ उप्पना 1 जस्मिं कुम्मो समुप्पवो ॥५२॥ धवो जाची वि तुम सोपो । निसुधो नेम अणुहवं पत्तो । कवियो ॥३१॥ 8. is a blunder for, Gr. § 94. ५६. किन्ते is a blunder for किं तेण ५८. 'डिम्ब is wrong for f बि, Gr. 180, थ, Gr. ६०. तय= त्वया is wrong for त or तर, Gr. 9421. se. Instead of fan fan read faifai . ५०. Read अहिषी विहार = विभाति. तर, Ho. 4, 88. ५२. जयासत्ती = जयस्त असती .. जगतीऽशक्ति:; compare Gr. 5995, 173. with विहरे = विधुरे supply the locative अमि or नए = जगति समुप्पुसिया belongs to पुस, Ec. 4 105, and means lns been wiped off' .. 'has been removed.' 247 ५५. सहली = सफल : ५७. हु ते metri cawed for ते इ. 176. मधे Gr. 5 409. जनरis wrong for <t. मात्र. W, Gr. § 118. fret, Desin. 4, 27; Paiyal. 184

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