Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 11
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 13
________________ दिगम्बर जैन | अंक ११ ] न्याय, व्याकरण, तथा धर्मशास्त्र पढ़ाया जाय ) ही खोला, और न कोई भी विद्यार्थी काशी, मोरेना, जबलपुर, सागर, व्यावर आदि विद्यालयोंमें भेजकर पढ़ाया । वास्तव में आधुनिक भट्टारकोंने तो हम लोगोंके लिये भारी उपकार . किया था अर्थात् उन्होंने तो अपने२ गच्छके शिष्यों (यजमानों) को और तो क्या अष्टद्रव्यसे पूजा करने तकका अधिकार नहीं दिया थी । फिर स्वाध्याय (शास्त्राभ्यास) करना, सूत्र पाठादि करने की तो बात ही क्या ? उन्होंने भय भी अच्छा दिला रक्खा था “ कि जो गृहस्थ पूजा करे व स्वाध्याय करेगा, उसका नखोज जायगा " 1 था, वे तो यही तो बात है कि गुजरात में पहिले अष्टद्रव्यकी पूजाका प्रचार न अब भी बहुतसे स्थानों में नहीं है । जलादिसे अभिषेक करके चरणोंपर केशर तथा पुष्प चढ़ा देने मात्रको ही पूजा समझते थे, इसी कारण वहां कई मंदिरोंमें अष्टद्रव्यसे पूजा करनेके योग्य न तो बर्तन ( वासन ) ही पाये जाते थे और न पूजा तककी पुस्तकें यद्यपि तेरापंथने बड़ी उछल कूद मचाई और लोगों को अपने पैरोंपर खड़े होने का उपदेश दिया अर्थात् गृहस्थोंको देवपूजा तथा स्वाध्याय करने पर उत्तेजित किया और इस कार्य में सफल भी हुवे, परन्तु केवल उत्तरके प्रांतों हीमें । दक्षिण और गुजरात इनके चंगुल में न फंसा 1 यहां तो भट्टारकोंकी ही तूती बोलती रही। इसके बाद इन सभावोंने अपना राग अलापा, इत्यादि सब हुवा, परन्तु हमारे प्रिय गुजरात १५ वर्ष और [११ प्रांत पर लेश भी प्रभाव न पड़ा। यद्यपि मे लोग भी सभायें कर कर प्रस्ताव कर लेते हैं परन्तु हमारे पुण्योदयसे इनके अंतःकरण में संस्कृतके प्रौढ विद्वान् तैयार करके धर्मतत्वोंके प्रचार करने का भाव हो ही नहीं सक्ता है । 0 नौ ० - अजी पंडितजी महाराज, आपने सुना है कि नहीं कि अबके वैशाख मास में लग्नसारा पर सोंजित्रा में मेवाडा भाइयोंके समक्ष जाकर सेठ मूळचंदजी कापडिया, छोटालाल घेलाभाई गांधोनी तथा सरैयानेज गुजरात में एक ब्रह्मचर्याश्रम खोलनेकी आवश्यकता बताई तो ऐसा ब्रह्मचर्याश्रम पावागढ़ क्षेत्र पर खोलने का निश्चय होरहा है व बहुत से मेवाडा भाई इसमें सहायता देने को भी तैयार हुए हैं । पं० - क्या कहा? गुरुकुल ! गुजरात में ! असंभव १ सर्वथा असंभव ! नौ ० - जी नहीं, निश्चय हो रहा है । पं० - तुझे पक्का मालूम है ? नौ ० - जी हां । पं.- .तबतो......... परन्तु चिंता नहीं चाहे जो खुले संस्कृत व उच्च तत्त्वज्ञान तो वहां होना ही नहीं है । वह भी १ साधारण बोर्डिंग या पाठशाला ही समझिये. क्योकि ये लोग ६० साठ सत्तर रुपया मासिक वेतन न अध्यापकों को देंगे न योग्य शिक्षा मिलेगी । ये लोग देखेंगे थोडे वेतनवाला कोई १ अध्यापक और चाहिये कमसे कम तीन चार पूर्ण विद्वान अध्यापक, अनुभवी बयोवृद्ध धर्मका दृढ़ श्रद्धानी जैन सुपरिन्टेन्डेन्ट, जैन रसोइये, पुस्तक भंडार और प्रतिज्ञा पूर्वक कमसे कम ८ वर्ष पढ़नेवाले

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