Book Title: Dwatrinshad Dwatrinshika
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Vijaylavanyasuri Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 654
________________ 6.. दशमी द्वात्रिंशिका mmmmmmmmmmmmmmmm स्वशरीरमनोऽवस्थाः पश्यतः स्वेन चक्षुषा / यथैवाऽयं भवस्तद्वदतीतानागतावपि // 2 // किमत्राहं किमनहं किमनेकः किमेकधा / विदुषा चोद्यतं चक्षुरत्रैव च विनिश्चयः // 3 // मोहोऽहमस्मीत्याबन्धः शरीरज्ञानभक्तिषु / ममत्वविषयास्वादद्वेषात् तस्मात् तु कर्मणः // 4 // जन्मकमविशेषेभ्यो दुःखापातस्तदेव वा / आजनिकमपध्यानाद् नानात्मव्यक्तचक्षुषाम् // 5 // पिपासाऽभ्युदयः सर्वो भवोपादानसाधनः / प्रदोषापायापर्गमादातरौद्रे तु ते मते // 6 // आलम्बनपरोणामविशेषोद्भवभक्तयः / निमित्तमनयोराचं परिणामस्तु कारणम् // 7 // भवः प्रमादचिन्तादिप्रवृत्तिद्वारसंग्रहः / हिंसादिभेदोपचयः संवरैकपराभवः // 8 // परस्परसमुत्थानां विषयेन्द्रियसंविदः / पित्रादिवदभिन्नास्तु विषया भिन्नवृत्तयः // 9 // एकस्मिन् प्रत्ययेऽष्टाङ्गकर्मसामर्थ्यसंभवात् / नानात्वैकपरीणामसिद्धिरष्टौ तु शक्तितः // 10 // नाहमस्मीत्यसद्भावे दुःखोद्वेगहितैषिता / न नित्यानित्यनानैक्यं कायेकान्तपक्षतः // 11 // उत्पत्तरेव नित्यत्वमनित्यत्वं च गम्यते / प्रतीत्य संविभावस्तु कारकेष्वपनीयते // 12 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694