Book Title: Dravyanuyogatarkana
Author(s): Bhojkavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 182
________________ द्रव्यानुयोगतर्कणा [ १६१ उत्पन्न हुआ अन्धतम (गहरा अंधेरा) है; और फिर वहां ही (जहांपर अंधकार था उसी जगह ) प्रकाशके परमाणवोंके समूहका संचार हुआ तब अंधकारके परमाणु तथा उन परमाणवोंका स्थान दूर हुआ और वह अंधकारके परमाणु उन तेज(प्रकाश )के परमाणवोंमें मिलगये बस यही रूपान्तरसंक्रम ( अंधकारके परमाणवोंका तेजके परमाणुवोंमें मिलजाना) है; इसीको रूपान्तर विगोचरनाश कहते हैं । और अवयवरूप परमाणुओंका अवयवी स्कंधरूपमें जो संक्रम है; उससे जो अर्थान्तरका उद्भाव है; उसीसे अर्थान्तरगतिरूप नाशका द्वितीय भेद सिद्ध होता है ॥२६॥ पुनराह । पुनः उसी विषयको कहते हैं। रूपान्तराणुसंबन्धात्स्कन्धत्वं यद्यणोरपि । तत्संयोगविभागाभ्यामपि भेदप्रबन्धता ॥ २७ ॥ भावार्थः-रूपान्तर अणुके संबन्धसे यद्यपि स्कंधता होती है; तथापि संयोग और विभागसे ही भेदकी प्रबंधता होती है ॥२७ ।। व्याख्या । यद्यप्यणो रूपान्तरपरमाणुसंबन्धात्स्कन्वत्वमणुसंबन्धस्करवतास्ति । तदिति तथापि संयोगविभागाम्यां कृत्वा द्रव्योत्पादनाशाभ्यां द्विप्रकाराभ्यामेव भेदप्रवन्वता द्रव्यविनाशद्वविध्यमेव ज्ञेयम, एतदुपलक्षणं ज्ञेयम् । यतो द्रव्योत्पादविमागेन यथा पर्यायोत्पादविमागस्तथा द्रव्यनाशविमागेनैव पर्यायनाशविभागो भवेदिति । ततः समुदयविमागस्तथान्तिरगम चेति द्वयमेव पहिले । तत्र प्रथमस्तन्तुपर्यन्तपटनाशः, द्वितीयो घटोत्पत्तिपर्यन्तमृत्तिण्डादिनाशश्च ज्ञेयः । उक्त च संमतौ-विगमस्सविएसविहा समुदयजणि मिसोउ दुविपय्यो । समुदयविभागमित्तं अत्यंतरभावगमणं च । १।" इत्यादिगाथया ज्ञेयम ॥ २७ ॥ व्याख्यार्थः यद्यपि एक परमाणुके, अन्य परमाणुके संबंध से अगुसंबंधस्कन्धता है; तथापि संयोग और विभागसे अर्थात् द्रव्यके उत्पाद ओर नाशप जो दो प्रकार हैं; इनसे ही भेदप्रबंधता अर्थात् द्रव्य के नाशके दो प्रकार समझने चाहिये । यह उपलशगसे जानना चाहिये क्योंकि-द्रव्यके उत्पादरूप विभागसे जैसे पर्यायका उत्पादरूप विभाग होता है; वैसे ही द्रव्यके नाशरूप विभाग( भेद )से पर्यायका नाशरूप विभाग होगा। इसी हेतुसे समुदयविभाग तथा अर्थान्तरगमन ऐसे दो ही व्यवहार में लाये जाते हैं । उनमें तन्तुपर्यायके अन्ततक जो पटका नाश है; वह प्रथम समुदयविभाग है; तथा घटकी उत्पत्तितक जो मृत्तिकापिंडआदिका नाश होता है; वह द्वितीय अर्थान्तरगमन है । और संमितिमें कहा भी है । इसी प्रकार नाश भी समुदय जनित तथा मिश्र ऐसे दो प्रकारका है। इससे समुदयविभाग तथा अर्थान्तरगमन ऐसे दो प्रकारका नाश २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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