Book Title: Dwatrinshad Dwatrinshika
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Vijaylavanyasuri Granthmala
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________________ श्रीसिद्धसेनदिवाकरप्रणीता 613 ऐक्यादकर्ता पुरुषः कर्ताऽधिष्ठानशक्तितः / स्वातन्त्र्यादुपलब्धेश्च कार्यस्तु गुणभोजनात् // 8 // वैषम्यमात्रान्महतः कारणग्रामसंभवः / शब्दादयश्च व्योमादिविशेषास्तद्गुणात्मकाः // 9 // शब्दाद्यालोकसामर्थ्य श्रोत्रादीन्द्रियपश्चकम् / एतेनोक्ता विशेषाणां शब्दादिगुणभक्तयः / 10 // वाक्यादानगताऽऽनन्दत्यागान्यदुभयं विदुः / चैतन्यवद् देहवृत्तिः मनःसंवितसुखादयः // 11 // प्राणादाकरणग्रामवृत्तिर्जीवनसंज्ञिका / तदभिव्यक्तिरन्यत्र बुद्धयाशयवशाद् भवः // 12 // शरीरे धृति-संश्लेष-पक्ति-व्यूहावकाशतः / पृथिव्यादिसमारम्भः परिणामस्तु पूर्वयोः // 13 // श्रोत्रादीनां मनोवृत्तिः प्रतिपत्तिस्वयोगतः / शान्तादिविविधोदकः प्रत्ययार्थः प्रवर्तते // 14 // सिद्धिरीहितनिष्पत्तिस्तुष्टिस्तदेशवृत्तिता / अशक्तिः साधनादीनां वितथेष्टिविपर्ययः // 15 // पुरुवार्थप्रवृत्तीनां निवृत्तीनां स्वभावतः / आविस्तिरोभाववती को गुणानां प्रमास्यति // 16 // अनादिप्रचितं कर्म प्रलयान्त्यवपुर्मुखम् / प्रवृत्तौ तद्विधोपायं छिन्नवृक्षप्रमोदवत् // 17 // अनभिव्यक्तविद्यस्य विदुषस्तदभवाञ्चितम् / यथाविधोदयापायि प्रचितावपि संक्रमः // 18 //

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