Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 11
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 9
________________ दिगम्बर जैन | अंक ११] कराया गया है ! पाठकोंको उक्त पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिये व इसकी प्रति मंगाकर अजैन भाइयोंको वितरण करनी चहिए जिससे उनका भ्रम दूर हो और भगवान के पवित्र जीवनको समझे । स्व ० देवे न्द्रप्रसाद को यह पुस्तक समर्पण की गई है अतएव उनके प्रेमी जैनेतर विद्वानोंको भेटमें भेजनी चाहिये । “जैनमहिलादर्श” (सुरत) वर्ष १ अंक ६ वां अंतरीक्षजीके फौजदारी केस में हमारी जीत - गत अप्रेल मासमें श्वेतांबर समाजने दि० समाज पर यह फौजदारी केस बासीमकी कोर्ट के मांडा था कि दिगंबरीने मूर्तिका कंदोरा घिसकर निकाल दिया जिससे श्वेतांबर समाजकी धार्मिक लगनको दुखाया है । यह मामला अभीतक चलकर ता० २९ अगस्तको फैसला हुआ है उसमें दिगम्बरी निर्दोष ठहराये गये व मुकद्दमा दायर करनेवाले श्वे० मुनीम चतुर्भुनको १००) जुर्माना हुआ है। इस कैसमें हमारे दो वकील- जयकुमार देवीदास चवरे व मनोहर बापुनी महाजनने बिना फीस लिये पैरवी की थी जिसके लिये वे अपार धन्यवाद के पात्र हैं। हरएक तीर्थ केस में दिगम्बर ही वकील होने चाहिये । मुक्तागिरि क्षेत्र के संबंध में खापर्डेने बेतूल 'व होशंगाबाद कोर्ट में मुकद्दमा चलाया था वह खारिज हो गया जिसकी उन्होंने नागपुर हाईकोर्ट में अपील की है। अपीलमें मुकद्दमा फिरसे चलाने को कहा गया है । [ ७ *जैन समाचारावलि । बडवानी- में श्री बावनगजानीकी छत्रीका काम चालू है । करीब २५ फूट उंचा काम बन चुका है । इसमें सेठ रोडमल मेघराजजीका परिश्रम सराहनीय है । ललितपुर - में भादों वदी १३को त्यागी शिवप्रसादनीने क्षेत्रपालकी पाठशाळा के विद्यार्थी व पं० शीलचन्दजीका यज्ञोपवीत संस्कार कराया था । फिर शहर में सब भोजनार्थ गये थे तो पांच घर्मात्माओंने भोजन कराया था । लाडनूं - में बालकोंकी वचनशक्ति बढानेके लिये दि० जैन वाग्बर्द्धिनी बाल सभा स्थापित हुई है । फलटन - स्टेटने हुकम निकाला है कि कृषि व दुधैले जनावरी कमोके कारण कोई भी कसाईके दलालको ऐसे जानवर न वेचें । ऐसा लेने व बेचनेवालोंको २५) दंड अथवा केद होगी । गह हुकम छ माहके लिये अभी जरी हो चुका है । समडोली में मुनि श्री शांतिसागरजी (दक्षिण) के चातुर्मास से वहां चतुर्थकाल जैसा दृश्य हो रहा है। वहां ८-१० तो क्षुल्लक त्यागी व ब्रह्मचारी साथमें हैं तथा सेठ रावनी सखाराम सोलापुर, पं० बंशीधरनी आदि भी पर्युषणपर्व में वहां गये हैं । सुजानगढ में नित्य धर्मध्यानपूर्वक त्रिकाल पूजन होता है जैसा अभी कहीं भी सुनने में नहीं आया ।

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