________________
२२ ]
D
दिगम्बर जैन ।
52.
नीति - रत्नमाला ।
25
( लेखक - बालकिशन जैन - पालम )
राजाके सप्तांग ये, इतिहासज्ञ पुरान | परिहासक गायक कवी, भट्ट तथा विद्वान ॥ १८२ अधना धन इच्छा करें, गर्वित इच्छे बाद | मानव इच्छे स्वर्गको, देव मुक्रति अविषाद || १८३ जाका शक्ति न ज्ञात हो, चेष्टा कुल नहीं ज्ञान | ताकि संगति मत करो, भाषत हैं मति मान॥ १८३ क्षुधा समान न अन्य दुख, चिंता सम नहिं रोग । अन प्राप्ति सम सुख नहीं, अपुत्र समां नहिं सोग दुष्ट उदर के कारण, किम नहिं करें पुमान | चाक देवि जिम बानरी, घर घर नृत्य करान १८६ नृपसेवा जानो इसी, असि धारा अवलेह | व्याघ्री गात्र स्पर्शनी, नागिन क्रीड करेह ॥ १८७ प्रहेलिका--अनेक सुषिर (बिल)ब आदिमें, ऋषिसंज्ञक कमंत | सर्पनको आराध्य वह, कहो जो कल जानंत निरगुण मानव गुणि पुरुष, अंतर होत महान । हार नारिके कंठ में, नूपुर पाद परान ॥ १८९ दुमंत्री राष्ट्र क्षय, कुंनरतें क्षय ग्राम ।
I
श्यालक ग्रह नष्ट है, मातुलतें घनधाम ॥ १९० सेवनतें बाढ़े स्वतः, कलह कंडु उद्योग | मैथुननिद्रा द्यूत पर - दारा मैथुन भोग || १९० पेट भरन भोजन करें, मैथुन हित संतान । कहैं बचन जो सत्य हित, सौं नर श्रेष्ठ महान १९१ योवन धन प्रभुता तथा, विवेक हीत चा अंस । एक २ अनरथ करें, सबमिल करें विध्वंस ॥ १९३
[ वर्ष १७
अनालस्य पांडित्यता, शील मित्र संघात । शौर्य पंच अचोरहर, अक्षय निधि विख्यात ॥ १९४ निस्नेह हुवे निर्वाण है, भत्रको हेतु स्नेह । जिस प्रदीप निस्नेहतें, छुटै ताप तन देह || १९९ पढ़े लिखे प्रश्नहि करे, पंडित जनको संग | रवितें बिकसै नलिनि जिम, प्रसेर बुद्धि अभंग १९६
विद्यत्ति किप्स, हरै न ऐसो कौन । कांचन मणि संयोग ज्यों, मोहै देखे जौन १९७ जलत अग्नि निम प्रथम ही, नाशै निन आधार । तिम विषयाशा अगन भी, देवै चित्त प्रजार ॥ १९८ लक्ष्मी किसके थिर हुई, भूप हृदय कहां प्रीत । अविनाशी किस तन हुवो, वेश्या किसकी म ेत ॥ स्वयं स्वगुण ऐश्वर्यको कथन न शोभं राम । निजकर कुच मर्दन किये, लहै न प्रौटा जेम २० नारीपर मुख द्रष्टिनी, कवी अज्ञ व्यवहार । रोगी सेवि अपथ्यको, बिगरत लगै न वार २०१
क्षमावणीके कार्ड
मूल्य III) सैंकड़ा |
दीवाली के कार्ड भी हैं, III) सैंकड़ा । ५० मंगानेवाले | ) ॥ व १०० मंगानेवाले 12) की टिकट भेजें । दीपमालिका (दीवाली, पूजन ) मैनेजर, दि० जैन पुस्तकालय-सूरत । क