Book Title: Dravyanuyogatarkana
Author(s): Bhojkavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 194
________________ द्रव्यानुयोगतर्कणा [ १७३ अलोकाकाशके विषय में पूर्वकथित जो अवधिरहितता ( अनन्तपना ) है; सो ही युक्तियुक्त है । पर्य यह है कि जितने आकाशदेश में धर्म अधर्म व्याप्त होकर स्थित हैं; उतने ही परिमाणसहित आकाशको भी होना चाहिये और जहां धर्म अधर्म इन दोनोंका अभाव है; वहां आकाशका भी अभाव ही समझना चाहिये अर्थात् अलोकाकाश अनन्त है; न कि सान्त ॥ ९ ॥ अथ कालभेदानाह । अब कालके भेदोंको कहते हैं । वर्त्तनालक्षणः कालः पर्यवद्रव्यमिष्यते । द्रव्यभेदात्तदानन्त्यं सूत्रे ख्यातं सविस्तरम् ॥१०॥ भावार्थ:- वर्त्तनालक्षण जो काल हैं; वह पर्यवद्रव्य माना गया है; और द्रव्यके भेदसे उस कालका अनन्तपना उत्तराध्ययनसूत्र में विस्तार से कहा गया है ||१०|| व्याख्या । कालस्तु परमार्थतो द्रव्यं नास्तीति शङ्कमानं निराकुरुते । वर्त्तनेति - सर्वेषां द्रव्याणां वर्त्तनालक्षणो नवीनजीकरणलक्षणः कालः पर्यायद्रव्यं इष्यते । तत्कालपर्यायेष्वनादिकालीन द्रव्योपचारमनुसृत्य कालद्रव्यमुच्यते । अत एव पर्यायेण द्रव्यभेदात्तस्य कालद्रव्यस्यानन्त्यम् । अनन्तकालद्रव्यभावनं सूत्रे उत्तराध्ययने सविस्तरं ख्यातम्, तथा च तत्सूत्रम् - "धम्मो अधम्मो आगासं दब्बमिक्किक्कमाहियं । अाणि यदब्बणि कालो पुग्गल जंतवो” । १ । एतदुपजीव्यान्यत्राप्युक्तम् । धर्माधर्माकाशादेकैकमतः परं त्रिकमन्तन्तमिति । ततो जीवद्रव्यमप्यनन्तं तस्य च वर्त्तमानपर्यायस्यार्थं कालद्रव्यमथा नन्तमित्युक्तमागमे । विस्तरस्तु ततोऽवधारणीयः ॥ १० ॥ व्याख्यार्थः — परमार्थ में कालद्रव्य नहीं है ? ऐसी शंका करनेवालेको " वर्त्तना" इत्यादि सूत्रसे निराकृत करते हैं । सब द्रव्योंका वर्त्तनालक्षण काल है; अर्थात् द्रव्योंको नवीन ( नये) और जीर्ण ( पुराने ) करनेवाला जो है; वही काल है; और यह पर्यायद्रव्य माना गया है । उन कालके पर्यायोंमें अनादि कालसे द्रव्यके औपचरिक व्यवहारका अनुसरण करके "कालद्रव्य" यह कहा जाता है । इसीलिये पर्यायके द्वारा द्रव्यका भेद होनेसे उस कालद्रव्यकी भी अनन्तता है । कालद्रव्य अनन्त है; इसकी सिद्धि उत्तराध्ययनसूत्रमें विस्तारसहित कही गई है । और उस उत्तराध्ययनका सूत्र यह है; "धर्म, अधर्म, तथा आकाश यह एक एक कहे गये हैं; और काल पुद्गल तथा जीव यह अन्तके तीनों द्रव्य अनन्त हैं ।। १ ।।" इसी सूत्रके आधारसे अन्यत्र भी कहा है; कि-धर्म, अधर्म, तथा आकाश यह तीनों एक एक हैं; और इनसे आगेके तीनों द्रव्य अर्थात् काल, पुद्गल और जीव यह अनन्त हैं । इस हेतुसे जीवद्रव्य भी अनन्त है; और उस अनन्त जीव द्रव्यके वर्त्तमान जो अनन्त पर्याय हैं; उनके लिये कालद्रव्य भी अनन्त है; ऐसा आगम में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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