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प्रस्तावना
अवतरणिका - हमारा देश आरम्भ से ही अध्यात्मवादी विचारधाराओं का प्रमुख केन्द्र रहता आया है । यहां के परंपरागत इतिहास का अध्ययन और विश्लेषण करने से यह तथ्य सुगमता से जाना जा सकता है । व्यापक दृष्टि से देखें तो कहना न होगा कि अध्यात्म जगत् की लोककल्याणमूलक भावनाओं एवं प्रवृत्तियों के आदिम प्रवर्तक और परिष्कारक के रूप में इस देश का महत्व विश्व के अन्य देशों की तुलना मे कहीं अधिक बढा चढ़ा रहा है । 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' का दिव्य सन्देश और आध्यात्मिक पृष्ठभूमि मे होने वाला उसका व्यापक एवं सन्तुलित विकाश ये दोनो ही बातें वास्तव में इस देश की ही मूल्य देन हैं । अतएव यहा के अध्यात्म - साहित्य को यदि विश्व के अध्यात्म-मार्ग का उन्नायक किंवा पथप्रदर्शक कहा जाय तो इसमें कोई अनौचित्य न होगा । फलतः इस दिशा मे उसे दिया जाने वाला सन्मान उसके 'जगद्गुरु' पद के सर्वथा अनुरूप ही माना जायगा ।
इसमे सन्देह नहीं कि यहां के सास्कृतिक जीवन और उसके अध्यात्मचिन्तन की शैली अपने आप मे बडी सजीव और आकर्षक रही है । और यह उसी का प्रभाव है कि विभिन्न भौगोलिक बन्धनों की परिधि मे रहने और विविधता को अपना लेने पर भी राष्ट्र की आत्मा के रूप मे हमारी एकरूपता आज भी सुरक्षित है । इसलिए व्यापक अर्थो मे इसे राष्ट्रीय इतिहास का महत्वपूर्ण पृष्ठ कहना अधिक उपयुक्त और न्याय संगत होगा ।
स्तोत्र साहित्य का उद्गम और महत्व - संस्कृत का स्तोत्र साहित्य हमारी इसी पृष्ठभूमि का पोषक और महत्व पूर्ण अंग माना जाता है । वैदिक संस्कृति के प्रचार और प्रसार का युग ही मूलत स्तोत्र साहित्य की उत्पत्ति का समय कहा जा सकता है । क्योंकि देवस्तुतियों का प्रचलन सर्व थम वैदिक सूक्तों और ऋचाओं से ही आरम्भ होता है । त्रिविध दुखो से पीडित मानव के लिए ईश्वर की शरणागति के सिवा यात्मिक शांति का दूसरा कोई सुगम और सफल उपाय संभव नहीं होता । क्योंकि बुद्धिजीवी और सवेदनशील मानव के