Book Title: Dwatrinshad Dwatrinshika
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Vijaylavanyasuri Granthmala
View full book text
________________ सिद्धसेनदिवाकरप्रणीता जाति-लिङ्ग-परिमाण-काल-व्यक्तिप्रयोजनाः / संज्ञा-मिथ्यापरा दृष्टाः परिक्षिण्यन्त्यचेतसः // 13 // यथार्थ वा स्यात् संबन्धः शब्दादीन्द्रियचेतसाम् / तदस्य जगतः सत्त्वमात्मप्रत्ययलक्षणम् // 14 // द्रव्य-पर्यायसंकल्पश्चेतस्तव्यञ्जकं वचः / तद् यथा यत्र यावच्च निरवयेति योजना // 15 // निषेकादिजरापाकपर्यन्तपौरुषं यथा / , सम्यग्दर्शनभावादिरप्रमादविधिस्तथा // 16 // शब्दादिषु यथा लोकश्चित्रावस्थः प्रवर्तते / तद्वत् तमात्मप्रत्यक्षं त्याज्यमित्युभयो नयः // 17 // घृणाऽनुकम्पापारुष्यं कार्पण्यं परिशुद्धये / व्रतोपव्रतयुक्तस्तु स्मृतिस्थैर्योपपत्तये // 18 // उपधानविधिश्चित्रशेषाशयविशोधनः / न्याय्यो वातादिवैषम्यविशेषौषधकल्पवत् // 19 // न विधिः प्रतिषेधो वा कुशलस्य प्रवर्तितुम् / तदेव वृत्तमात्मस्थं यत् कषायपरिपक्तये // 20 // न दोषदर्शनाच्छुद्धं वैराग्यं विषयात्मसु / मृदुप्रवृत्युपायोऽयं तत्त्वज्ञानं परं हितम् // 21 // श्रद्धावान् विदितापायः परिक्रान्तपरीषहः / भव्यो गुरुभिरादिष्टो योगाचारमुपाचरेत् // 22 // . शुचौ निष्कण्टके देशे समप्राणवपुर्मनाः / स्वस्तिकाद्यासनजयं कुर्यादेकाग्रसिद्धये // 23 //

Page Navigation
1 ... 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694