Book Title: Dravyanuyogatarkana
Author(s): Bhojkavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 176
________________ द्रव्यानुयोगतर्कणा [ १५५ दूसरा विश्रसाजनित उनमेंसे प्रयोगजनित उत्पाद समुदायवादसे व्यावहारिक होनेसे अपरिशुद्ध कहा गया है ॥१॥" ॥ १९ ॥ अथोत्पादस्य द्वितीयभेदं कथयन्नाह । विश्रसा हि विना यत्नं जायते द्विविधः स च । तत्राद्यचेतनस्कंधजन्यः समुदयोऽग्रिमः ॥ २० ॥ भावार्थ:-विश्रसाजनित उत्पाद वह है; जो विना यत्न उत्पन्न होता है, वह विश्रसाजनित उत्पाद भी दो प्रकारका है; उनमें से प्रथम अचेतन स्कंधसे उत्पन्न समुदय नामसे कहा गया है ।। २० ॥ व्याख्या । विश्रसाख्यो द्वितीय उत्पादः, विश्रसाशब्स्य कोऽर्थः, सहजं विना यत्नमुत्पद्यते यः स विश्रसोत्पादः सोऽपि पुनद्विविधो द्विप्रकारः, एकस्तत्र समुदय जनितः, द्वितीय एकत्विकः । उक्त च साहाविओवि समुदयकउन्नणुणत्ति ओत्थहोजाहि । तत्रापि तयो योर्मध्य आद्यः समुत्य जनितो विश्रसोत्पादः अचेतनस्कंधजन्यः समुदयः कथितः । अभ्रदीना समुदयपुद्गलानां यथोत्पादः ॥ २० ॥ व्याख्यार्थः-विश्रसानामक द्वितीय उत्पादका भेद है। “विश्रसा" इस शब्दका अर्थ क्या है ? जो विना यत्नके सहज स्वभावसे उत्पन्न हो वह विश्रसाउत्पाद है। वह भी दो प्रकारका है; एक समुदयजनित है; द्वितीय एकत्विक है । ऐसा ही गाथामें कहा है; कि-"विश्रसाउत्पाद भी समुदय तथा एकत्विक भेदसे दो प्रकारका है" उन दोनों में से अचेतन स्कंधसे उत्पन्न समुदयज प्रथम विश्रसाउत्पाद है । जैसे अचेतन मेघादिके समुद य पुद्गलोंका उत्पाद होता है ॥२०॥ सचित्तमिश्रजश्चान्यः स्यादेकत्वप्रकारकः । शरीराणां च वर्णादिसुनिर्धारो भवत्यतः ॥ २१ ॥ भावार्थः-सचित्त मिश्रसे उत्पन्न, दूसरा एकत्विक विश्रसोत्पाद है । शरीरके वर्णादिकोंका सुनिर्धार इसीसे होता है ।। २१ ॥ व्याख्या । तथा पुनद्वितीय: सचित्तमिश्रजः शरीरवर्णादिकानां निर्धारो ज्ञेयः । सचित्ताः पुद्गला वर्णादीनां तथा तथाकारवर्णादिपुद्गलानां परिणत्या परिणतानामेकत्वप्रकारक एकतारूपेण परिणतः अनेकेषां वर्णादीनां संगतानां परस्पर मुत्पादधारया पिण्डीभूतानामववानामवयविधर्मत्वेन देहश्या कारभूतानामणूनां कारीरादिसनिर्धारो भवति । देहादिपिण्डानां "सु" अतिशयेन निर्धारो वपुरूषावस्थत्वं सायो । तथा च प्रज्ञापनायां स्यानाङ्गे च-तिविहा पुद्गलापन्नता, तं जहा पतोगपरिणता १ मोपपापरिणता २ वीससापरिणता ३ तत्र च प्रथमं प्रयोगपरिणताः पुद्गला ये भवन्ति ते जीवप्रयोगेग संयुक्ताः शरीरादयः Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

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