Book Title: Dravyanuyogatarkana
Author(s): Bhojkavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 187
________________ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशाखमालाबाम् स्तिकायाः । कालस्यास्तिकायत्वं कथं नास्ति तत्राह । “अपएसिए काले" कालद्रव्यस्य प्रदेशसंघातो न विद्यते यतः-एकः समयोऽन्यस्मात्समयान्न प्रश्लिष्यत एवमन्येषामपि । तथा हि “धर्माधर्माकाशादावेकैकमतः परं त्रिकमनन्तम । कालं विनास्तिकाया जीवमृते चाप्यकतणि ॥१॥ इत्यादि साधम्यंवैधादिभेदपरिज्ञापनाय प्रशमरत्यादिग्रन्था विलोकनीयाः । पुनरेतेषां भेदाः परिणामजीवमुत्ता सपएसाएयखित्तकिरियाय । निच्च कारणकत्ता सब्बगदइयर अपवेशा ॥१॥ ३ ॥ व्याख्यार्थः-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, · आकाशास्तिकाय, काल, पुद्गलद्रव्य और जीवद्रव्य यह षट् पदार्थ न इनसे न्यून ( कम ) और न अधिक श्रीवीतरागदेवने अथवा आचार्योंने श्रीजिनविरचित आगममें कहे हैं । कैसे हैं; यह छह पदार्थ ? कि-आदि अन्त शून्य हैं; अर्थात् न तो कभी इनको आदि हुई और न कभी इनका अन्त होगा । इन छहों पदार्थोंमेंसे कालको छोड़कर वाकीके पांच अस्तिकाय हैं। अस्ति प्रदेशका नाम है; अतः प्रदेशोंसे जो कायन्ते “कहे जाय" वह अस्तिकाय कहलाते हैं। अब कालके अस्तिकायता क्यों नहीं है। इस विषयमें कहते हैं; कि-काल अप्रदेशी है; अर्थात् कालद्रव्यके प्रदेशोंका संघात नहीं है; क्योंकि-एक समय दूसरे समयसे भेदको प्राप्त नहीं होता है । इस प्रकार अन्य घटिकाआदिका भी भेद नहीं हो सकता है । और धर्म, अधर्म, तथा आकाश यह तीनों एक एक हैं; और इनके आगेके तीन अर्थात् काल पुद्गल और जीव ये तीनों द्रव्य अनन्त हैं । तथा कालको छोड़के सब अस्तिकाय हैं; और जीवके सिवाय सब अकर्ता हैं । इत्यादि साधर्म्य, वैधर्म्यआदि भेदोंके जानने के लिये प्रशमरतिआदि ग्रन्थ देखने चाहिये । और इन छहों द्रव्योंके समस्त भेद यह हैं परिणामित्व, जीवत्त्व, मूर्त्तत्व, सप्रदेशत्व, एकत्व, क्षेत्रत्व क्रियावत्व नित्यत्व कारणवत्व कर्तृत्व सर्वगतत्व असर्वतत्व और प्रदेशत्व । इन भेदोंसे साधर्म्य वैधयका ज्ञान करना चाहिये अर्थात् जो धर्म जीवमें और पुद्गलमें दोनोंमें एकसे हों उनमें तो जीव पुद्गलके साधर्म्य है; और जो भिन्न २ हों उनमें वैधर्म्य है; ऐसे सबमें समझना ॥३॥ अथ धर्मास्तिकायस्य लक्षणमाह । अब धर्मास्तिकायका लक्षण कहते हैं । परिणामी गतेधर्मो भवेत्पुद्गलजीवयोः । अपेक्षाकारणाल्लोके मीनस्येव जलं सदा ॥४॥ भावार्थ:-लोकमें अपेक्षा कारण होनेसे पुद्गल तथा जीवके गमनका परिणामी धर्मास्तिकाय है; जैसे मीनके सदा गतिपरिणामी जल है ॥४॥ व्याख्या । गतेर्गमनस्य परिणामी अर्थाग्दतिपरिणामी पुद्गल जीवयोध मो धर्मास्तिकायो भवेत् । कस्माल्लोके चतुर्दशरज्ज्वात्मकाकाशखण्डे अपेक्षाकारणात् परिणामव्यापाररहितात, अधिकरणरूपौदासीन्यहेतोश्च तत्र दृष्टान्तमाय । मीनस्येव जलं सदेति सदा निर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .

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