Book Title: Dravyanuyogatarkana
Author(s): Bhojkavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 217
________________ १९६ ] श्रीमद्रराजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् रहस्यप्रकरण में कहा भी है कि "नास्तिस्वभाव परकी अपेक्षा रखते हैं और तुच्छनयके विषय हैं और व्यंजकका मुख देखा करते हैं । यह वस्तुका वैचित्र्य शराब तथा कपूरके गंधमें देखा हुआ है अर्थात् जैसे शराब तथा कपूरका गंध व्यंजक विना प्रकट नहीं होता वैसे नास्तिस्वभाव भी व्यंजककी अपेक्षा रखता है ॥ १५ ॥ __ यत्स्वस्वानेकपर्यायभिन्नं द्रव्यं तदेव हि । नित्यानित्यस्वभावेन पर्यायपरिणामता ॥ १६ ॥ भावार्थ:-जो निज निज अनेक पर्यायोंसे भिन्न अर्थात् भेदक द्रव्य है वही नित्य तथा अनित्य स्वभावसे पर्यायकी परिणामता है ॥ १६ ॥ व्याख्या । यत्स्वस्वानेकपर्यायनिजनिजक्रममाविमिः श्यामत्वरक्तत्वादिभिन्निन्नं भेदक द्रव्यं वर्तते परन्तु तदेव हि निश्चितं द्रव्यं तदेव यत्पूर्वमनुभूतमभविष्यदित्येतत्तत्त्वज्ञानं यस्माजायते तन्नित्यस्वभावत्वं कथ्यते "तद्भावाव्ययं नित्यमिति" सूत्रम् । प्रध्वंसाप्रतियोगित्वं नित्यत्वमित्यस्याप्यौव पर्यवसानं केनचिद्रू पेणैव तल्लक्षणव्यवस्थितेः । अनित्यस्वभावपर्यायपरिणतिर्येन प्राप्यते, येन च रूपेणोत्पादव्ययौ स्तः, तेन रूपेणानित्यस्वभावोऽस्ति । ततो नित्यानित्यस्वभावेन पर्यायपरिणामता ज्ञेया ॥१६॥ __ व्याख्यार्थः-जो अपने अपने क्रमभावी श्यामत्व तथा रक्तत्व आदि पर्यायोंसे भिन्न अर्थात् भेदक द्रव्य है परन्तु निश्चय करके वही द्रव्य है जो पहले अनुभवमें आया हुआ है और आगे अनुभवमें आवेगा, ऐसा तत्त्वज्ञान जिसके द्वारा होता है उसको नित्यस्वभाव कहते हैं । क्योंकि "तद्भावाव्ययं नित्यम्" “जिसके स्वभावका नाश न हो वही नित्य है" ऐसा सूत्र है । और 'जो ध्वंसाभावका अप्रतियोगी है वह नित्य है, इस लक्षणका भी यहां ही समावेश है; क्योंकि चाहे जैसा लक्षण करो अविनाशीस्वरूपकी स्थितिमें तात्पर्य है । और अनित्य स्वभावरूप पर्यायोंका परिणाम जिसके द्वारा प्राप्त होता है तथा जिस रूपसे उत्पत्ति और नाश होता है उस रूपसे अनित्यस्वभाव है। इस कारणसे नित्य और अनित्य स्वभावसे पर्यायोंका परिणाम जानना चाहिये ॥ १६ ॥ सद्वस्तु नाशयन् रूपान्तरेणाभाति यद्विधा । सत्सामान्यविशेषाभ्यां स्थूलार्थान्तरनाशता ॥१७॥ भावार्थ:-विद्यमान वस्तुको रूपान्तरसे नष्ट करता हुआ जो द्रव्य दो प्रकारका भासता है सो सत् सामान्य और विशेषसे स्थूल अर्थान्तरकी नाशता होती है ॥ १७ ॥ व्याख्या । सद्वस्तु विद्यमानं वस्तु रूपान्तरेण पर्यायविशेषेण नाशयन्नवस्थान्तरमापादयन् यदव्यं द्विधा द्विभेदमेतद्र पेण नित्यमेतद् पेणानित्यं पेति वैचित्र्यमामाति । यथा च सत्सामान्य. विशेषाभ्यां स्थूलार्थान्तरनाशतेति विशेषस्य सामान्यरूपत्वादनित्यत्वं, यथा घटनाशेऽपि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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