Book Title: Dravyanuyogatarkana
Author(s): Bhojkavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 173
________________ १५२ ] श्रीमद्राजचन्द्रजैनशाखमालायाम् स्थित हैं, वह प्रतिक्षण सिद्धके अन्य अन्य होते रहते हैं, इस हेतुसे तीन लक्षणों के धारक हैं ।। १६ ।। व्याख्या । ज्ञानाद्याः केवलज्ञानकेवलदर्शनादयो निजपर्याया ज्ञेयाकारेण वर्तमानादिविषयाकारेण स्थिताः परिणताः सन्ति । ते च निजपर्याया व्यतिरेकेग प्रतिक्षणमन्योन्यत्वेन सिद्धस्य मुक्तस्य एवमनया दिशापि त्रिलक्षणा लक्षण त्रयवन्तः स्युर्भवन्ति । तद्यथा प्रथमादिसमयेषु वर्तमानाकारेण सन्ति ये पर्यायास्तेषाँ पुनद्वितीयादिसमयेषु नाशः पुनरतीताकारेणोत्पादाकारमावो भवेदिति । पुनः केवलजानदर्शनमावेनाथवा केवलमात्रमावेन ध्रुवत्वमित्थं भाव त्रयमावना कर्तव्या । इत्थमेव ज्ञेयदृश्याकारसंबन्धेन केवलस्थ लक्षण्यं कथितम् ।। १६॥ व्याख्यार्थः-जो केवलज्ञान केवलदर्शन आदि निजपर्याय ज्ञेयाकारसे अर्थात् वर्तमानआदि विषयों के आकारसे परिणत हैं; वह निजपर्याय व्यतिरेकसे अर्थात् प्रतिक्षण में अन्य २ पनेसे सिद्ध अर्थात् मुक्त जीवके हैं। इस प्रकारसे भी वह ज्ञानादि पर्याय तीन लक्षणोंके धारक हैं; वह इस प्रकार कि प्रथमआदि क्षणमें जो पर्याय वर्तमान आकारसे स्थित हैं; उनका फिर द्वितीयआदि क्षणोंमें नाश होगा और भूत आकारसे उत्पादका आकारत्व होगा । और केवलज्ञान तथा केवलदर्शनरूपसे अथवा केवलमात्र भाव से उनमें ध्रुवत्व है, इस प्रकार केवलज्ञानादि पर्यायोंमें उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य इन तीनों भावोंका विचार करना चाहिये। ऐसे ज्ञेय (जानने योग्य पदार्थ) और दृश्य (देखने योग्य पदार्थ) के आकारके संबंधसे केवलके त्रिलक्षणताका कथन किया है ॥ १६ ॥ तथा सिद्धादिशुद्धद्रव्यस्य कालसंबंधात्रलक्षण्यं कथयन्नाह । अब इसी प्रकार सिद्धआदि शुद्ध द्रव्यके भी कालके संबन्धसे त्रिविधलक्षणता दर्शाते हुए यह सूत्र कहते हैं । एवं ये क्षणसंबन्धे वर्त्तयन्ति पदार्थकाः । तेभ्यस्त्रिलक्षणत्वं च, अन्यथा स्युरभावकाः ॥१७॥ भावार्थ:-ऐसे ही जो पदार्थ क्षणके संबंधसे पर्यायोंको प्रवर्तित करते हैं, वह उन्हीं भावोंसे त्रिविधलक्षणयुक्त हैं, यदि ऐसा न माना जाय तो वह अभावरूप ही होंगे ॥ १७॥ व्याख्या। एवं ये पदार्थका मावा: क्षणसंबन्धेऽपि पर्यायतो वर्त्तयन्ति परिणामयन्ति । तेभ्यो भावेम्यस्त्रिलक्षणत्वं संभवेत् । अन्यथा वैपरोत्येन अमावका अभावाः स्युरित्यर्थः । यथा हि द्वितीयक्षणे इति भावे इति । आद्यक्षणे संबंधपरिणामनाशो प्राप्तः, द्वितीयक्षणसंबन्धेन परिणामादुत्पन्नः, क्षणसंबन्धमाशेण ध्र वस्ततः कालसंबन्धाशैलक्षण्यासंमव उक्तः । न चेदेवं तर्हि वस्तु अवस्तु भवेत् । उत्पादव्ययध्रौव्ययोगजमावलक्षणमस्ति तदाहित्ये शशविषाणादिवदभावरूपतामासादयेत ॥ १७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .

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