Book Title: Dravyanuyogatarkana
Author(s): Bhojkavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 210
________________ द्रव्यानुयोगतर्कणा [ १८९ अर्थात् शीत तथा उष्ण से भिन्न स्पर्श इत्यादि पदोंमें व्यभिचार होनेसे नैयायिकको भी नको अभाव नियामकता सर्वत्र नहीं है; इसलिये अमूर्त्त इससे मूर्तके अभावका नहीं किन्तु मूर्त्तसे भिन्न भावका ग्रहण करना चाहिये । अभाव तो किसी अपेक्षासे है । और इस नयके आश्रयसे कोई दोष नहीं ॥ ५ ॥ 1 समान्येन समाख्याता गुणा दश समुच्चिताः । परस्परपरीहारात् प्रत्येकमष्ट चाष्ट च ॥ ६॥ भावार्थ:- सामान्य रूप से दश गुण संपूर्ण द्रव्योंको मिलाके कहे गये हैं; इनमें परस्पर के परिहार से अर्थात् परस्परविरोधी चेतनत्व अचेतनत्वआदिको छोड़के शेष प्रत्येक द्रव्यमें आठ आठ गुण रहते हैं ॥ ६ ॥ व्याख्या । एते दश गुणाः सामान्यगुणाः समुचितः सर्वेषां द्रव्याणां समुच्चयेन कथिताः । तत्र मूर्त्तत्वममूर्त्तत्वम् चेतनत्वमचेतनत्वं चेति चत्वारो गुणाः परस्परपरिहारेण तिष्ठन्ति । तत एकैकस्मिन्द्रव्ये प्रत्येकं प्रत्येकमष्टी प्राप्यंते । तत्कथं यत्र चेतनत्वं तत्राचेतनत्वं नास्ति, यत्र च मूर्त्तत्वं तत्र चामूर्त्तत्वं नास्ति, एवं द्वयोरप सरणाच्छेषमष्टकमेव तिष्ठति । तेन प्रतिद्रव्यमष्टव गुणाः सामान्याः सन्तीति ध्येयम् ॥ ६ ॥ व्याख्यार्थः- ये पूर्वोक्त दश गुण सामान्यरूपसे सब द्रव्योंके मिलाके कहे गये हैं । इनमें से मूर्त्तत्व, अमूर्त्तत्व, चेतनत्व, तथा अचेतनत्व ये चार गुण परस्परके परिहारसे द्रव्यमें रहते हैं । इससे यह सिद्ध हुआ कि - एक एक द्रव्यमें आठ आठ गुण होते हैं. यह इस प्रकारसे है; कि - जहां चेतनत्व है; वहां अचेतनत्व नहीं है, ऐसे ही जहां मूर्त्तत्व है; वहां अमूर्त्तत्व नहीं रहता है । इस रीति से दोनोंके निकाललेनेसे शेष आठ गुण प्रत्येक द्रव्यमें रहते हैं, इस कारण से प्रत्येक द्रव्यमें आठ ही सामान्य गुण हैं; ऐसा जानना चाहिये ॥ ६ ॥ अथ विशेषगुणान् व्याचिख्यासुराह । अब विशेषगुणोंका वर्णन करनेकी इच्छासे कहते हैं । ज्ञानं दृष्टिः सुखं वीयं स्पशंगन्धौ रसेक्षणे । गतिस्थित्यवगाहत्ववर्त्तना हेतुतापराः ॥ ७ ॥ भावार्थ:- ज्ञान, दर्शन, सुख, तथा वीर्य ये चार आत्माके विशेष गुण हैं; तथा रस, गन्ध, स्पर्श तथा वर्ण ये चार पुद्गलके विशेष गुण हैं; तथा गति, स्थिति, अवगाहन और वर्त्तना ये धर्मादि क्रयोंके हेतुतापरक गुण हैं ॥ ७ ॥ सुखमिति स्पर्शगन्धौ सुखगुणः, स्पर्शगुणः व्याख्या । ज्ञानगुण:, दृष्टिदर्शन गुणः, चत्वार आत्मनो विशेषगुणाः । पुनः Jain Education International For Private & Personal Use Only वीर्यमिति, वीर्यगुणः, एते रसेक्षणे रसगुण: गन्त्रगुणः, www.jainelibrary.org

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