Book Title: Dwatrinshad Dwatrinshika
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Vijaylavanyasuri Granthmala
View full book text
________________ श्रीसिद्धसेनदिवाकरप्रणीला आक्रम्य पार्थिवसभा स विरोचमानः . शोकप्रजागरकृशान् द्विषतः करोति // 28 // किं गर्जितेन रिपुषु त्वभितो मुखेषु किन्त्वेव निर्दयविरूपितपौरुषेषु / वाग्दीपितं तृणकृशानुबलं हि तेजः ___ कल्पात्ययस्थिरविभूतिपराक्रमोत्थम् // 29 // किञ्चित् सुनीतमपि दुर्नयवद्विनेयं दुर्नीतमप्यतिशयोक्तमित्र प्रशस्यम् / सर्वत्र हि प्रतिनिविष्टमुखोत्तरस्य सूक्तं च दुर्विगणितं च समं समेन // 30 // तिर्यग् विलोकयति साध्वसविप्लुताक्षं श्लिष्टाक्षरं वदति वाक्यमसंभृतार्थम् / दृष्ट्वाऽऽहतः स्खलति विश्रुतकक्षमेकं कण्ठं मुहुः कषति चापि कथाभ्यरिष्टः // 31 // परिचितनयः स्फतार्थोऽपि श्रियं परिसंगतां न नृपतिरलं भोक्तुं कृत्स्नां कृशोपनिषदबलः / विहितसमयोऽप्येवं वाग्मी विनोपनिषक्रियां न तपति यथा विज्ञातारस्तथा कृतविग्रहाः // 32 // 8. अष्टमी वादद्वात्रिंशिका। प्रामान्तरोपगतयोरेकामिषसगजातमत्सरयोः / . स्यात् सौख्यमपि शुनोः भ्रात्रोरपि वदिनोर्न स्यात् // 1 //

Page Navigation
1 ... 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694