Book Title: Dravyanuyogatarkana
Author(s): Bhojkavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 175
________________ १५४ ] श्रीमद्राजचन्द्रजैनशाखमालायाम् हैं; और उत्पत्ति विनाशमें अनेकाकार होनेसे धौव्यमें भी वही नियत है; अर्थात् जितने ध्रुव स्वभाव हैं; उतने ही उनके आकार नियत हैं । और पूर्वपरपर्यायों में अनुगत जो आधाश है; वह भी उतना ही होगा जितने कि -- उत्पत्ति तथा नाश हैं । इसीलिये यहांपर संमतिग्रंथका प्रमाण है । और ग्रंथकी गाथा यह है; गाथार्थ - एक समय में एक एक द्रव्यके अनेक उत्पाद होते हैं; और उत्पादके तुल्य ही उनके नाश पर्याय भी जानने चाहियें यह कथन व्यवहारमार्ग से है । और उत्सर्गमार्ग अर्थात् विशेषतासे स्थिरता निश्चित है; अर्थात् ध्रुवत्व नियत है । भावार्थ - - उन्मज्जन निमज्जन भावशाली ( क्षण क्षण में ) विनाश तथा उत्पत्तियुक्त जलके कल्लोल (तरंग ) अनेक होते हैं; और जल उसी अपने परिमित आकारकी स्थिति परिणत है । उसीसे उन ( जलकल्लोलों ) के संभवसे उनकी प्रकटता तथा अप्रकटता होती रहती है; ऐसा जानना चाहिये || १८ || अथोत्पादस्य भेदान्कथयन्नाह । अब उत्पादके भेदोंका कथन करते हुये कहते हैं । प्रयोगविश्रसाभ्यां स्यादुत्पादो द्विविधस्तयोः । आद्योऽविशुद्धो नियमात्समुदायविवादजः ॥ १६ ॥ भावार्थ:--नैमित्तिक तथा स्वाभाविक भेदसे उत्पाद दो प्रकारका होता है; उनमें से प्रथम प्रयोगजनित नैमित्तिक उत्पाद अविशुद्ध होता है; क्योंकि -- नियमसे वह समुदाय विवादसे उत्पन्न होता है ।। १९ ।। व्याख्या । उत्पादो द्विविधो द्विप्रकारोऽस्ति, काभ्यां द्विविधः प्रयोगविश्रसाभ्यां एकः प्रयोगजनित उत्पाद: । १ । अपरो विश्रसाजनित उत्पाद: । २ । पुनस्तयोद्वयोमंध्ये आद्योऽविशुद्धो व्यवहारोत्पन्नत्वात् । स च निर्धारणनियमात्समुदायवादजनितो यत्नेन कृत्वा अवयवसंयोगेन सिद्धः कथितः । संमतिगाथा - उप्पाओ दुवियप्पो पओगजणिओ य वीससाचेव । तत्ययपओगजणिओ समुदयवाओ अपरिसुद्धो । १ । उत्पादो द्विविकल्पो द्विविषस्तत्राद्यः प्रयोगजनितोऽपरो विश्रमाजनितस्तत्र च प्रयोगजनितः समुदायवादादपरिशुद्धः कथितो व्यावहारिकत्वात् ॥ १९ ॥ तथा चात्र व्याख्यार्थ:-- उत्पाद दो प्रकारका है; किनसे दो प्रकारका है ? प्रयोग और विश्रसासे अर्थात् एक तो प्रयोग ( निमित्त ) जनित उत्पाद है; और दूसरा ( विश्रसा) स्वभाव जति उत्पाद है; और उन दोनोंके मध्य में प्रथम प्रयोगजनित उत्पाद व्यवहारसे उत्पन्न होनेसे अविशुद्ध है; तथा वह निर्धारित नियमसे समुदायके विवाद से उत्पन्न होता है; अतएव यत्नसे अवयवोंके संयोगसे सिद्ध कहा गया है । और इस विषय में संमतिग्रंथकी गाथा भी है; गाथार्थ - " उत्पादके दो विकल्प अर्थात् दो भेद हैं, एक प्रयोगजनित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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