Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 11
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 41
________________ । १४-खुले हुये-नहीं दके हुये वर्तनमें अन्न समा प्रवेश मत करो। भलीभांति नहीं पकता है। ___२८-संध्याओंमें, दिनमै, जलमें, देवायतनों में १५-धर्म, अर्थ और कामकी शुद्धि और मैथुन करना वर्जित है। दुनोंका स्पर्श ही स्नानका कारण है। २९-पर्वके दिनों में उपद्रव आनेपर भी १९-निरंतर सेवने योग्य सुस्वके लिये कुलीन स्त्री के साथ सहवास मत करो। उत्तम वचनोंका प्रिय मधुर सरस रूप प्रयोग ३. - स्वतंत्र रहना 'नुष्योंको सुखके लिये और ताम्बूलका भक्षण ये दो ही पदार्थ हैं। उत्तम रसायन है। १७-निरंतर बैठनेवाले का उदर बढ़ जाता ३१-स्त्रियोंका स्वतंत्र रहना चारित्रका है, मन वचन और शरीरमें शिथिलता बढ़ नाशक है। जाती है। ३२-लोभ, प्रमाद और अचानक विश्वाससे १८-अत्यंत खेद मनुष्यको असमयमें बृद्ध जब स्वयं बृहस्पति तक भी ठगे जाते हैं तब बना देता है। दुसरे पुरुषोंकी तो बात क्या है ? १९-देव गुरू और धर्म नहीं माननेवाले ३३-कुलके कनुकूल ही पुरुषका स्वभाव पुरुषका विश्वास उठ जाता है। होता है। १०-मात्मसुखके अनुरोधसे कार्य करनेके ३४-सरोग दशामें ही धर्ममें बुद्धि मनुष्योंकी लिये रात्रि और दिनका विभाग बनालेना पायः होती है। भावश्यक है। १५-निरोग वही है जो विना किसीकी २१-कालके मनियमसे काम करना मरनेके प्रेरणासे वा उपदेशसे धर्मको चाहता है वा बराबर है। करता है। २२-अत्यन्त आवश्यक कार्यमें कालको ३१-व्याधिसे दुःखित पुरुषके लिये धैर्यको व्यर्थ व्यतीत मत करो। छोड़कर दूसरी औषधि नहीं है। २३-आत्म रक्षामें कभी भी प्रमाद करना ७-संपारमें भाग्यशाली मनुष्य वही है उचित नहीं है। जिसका जन्म किसी प्रकारके कुत्सित दोषोंसे २४-पूजनीय और सेवनीयको उठ कर _सहित नहीं हुआ है । नमस्कार करो। . _ ३८-भयके स्थानोंमें धैर्यका धारण ही भयके २५-देव गुरु और धर्मके कार्योको अपने दूर करनेका उपाय है, विषाद करना उपायआप देखो। नहीं है। २६-पर स्त्रीके साथ और माता बहिनके ३९ धूपसे संतप्त मनुष्यके मलमें प्रवेश करसाथ एकांतमें मत रहो। .. नेसे आंखों में कमनोरी और मस्तक पीड़ा हो २७-विना अधिकारके और संमति राज. नाती है। (मरर्ण) ..

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