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अंक ११]
जाति नं०
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* वर्तमानकाल और जैनधर्मकी आवश्यक्ता ।
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हमारे बहुतसे भाई जैनधर्मकी इसीलिए निंदा करते हैं कि वह दव्वूपन और कायरताके बीज बोकर मनुष्यों में क्षत्रियोचित भावको हटा देता है । पर ऐसा सोचना उनकी भूल है । भारतवर्षका इतिहास इस बातकी साक्षी नहीं देता । प्रतापशाली जैनी राजा चन्द्रगुप्तको कौन नहीं जानता और कौन नहीं जानता कि यूनानी सेनाको परास्तकर उसने भारत में अपना अखण्ड राज्य स्थापित किया था । कौन नहीं जानता कि ऐसे समय में वीरोचित कार्य करके उसने भारतवर्षकी रक्षा की थी । महाराजा खारवेल और अमोघवर्ष भी ऐसे ही
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(लेखक:- बा० हजारीलाल जैन बी० ए० रिसालकाबास - भागरा ) ( गतांक से आगे )
वस्तुका नाम
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चावल चने
( मनुष्यके योग्य कुदरती खुराकसे उद्धृत )
मांस और वनस्पतिके पृथक्करणका कोष्टक (Table )
मक्का
तूवर
मसुर
मूंग वटाणे
गुवारफळी
दिगम्बर जैन
जल
१३.५
१२.४.
१०.४
*ECE
१३.१०
९.०
१२.०
९.९
९.५
११.८
मांस बनाने
वाला तत्व
१३.८
७.६
१५.६
1
९.८५
२१.९
२५.०
२५.५.
२४.६
२९.९
प्रतापशाली राजा हो गये हैं । एकने करीब २ सभी पश्चिम और दक्षिण भारतके राजाओंको परास्तकर अपना प्रभुत्व स्थापित किया था और दूसरेने अपने व्यापार कौशल से दूर २ देशोंसे भी सम्बन्ध जोडा था । वीरता कोई मांस खाने हीसे नहीं आती । यह तो पृरुषका स्वाभाविक धर्म है । अगर ऐसी बात न हो तो आप नपुंसकको कितना ही मांस क्यों न खिलावें परन्तु वक्त पडने पर वह अवश्य भाग जायगा । अब हम आपको निम्नलिखित कोष्टक द्वारा यह बतलावेंगे कि पौष्टिक तत्त्व मांसमें अधिक है या फलादिकमें
चिकनाई मिठाई क्षार
१.९
0.8
६.११
४.६०
१.६
१.९
२.८
१.०
१.४
६९.१
६८.९
२.०
१.२
६३.६. ३.०
६८.५
१.५
६४.६
२.९
५८.३
५५.७ ३.२
६२.०
५३.९
३.१
7
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पौष्टिक तत्व
९८.०
९८.१
१२४.३
१००.६
१०१.०
९९.५
११८.७
૧૦૧૦
९७७