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POOOOOg ॥श्रीवीतरागाय नमः॥
16कानि
।
GO सम्पादक-मूलचंद किसनदास कापड़िया चंदावाड़ी-सूरत।
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विषयानुक्रमणिका।
विषय
पृष्ठ
...
१-२
१-२ दशलक्षण धर्म; सम्पादकीय विचार
३ भगवान महावीर पर सम्मति ....
४ जैन समाचार संग्रह .... lo ५ पयूषण पर्व व स्वार्थमय विचार (पं. दीपचंदनी वर्णी)९
६ वर्तमानका छ और जैनधर्मकी आवश्यकता ....१३ वीर सं. २४५०७-८ उपालंभ (कविता); कपुर ("जयाजी प्रताप").... १८-१९
भाद्रपद ९-१ जैन समाज पयूषण पर्व (कविताएं). ....२० वि. सं. १९८० ११ नीति रत्नमाला (चालविशन जैन पाळम) .....
- १२ वीसा मेवाड़ा दि. जैन युवक मंडल
१३-४ उत्तम त्रण गुण; उत्तम उपदेश १५-१६ अहिंसा, समयोपयोगी शिक्षायें
वर्ष १७ अङ्क १ वा सन् १९२४,
.... २६-२९
०
पेशगी वार्षिक मूल्य रु० २-०-० पोष्टेज सहित ।
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Milar मोड या छ-ine. "वीर"-नामक पाक्षिक (हरएक पंदर | (અમદાવાદની શ્રીચંદ્રસાગર દિ૦ જૈન બાગના મંત્રી મગનલાલ દેવચંદ પ્રગટ કરે છે કે આ ' मा ५ यानी ४४॥ मोटी छ.. भारत० दि. इन परिषदसे उत्तमतया प्रकट तो यासुर नामे पोताना ।२।सान हो रहा है उसके ग्राहकोंको वार्षिक मूल्य सिर्फ
यासा भास 4 तो मुशाया में सामें तो १०० पृष्टका सचित्र विशेक तथा દાખલ થવાનું કાર્મ ભરી મેકલી તે પાસ થયેથી
___ असहमतसंगम" नामक ५५० पृष्ठका अन्य ડિપોઝીટ રૂ. ૨) તથા વાર્ષિક પેઈ ને ફી ૪૧) अथवा डा ॥ ६॥ २५) पै यी २५ उपहारमें मिलता है। इस लिये 'दिगम्बर जैन के ५५ मा . am विधाये याणी, 12 मारा हरएक ग्राहक वार्षिक मूल्य ॥) देकर वीरके उपवासे यार वास वा नय... ग्राहक अवश्य हो जावे क्योंकि खास अंक व
ફતેપુર-માં શ્રાવણ સુદી ૧૫ ને દિને २क्षामधन पूजन ४ था संभावना पारी ग्रंथ ही २॥ केहैं। હતી તથા શ્રાવિકાશ્રમ મુંબઈથી રક્ષા (રાખડી) भासी मा १७) हानना 04161... वार्षिक पारितोषिक विरणोत्सव तथा दानवीर भारत शासनसुधार-मांच कमेटीकी
राज्यभूषण रा.व. सेठ कल्याणमलनीकी वर्ष. भोरसे कई नेताओंकी गवाही ली जा रही है
गांठका उत्सव गत ता. १३ अगस्तको बहुत उसमें हमारे जैन कौमके हकों की रक्षा हो इस
धूमधामसे इन्दौर स्टेटके डेप्यूटी प्राईममिनिस्टर लिये जैन अगुओंकी गवाही भी लेनी चाहिये
एत्मादौलाके सभापतित्वमें हुमा था। ऐसा एक पत्र 'जैनमित्र मंडल' देहलीने रिफार्म
उदयपुरकी-प्रे• मो० दि० जैन पाठशा. शोधन कमेटी शिमलाको भेना है उसमें लिखा।
काका कार्य प्रशंसनीय चल रहा है। अभी ब० है कि जैनों की ओर से बा० जुगमंदरलाल बेर.
कन्हैयालालनीने छ मासिक परिक्षा लेकर स्टर व जन, बा० चरतरायजी बेरिस्टर, बा०
अतीव संतोष प्रकट किया है। १०४ विद्यार्थी अस्तिपसादनी वकील, बा० टेकचंदनी, स्था.
पढ़ते हैं । मंत्री सेठ वक्ष्मीचंद नीका परिश्रम जं दियाला तथा रावलले एम०ए बेळगा
सराहनीय है। मको भी गवाही अवश्य लेनी चाहिये।
__ कलकत्ता-में विमलनाथ पुराण'के फोर्मकी सागर-में लक्ष्मणदासजी, रज्जीलालजी व
चोरीका केस खारीन होनाने की गतां कमें दीहुई सुखकाकनी कमरया द्वारा निर्मापित छात्रालयका
खबरमें इतना विशेष है कि सिर्फ हनुमान उद्ध टन समारंभ विनयादशमीको होगा। ,
. प्रेमके कंपोझिटरसे ५०) का मुरलका लिया - हीरापाग-धर्मशाला मुंबाईनो जुलाईमा
गया है व प. श्रीलाल नी तथा उनका कंपोझिकुले १२५१. ने ऑगस्टमा ८३ मुसाफरोए काम लीधो हतो ज्यारे ऐलक पन्नालाक दवा
टर निर्दोष छूट गये हैं। • खानानो ४५९२ अने ४७१७ नवाजुना ब्र० हेमसागरजी-(करमसद)ए सिर"दर्दीओए लाभ लीधो हतो,
साला (खानदेश) मां चातुर्मास को छे,
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॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥
* दिगंबर जैन.
THE DIGAMBAR JAIN.
नाना कलाभिर्विविधश्च तत्त्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः । संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्त्तताम्, दैगम्बर जैन-समाज-मात्रम् ॥
• वर्ष १७ वॉ. ||
वीर संवत् २४५०. भाद्रपद वि० सं० १९८०.
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अंक ११ वां
-80 दशलक्षणधर्म।
पितासम सर्व जीवोंकी, करे रक्षा धरम कहते । इसीसे आसरा लीजे, इसी शुभ धर्मको कहते ॥ सभी कहते धरम करिए, धरम करना नहीं जाने । कि जैसे शुद्ध, जल मिश्रित, दुई लग दूध कहलाने ॥ परंतु पीयकर अनुभव, करेंगे आप जब उनका । तभी तो जान जावेंगे, कि जिससे होयगा खटका ॥ इसी ही दूध सम है तो, धरम सांचा अरू झूठा । तभी तो जानकर करना, कि जिससे कोई ना रूठा॥ इसीसे आज हम सबको, बताते इम धरम दशको ।
कि जिससे होत है भारी, · हमारी उन्नती प्यारी॥ प्रथम क्षमा, मार्दव, आर्जव, .उर सत्य शौचका करो बिचार । संयम तप अरु त्याग अकिञ्चन, ब्रह्मचार जानों सुखकार ॥
१-उत्तम क्षमा। . कोई क्रुद्ध होकरके भाई, अपना जो अपकार करे । शांतभावसे उसको सहलो, तभी क्षमावत धर्म धरे ॥ मैत्रीभाव जगतमें होगा, जिसके कारण सबसे अत्र । अन्तर बाहर शत्रु न कोई, सभी करें व्यवहार पवित्र ॥
२.-उत्तम मार्दव । मान कषायको दूर भगाकर मृदुता धारण कर लीजे । जिससे फैले बेल दयाको चितमें मार्दव धर लीजे ॥
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दिगम्बर जैन ।
[वर्ष १७
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३-उत्तम आर्जव । दुष्ट बुद्धिको दूर भगाकर माया जाल हटा दीजे जिससे आर्जव धर्म प्रगट हो, तिरिय योनिका बंध भजे (गे)॥
४-उत्तम सत्य। सदा सत्य प्यारा ही बोलो, झूठ बचन तुम तज दीजे । जिससे सत्य धर्मका पालन-होवे, सत्से हृदय सजे ॥
५-उत्तम शौच । अगनी जैसे ईधन पाकर, अपना वेग बढ़ा लेवे । तैसे तैसे लोभ पदारथ सुख, गुण, व्रत शम हरलेवे॥ लोभ पापका बाप कहाता इसको शीघ्रहि वश करले । तृष्णा छोड़ लोभको जीतो, जिससे शुचिता धर्म पले॥
६-उत्तम संयम । पंचेन्द्रियके विषय छोड़कर मन बच तनसे रक्षा कर ॥ संयम धर्म धरो रुचिसेती पंच समितिका पालन कर ॥
७-उत्तम तप । बारह विधिके तपके भाई, बाह्याभ्यन्तर भेद किए । शक्त्यनुसार सभीको पालो, दुर्गति मारग दूर किए ॥
८-उत्तम त्याग। चार दान विख्यात जगतमें संघ चारको दे दीजे । जो है अमृतसम सुखकारी जिससे सब ही रोग नशे ॥
०-उत्तम आकिंचन । जन्म मरणके नाश करनकी इच्छासे सब तज दीजे । परिग्रह चेतन और अचेतन जिससे चेतन धर्म सजे ॥
१०- उत्तम ब्रह्मचर्य । ब्रह्म शब्दका अर्थ आतमा जिसमें चर्या कर लीजे । किसीपै खोटी दृष्टि न करके मातृ बहिन सम समझोजे॥ शील रखनको महिमा भारो, जैन शास्त्रमें गाई है। इससे शील कभी ना छोड़ो, ताबिन व्रत नश जाई है।
दामोदरदास जैन, चंदावाड़ी-सूरत ।
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श्री अ
अंक ११ ] . . दिगम्बर जैन ।
६-सभी व्रतोंकी पूना तथा पंच पूना मादि शांतिके सार्थ पढ़नी व करनी चाहिये ।
७-जहांतक हो यह सारा दिन मंदिरमें ही बिताना चाहिये।
-यह अवकाश व धर्मध्यानका दिन है इस हमारे दशलाक्षणी पर्व अभी चल रहे हैं लिये हरएक मंदिरके शास्त्र भंडारकी सूची इसी
और उसका अंतिम पर- अवसर पर बना लेनी चाहिये व सर्व कोईको
तुदः स्वाध्यायार्थ शास्त्र सुगमतासे मिल सके ऐसी कर्तव्य। शीका दिन निकट ही व्यवस्थापूर्वक शास्त्र रखने चाहिये।
है जिस दिनको हमें किप्त ९-हरएक शास्त्रके वेष्टन रेशमी (मशुद्ध) तरह विताना चाहय उसका नाच लिखा कुछ अथवा पुराने हो तो बदल करके विशुद्ध खद्दरके सूचनाएं हम फिरसे हमारे पाठकों को करना पीले वेष्टन बनाकर उसमें ही हमारे परमपवित्र उचित समझते हैं।
शास्त्र बांधने चाहिये। १-अनन्त चतुदशीके दिन दशलाक्षण, १.-जो २ शास्त्र अपने ५ मंदिरमें न हों षोडशकारण, रत्नत्रय और अनंतव्रत ऐसे चार वे अपने अथवा मंदिरके भंडारके द्रव्यसे अवश्य व्रत एक ही दिनमें आते हैं तथा यह हमारे मगाने का निश्चय करके उसका ओर्डर लिख देना पुण्य पर्वका अंतिम दिन है इसलिये इस चाहिये। (हरएक शास्त्र सुरतके दि. जैन दिनको हमें अपूर्व धर्मध्यान पूर्वक विताना पुस्तकालयसे मिल सकता है।) चाहिये जिसमें
११-शास्त्र सभाओंके उपरांत एक व्याख्यान २-हरएकको इस दिन तो धर्मध्यान पूर्वक सभा होनी चाहिये जिसमें दशलाक्षणी पर्व अवश्य उपवास करना चाहिये ।
पर विद्वानोंके आम व्याख्यान होने चाहिये। ३-काम धंदा बन्द करके सारा दिन मंदिरमें १२-मंदिरका हिसाब किताब लेन देन भी ही पूजा पाठ स्वाध्याय तथा धर्म चर्चामें ही ठीक कर लेना चाहिये तथा " तीर्थरक्षा वितावें।
. फंड" का प्रतिघर १) अपने २ मंदिरके -अपने ग्राम व शहरमै जीव हिंसा बन्द भाइयोंसे उगाह करके जितने रु. इकट्ठे हो वे हो व कसाईखाने बन्द रहे तथा काम धन्दा रुपये महामंत्री तीर्थक्षेत्र कमेटी हीराबाग बम्बसार्वजनिक रीतिसे बन्द रहे ऐसा प्रयत्न करना ईको मनिओर्डरसे भेनने चाहिये । चाहिये । अपनको खुद तो व्यापार धंदा बंद १३-चतुर्दशीके दिन मंदिरोंके भीतर व रखना ही चाहिये।
बाहर सजावट करनी चाहिये तथा एक धार्मिक ५-सामायिक प्रतिक्रमण भान तो त्रिकाल जुलूस निकालना चाहिये जैसा कि बम्बई में अथवा दो काल अवश्य करना चाहिये । प्रतिवर्ष निकलता है। सारांश कि इस दिनको
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8 j इस तरह बिताना चाहिये कि सब आम वर्गको मालूम होजावे कि आज जैनों का कोई बड़ा भारी दिन है ।
१४ - चतुर्दशीकी सार्वजनिक छुट्टी हो इसके किये सभाकर ऐसा प्रस्ताव करके अपने ग्राम व शहरके अधिकारियों को उसकी नकल भेजनी चाहिये |
११ - चतुर्विष दानका एक चंदा सब भाई ओंमें घूमकर करना चाहिये और जितने रुपये इकट्ठे हो बे हिस्सा करके हमारी संस्थाओं जैसी कि काशी स्या० विद्यालय, जयपूर ऋषभ ब्र आश्रम, ब्यावर महाविद्यालय, बड़नगर औष - घालय-अनाथालय, देहली अनाथालय व महिलाश्रम, बम्बई श्राविकाश्रम, सागर विद्यालय, मोरेना सिद्धांत विद्यालय, उदयपूर पार्श्वनाथ वि०, कारंजा ब्र० आश्रम आदिमें तुर्त ही मनिओर्डर करके भिजवा देने चाहिये । यह चंद्रा चतुर्दशी के दिन बहुत सुगमता से हो सकेगा ।
इस प्रकार इस अनंत चतुर्दशीको जितना भी बन सके तन मन धनसे अतीव धर्मध्यान पूर्वक निर्गमन करना चाहिये तथा यथाशक्ति व्रत नियम भी लेने चाहिये जिसमें हर एक को नित्य स्वाध्याय व दर्शनकी प्रतिज्ञा तो अवश्य ले लेनी चाहिये ।
दिगम्बर जैन |
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हमारे अनेक स्थानोंपर हमारी वस्ती न होनेसे या कम होजानेसे
[ वर्ष १७
अनेक स्थानपर प्रमाद तो क्या द्रव्याभावसे ही यह कार्य नहीं होता है इसके लिये क्या२ उपाय करने चाहिये ऐसा एक लेख तीर्थभक्त शिरोमणि का ० देवीसहायजी फिरोजपुरने प्रकट किया था उसका एक उत्तम उपाय हमारे दक्षिणके घर्मप्रेमी विद्वान वकील श्रीयुत जयकुमार देवीदास चवरेने प्रकट किया है जिसको हमारी तीर्थक्षेत्र कमेटीने भी पसंद किया है वह यह है कि
मंदिर व प्रतिमा अनेक मंदिर जीर्णावस्था में रक्षाका उपाय | पड़े हैं तथा प्रतिमाओंकी अविनय हो रही है जिसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है परंतु
भारतवर्ष में हमारे जितने मंदिर हैं जिनकी वार्षिक आमदनी दो हजार या इससे ज्यादा हो उन मंदिरोंसे सौर दौ२सौ रुपय वार्षिक सहायता समाजके जीर्ण मंदिरो द्वार और प्रतिमाओंकी अविनयको दूर कराने के लिये लिया जाय ।
यह उपाय बहुत ही योग्य है । इसमें खुद तो द्रव्य देनेका है ही नहीं परन्तु अपना जीव उदार करके यदि अपने मंदिर में २०००) वार्षिकसे ज्यादह आमदनी हो तो उसमें से १००), या २००) वार्षिक जीर्ण मंदिरोद्वार व प्रतिमाकी अविनयको बचानेको देनेके लिये अलग २ निकाल रखने चाहिये व जहां २ आवश्यक्ता हो भेजने चाहिये। ऐसा ही उपाय हमारे बंब श्वेतांबर भाइयोंने कार्यमें परिणित कर दिया है अर्थात् बम्बईके ७ मंदिर व पेढेयोंसे ४५०० • ००) वार्षिक ५ वर्ष तक अपने मालवा व मेवाड प्रांतके जीर्ण मंदिरोंके उद्धारार्थ देना निश्चय किया है व उसका कार्य भी प्रारम्भ होगया है | क्या दिगंबरी माई इस उत्तम
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अंक ११]
दिगम्बर जैन । उपायका अनुकरण इस दशलक्षणी पर्वमें पंचा- भगवान महावीर पर सम्मति । यती करके करेंगे ?
भगवान महावीर ।
लेखक - बाबू कामताप्रसाद जैन, सम्पादक आगामी १८ वें वर्षके प्रारम्भमें भी 'दिगं.
- 'वीर' अलीगंज एटा, प्रकाशक-मूलचंद किप्त- बर जैन' का सचित्र
नदासनी कापड़िया मालिक, दिगम्बर जैन पुस्त "दिगंबर जैन" का विशेषांक हम प्रकट
लय सुरत | पृष्ठ संख्या ३०० प्रकाश कसे प्राप्य! विशेषांक व करना चाहते हैं इसलिये
- मूल्य सादी जिल्द !॥ पक्की निल्द २) मूल्य । इस अंकमें प्रकट होनेके
___ आजकलका शिक्षित संसार जितना भगवान् लेख व चित्र जिनरको
गौतमबुद्ध के नामसे परिचित है उतना भगवान् भेजने हों उनको तथा हमारे विद्वान लेखकोंको
महावीरके नामसे नहीं है। आजकलके ऐतिहा. एक मासके भीतर भेननेके लिये हम सादर आमं
सिकोंमें अहिंसाके सिद्धांत तथा रक्तमय यज्ञोंके त्रण करते हैं। हिंदी, गुजराती, मराठी, संस्कृत
बन्द कराने का श्रेय गौतमबद्धको ही प्राप्त है, तथा अंगरेजी भाषाके लेख व कविताएं प्रकट किन्त उन लोगोंकी दृष्टि भगवान महावीरकी होंगी जिसमें अंगरेजी, संस्कृत, मराठी बहुत ओर नहीं गई है । गौतमबुद्धने मृतकका मांस कम व हिंदी, गुजराती भाषाके लेख विशेष साने
खाने का विधान किया है किन्तु भगवान् महारहेंगे। नवीन वर्ष वीर सं० २४५१का हमारा वीरने मांस तो मां मुहूर्तके रखे हुए मक्खनको भी सचित्र जैनतिथिदर्पण ग्राहकों को समयपर मिल
खाने का निषेध किया है। भाजकलके शिक्षितोंमें सके इसलिये आगामी आश्विनके अंकके साथ ही भगवान् महावीरका नाम प्रगट. न होने का सब ग्राहकोंको तैयार करके भेन दिया जायगा। कारण उनके अनुयायी जैनियोंकी संकुचितहृद.
समी ग्राहकोंसे वीर सं० २४४९-५० यता है अन्यथा भगवान् महावीर ऐसे समाज विक्रम सं० १९७९-८० वर्ष १६-१७ सुधारक, तथा देश सुधारकके नामका महत्व अर्थात् दो वर्षका मूल्य वसुल करनेका है और मानकल किसीसे छिपा न होता। दो वर्षके दो उपहार ग्रंथ भी देनेके हैं वे तैयार हममे अभीतक कई 'महावीरचरित्र' देखे हैं, हो रहे हैं और एक माहके भीतर उनकी ३॥-) किंतु यह सबमें अच्छा ही नहीं प्रत्युत अपने की वी० पी० सब ग्राहकों को भेजी जायगी। ढंगका निराला है। यह पुस्तक ऐतिहासिक
जो १९८० में ग्राहक हुए हैं उनको १९८० दृष्टिसे इस प्रकार लिखी गई है कि जैनधर्म का ही उपहार भेजा जायगा। तथा जिसका सम्बन्धी अनेक बातोंका साधारण ज्ञान हो जाता मुल्य आया होगा उनको बुकपेकेटसे ग्रंथ भेजे है। पुस्तकमें जैन दर्शनका संक्षेप भी दिया जायंगे। दो अलग ग्रंथ भेटमें अवश्य दिये हुआ है । ग्रन्थ के देखने से विदित होता है कि जायंगे यह नि:संशय है । ग्राहकगण धैर्य रक्खें। लेखक माधुनिक- ऐतिहासिक आविष्कारों तथा
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दिगम्बर जैन ।
[ वर्ष १० जैनधर्मके अच्छे पण्डित हैं। ग्रन्थकी भादिमें भगवान महावीर-रचयिता बाबू काम२३ ऐतिहासिक ग्रंथों की सूची दी गई है तापप्ताद जैन, उपसंपादक "वीर" अलीगंज जिनकी सहायता लेखकने इस ग्रंथमें ली है। (एटा), प्रकाशक-मूलचंद किसनदास कापड़िया. लेखकने जैनियोंके 'कालचक्र' के सिद्धान्तको सूरत मूल्य १) पृष्ठ संख्या ३०० है। समझाते हुए यह बतलाया है कि तीर्थकर उक्त पुस्तकको लिखकर बाबू कामताप्रसाद कौन हैं ?' जैनधर्मका यह एक ऐसा सिद्धांत है जीने सच्चे प्रभावना अङ्गका पालन किया है । जो प्रायः सबको विदित होना चाहिये । इसके वास्तवमें जैनेतर लोगोंके मिथ्याभ्रमको हटानेके पश्चात् इस कल्पमें जैनधर्मके आदि प्रवर्तक श्री लिये ऐसे २ ग्रन्थोंकी बड़ी भारी आवश्यकता ऋषभदेवका चरित्र देकर श्री नेमिनाथनी, श्री है। इस ग्रन्थमें ३९ लेखों द्वारा परम पूज्य पार्श्वनाथजी तथा अवशेष तीर्थकरोंका चरित्र श्रीवीर प्रमुके चरित्रपर ऐतिहासिक खोनके ऐतिहासिक प्रकाश डालते हुए लिखा गया है। साथ अच्छा प्रकाश डाला गया है।
भगवान् महावीरके चरित्रचित्रणसे पूर्व भारत श्रीवीर भगवान्के विषयमें अन्य ऐतिहासिक वर्षकी 'तत्कालीन ऐतिहासिक परिस्थिति' का पुरुषों का क्या मत है इस विषयका सपमाण नकशा खींचा गया है, जिससे ग्रंथकी उपयो- वर्णन इस पुस्तकमें अच्छी तरह किया गया है। गिता बढ़ गयी है । भगवान् महावीरके चरित्र समस्त पुस्तक महात्माओंके वाक्योंसे ही पूरी को विस्तारपूर्वक ऐतिहासिक प्रमाणों द्वारा की गई है। प्रत्येक परिच्छेदके प्रारम्भमें अच्छे २ लिखने के पश्चात् इन्द्रभूति गौतम, सुधर्माचार्य श्लोक ब कविताएं हैं। म० बुद्धने भी प्रथम एवं अन्य शिष्य, महिलारत्न चन्दना, वारिषेण जैनधर्म धारण किया था और कठिन तपस्यासे मुनि, क्षत्रचूडामणि जीवंधर, जैनसम्राट् श्रेणिक घवड़ाकर भात्मज्ञानके अभावसे उन्होंने इसको [बिम्बसार| और चेटक, बुद्ध और मक्खाली छोड़कर एक मध्यम मार्ग चला लिया था इसका गोशालके चरित्रोंका वर्णन किया गया है। ग्रंथकी बर्णन "भगवान् महावीर और म० बुद्ध नामक समाप्तिमें दिगम्बर तथा श्वेताम्बर आश्रमोंकी लेखमें भलीभांति किया है । १७२ पृष्ठपर उत्पत्तिके समयपर विचार करके कुछ जैन लिखा है कि बौद्ध ग्रंथों में लिखा है कि जब राजाओंका वृत्तान्त दिया हुआ है। बुद्ध शाक्यभूमिको जारहे थे, तब उन्होंने देखा
इस प्रकार इस पुस्तकको इस समयका जैन कि पावामें नातपुत्त महावीरका निर्वाण होगया धर्मका इतिहाप्त कहना भी अयोग्य न होगा। है। इसके पश्चात् बुद्धने पुनः अपने धर्मका पुस्तककी छपाई तथा बाइंडिंग सभी अच्छी प्रचार किया था। महारानी चेलनाका भी संक्षिप्त है । हमारी सम्मतिमें प्रत्येक इतिहासप्रेमीको जीवन लिखा है। मंगानी चाहिये। "आज' काशी इस पुस्तकमें भगवान महावीर स्वामीके साथर ता. २८-८-१४ चन्द्रशेखर शास्त्री। कितने ही ऐतिहासिक व्यक्तियों का दिग्दर्शन
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दिगम्बर जैन |
अंक ११]
कराया गया है !
पाठकोंको उक्त पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिये व इसकी प्रति मंगाकर अजैन भाइयोंको वितरण करनी चहिए जिससे उनका भ्रम दूर हो और भगवान के पवित्र जीवनको समझे । स्व ० देवे न्द्रप्रसाद को यह पुस्तक समर्पण की गई है अतएव उनके प्रेमी जैनेतर विद्वानोंको भेटमें भेजनी चाहिये ।
“जैनमहिलादर्श” (सुरत) वर्ष १ अंक ६ वां अंतरीक्षजीके फौजदारी केस में हमारी जीत - गत अप्रेल मासमें श्वेतांबर समाजने दि० समाज पर यह फौजदारी केस बासीमकी कोर्ट के मांडा था कि दिगंबरीने मूर्तिका कंदोरा घिसकर निकाल दिया जिससे श्वेतांबर समाजकी धार्मिक लगनको दुखाया है । यह मामला अभीतक चलकर ता० २९ अगस्तको फैसला हुआ है उसमें दिगम्बरी निर्दोष ठहराये गये व मुकद्दमा दायर करनेवाले श्वे० मुनीम चतुर्भुनको १००) जुर्माना हुआ है। इस कैसमें हमारे दो वकील- जयकुमार देवीदास चवरे व मनोहर बापुनी महाजनने बिना फीस लिये पैरवी की थी जिसके लिये वे अपार धन्यवाद के पात्र हैं। हरएक तीर्थ केस में दिगम्बर ही वकील होने चाहिये ।
मुक्तागिरि क्षेत्र के संबंध में खापर्डेने बेतूल 'व होशंगाबाद कोर्ट में मुकद्दमा चलाया था वह खारिज हो गया जिसकी उन्होंने नागपुर हाईकोर्ट में अपील की है। अपीलमें मुकद्दमा फिरसे चलाने को कहा गया है ।
[ ७
*जैन समाचारावलि ।
बडवानी- में श्री बावनगजानीकी छत्रीका काम चालू है । करीब २५ फूट उंचा काम बन चुका है । इसमें सेठ रोडमल मेघराजजीका परिश्रम सराहनीय है ।
ललितपुर - में भादों वदी १३को त्यागी शिवप्रसादनीने क्षेत्रपालकी पाठशाळा के विद्यार्थी व पं० शीलचन्दजीका यज्ञोपवीत संस्कार कराया था । फिर शहर में सब भोजनार्थ गये थे तो पांच घर्मात्माओंने भोजन कराया था ।
लाडनूं - में बालकोंकी वचनशक्ति बढानेके लिये दि० जैन वाग्बर्द्धिनी बाल सभा स्थापित हुई है ।
फलटन - स्टेटने हुकम निकाला है कि कृषि व दुधैले जनावरी कमोके कारण कोई भी कसाईके दलालको ऐसे जानवर न वेचें । ऐसा लेने व बेचनेवालोंको २५) दंड अथवा केद होगी । गह हुकम छ माहके लिये अभी जरी हो चुका है ।
समडोली में मुनि श्री शांतिसागरजी (दक्षिण) के चातुर्मास से वहां चतुर्थकाल जैसा दृश्य हो रहा है। वहां ८-१० तो क्षुल्लक त्यागी व ब्रह्मचारी साथमें हैं तथा सेठ रावनी सखाराम सोलापुर, पं० बंशीधरनी आदि भी पर्युषणपर्व में वहां गये हैं ।
सुजानगढ में नित्य धर्मध्यानपूर्वक त्रिकाल पूजन होता है जैसा अभी कहीं भी सुनने में नहीं आया ।
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दिगम्बर जैन ।
[ वर्ष १. इन्दौर-में मुनि श्री शांतिसागरजीके चातु- २४४९ की रिपोर्ट सुनाई गई व विद्यार्थि ससे त्यागी व्रती पंडितोंका अच्छा समागम योंको पारितोषिक बांटा गया तथा दो न्यायतीर्थ हो गया है। इस पर्वमें पं. लक्ष्मीचन्दनी पास विद्यार्थियोंको रजतपदक दिये गये व लश्कर व न्यायाचार्य पं. माणिकचंदनी भी सभापतिजीने लड्डुओंकी प्रभावना बांटी व धर्म प्रभावनार्थ पधारे हैं।
आगामी अधिवेशनके लिये सेठ चंपालालजीने नागपुर प्रान्तिय-खंडेलवाल सभाका ९ आमंत्रण दिया। फिर ७ प्रस्ताव इस प्रकार वां अधिवेशन कार्तिक वदी ३-४-५को राम हुए। १-महाविद्यालयके ध्रौव्य फंडका हिसाब टेकमें होगा। स्वागतसमिति भी बन चुकी है। भेनने बाबत २-महाविद्यालयकी आमदनीकी
केशरियाजी-की पाठशालाकी परीक्षा महामंत्री महासभासे मांग ३-बजटके शेष रुपये ता० ४ अगस्तको पंच द्वारा लीगई तब ७७ भेजे जावें । १-बोर्डिगका स्थान संकुचित होनेसे मेंसे ६१ विद्यार्थी उपस्थित थे जिनमें से ३० बढानेके लिये सेठ चंपालालजी व कुंवर मोती ही पास हुए । विद्यार्थी विशेष हैं व अध्यापक लालजीसे प्रेरणा । ५-सेठ मोहनलालजी खुरबहुत कम है उसमें तो वह बिचारा १५ बालि- ईसे ५०००) विद्यालय के बाकी हैं वे मंगाये काओंको भी पढाता है। इसलिये एक विशेष जाय व बकाया पांच२ हजारकी स्वीकारता भी अध्यापक व अध्यापिकाकी आवश्यकता है ली जाय । १-विद्यालयके अधिष्ठाता ब. परन्तु द्रव्याभावसे वैसा नहीं हो सकता इसपर छोटेलालजी नियत - हों। ७-पास की गई तीर्थक्षेत्र कमेटी व समाजको ध्यान देना चाहिये। नियमावली छपाई जावे ।
भट्टारकका वियोग जैन कांचीमठ कुंथलगिरि-से कुलभूषण ब्रह्मचर्याश्रमके (दक्षिण के भट्टारक श्री लक्ष्मी से नजीका गत विद्यार्थी करीब सभी व अधिष्ठाता ब. पार्श्वता० ३ जुलाई को अकस्मात् स्वर्गवास हो गया। सागरनीको अकस्मात जोरजुल्मसे वहां के प्रबंधक प्राचीन स्मारकके आप बडे प्रेमी थे । अपने सेठ रावजी सखाराम (भूम) व सेठ कस्तूरचंद्रजी निवास स्थान चित्तपुर (गिन्गी द० आर्कट में परंढाने निकाल दिये हैं व भाश्रम छिन्नभिन्न आप तीन वर्ष हुए एक बडा मंदिर बनवा रहे हो गया है जिससे दि. जैन समानमें थे जो अधूरा है व उसमें तीन लाख रु. तो लग बडा भारी हाहाकार मच गया है। इनका चुके हैं। आप कोई शिष्य नहीं छोड गये। मावश्यक उपाय सोलापुर प्रान्त व तीर्थक्षेत्र जैन तामील जनताको इनके मठकी व्यवस्था कमेटी द्वारा होना ही चाहिये । ब्र पार्श्वसागकरनी चाहिये।
रजी अभी बार्सी में हैं व कई विद्यार्थी सोनापुर महाविद्यालय व्यावर-की प्र. कमे- बोर्डिगमें भेज दिये गये हैं। आश्रमकी यह टीकी बैठक भादों वदो ७ को रा. बा. बा० दशा अतीव दयाननक है। पाश्रमका सब माल नांदमलजीके सभापतित्वमें हुई थी जिसमें प्रथम असबाब भी छीन लिया गया है।
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अंक ११]
दिगम्बर जैन ।
FDOG 0 पर्युषण पर्व व स्वार्थमय विचार ।
. (ले०-५० दीपचन्दजी वर्णी-सागर।) नित्यके समान इस वर्ष में भी पर्युषण पर्व दाल रोटी चावल, इतनेपर भी कहीं घी नहीं, भागया। नरनारियोंको वस्त्राभूषण सम्हालने, कहीं दूध नहीं, लावे कौन, और लावें तो मेवा मिष्ठान्न मादि भोज्य पदार्थ एकत्र करने पेटीमेंसे कल्दार भंजाना पड़े। इस लिये अपना तथा अपने सगे सम्बन्धीजनोंको मिलने मिलाने तो यही निश्चय है कि सहकुटुम्ब कहीं चार आदिकी तैयारियां प्रारन्म हो गई । मंदिरों में महिनेको मा डटना और आनन्दसे बिताना, भी. यथासंभव सजावट बनावट दिखाई देने बाद ८ मासके लिये विदाई लाना बस साल लगी। संगीत करनेवाले गवेये, अपनी तान खतम् । महा हा ! कैसा अच्छा धंधा है। इसमें तलवारोंको सम्हालने लगे, क्योंकि कहीं ऐसा न पूंनी लगे, न हाथ पांव हिलाना पड़ें। न हो कि समय कंठ बैठ जाय धोखा दे जाय, बल्कि उल्टे पांव पूजे जाते हैं (मूछोंपर हाथ व्रत जाय तो भले पर आ इ ई इ में फेर न फेरता हुबा) अच्छा ठीक है (चिट्ठियोंको सम्हापड़े। लवंग पान तथा भंगभवानी चरस, मादिका कता हुवा) चिट्ठियां तो कई स्थानोंसे भाई हैं भी गुप्त प्रबन्ध होने लगा। यह सब हो रहा क्योंकि नाम तो प्रसिद हो गया है परन्तु यहां था कि पंडितजी महाराजने भी अपने पोथीके तो अब इन नवीन पंडितों के मारे नाकों दम है पत्रे सम्हाले, भूले भाले पाठोंको फिरसे नवीन क्या करें ? इन नये सुधारकोंने हम लोगोंपर किये । सोचने लगे, लोग बड़े मूर्ख हैं, कहते तो कुठाराघात किया है। जहां तहां प.ठशालाएं हैं कि चौमासेमें व्यापार नहीं होता, मालकी विद्यालय खोल२ कर सैकड़ों पंडित तैयार खपत नहीं होती, क्योंकि व्याह समैया नहीं कर दिये हैं और अब भी इनको संतोष होते, परन्तु हमारी सहारंग तो अभी भाई नहीं हुवा । नित्य नवीन पंडित बना रहे है। सालभरकी रोजी पैदा तो अभी होगी। हैं। ये लोग जहां तहां पहुंचकर पाठशा. जहां १० दिन अथवा १ माह और यदि कहीं लाएं खुलवाते हैं, स्वाध्यायका उपदेश देते हैं बहुत हुवा, तो चौमासा ठहर गये कि पौवारह। शास्त्र सभाएं करके, द्रव्यानुयोग चरणानुयोग सो अमल में तो १० दिन पyषणकी बात है। करणानुशेगादिके ग्रन्थोंको पढने परीक्षा प्रधानी और शेष दिन तो जैसे घर रहे वैसे ही वहां बननेका उपदेश करते हैं, इन लोगोंने तो रहना होता है किंतु घरसे भी कहीं बढ़चढ़कर गवढा दिया । यदि ऐसा ही चलता रहा, तो आराम मिलता है। क्योंकि घर पर तो वही हमारे जैसे निरक्षर भट्टाचार्यों में तो पेट पालना
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J
कठिन हो जायगा, क्योंकि इनके होते एक तो हमको कोई पूछेगा ही नहीं और यदि कहीं बुलाये गये गये भी तो ये लोग हमारी बात ही जमने न देंगे ( मुखाक्रांति मलिन होजाती है ) इत्यादि विचार ही रहे थे, कि उनके नौकरने बीच ही में छेड़ दिया ।
नौकर- अजी क्या हुवा ? जो आप १० मिनट पहिले तो मूंछपर हाथ फेर रहे और अभी २ अचानक चेहरा मलिन हो गया । देखो ये ही दिन तो कमाईके थे। कहीं चौमासा करते घरका खर्च बचता और लोगों पर भी बजन पडता सो यों ही बिता दिये, अब पर्युषण पर्व ही आगया सो कहीँका कुछ निश्चय हुवा क्या ?
दिगम्बर जैन ।
[ वर्ष १०
उड़ती है, मूर्ख ठहराये जाते हैं । इसीसे विचारमें पड़ा हूं कि पयूंषण में कहां जाऊं, जहां पूना प्रतिष्टा भी हो और द्रव्य प्राप्ति भी हो नौकर - पंडितजी, हमारी बात मानों तो कहें। पंडितजी - अरे भाई, हितकी बात होगी तो क्यों नहीं मानेंगे ? जल्दी कहो । नौकर - तब सुनो गुज....
पंडितजी - अहाहा अच्छी बात कही, मैं तो भूल ही गया था । निःसंदेह वह प्रांत बड़ा ही भोला है । भले ही वहां कुछ अंग्रेजी पढ़ने वाले हो गये हैं, परन्तु संस्कृत तथा धर्मशास्त्र पढ़नेवालोंका तो अभाव ही है । यद्यपि वहां पर स्व० सेठ माणिकचंद्रनी तथा दिगम्बर जैन प्रांतिय समाने अपने उपदेशकोंको भ्रमण कराकर सभावोंके अधिवेशन कर करके बहुत कुछ विद्याप्रचारके प्रयत्न किये और बहुत कुछ अंश में सफलता भी हुई है, परन्तु वह सफलता सफलता नहीं कही जा सकी है, क्योंकि वहां लोगोंके हृदय में यही बात भर रही है कि हम तौ व्यापारी हैं इस लिये अपनी जीविकाकी विद्या गुजराठी अंग्रेजी पढ़कर व्यापार व अंग्रेजी नौकरी में लग जाना ही हमारा कर्तव्य है, परम्परासे दर्शन करना चला जाता है करलेना, भक्तिपूर्वक अपने कुलगुरू भट्टारकों, पंडितों आदिका भोजनादिसे सत्कार करना, यही मात्र धर्म है। अधिक पढ़कर कुछ धर्मकी आजीविका नहीं करना है इत्यादि । यही कारण है कि आज सतत् प्रयत्न होनेपर भी गुजरात प्रांतने न तो अपने प्रांत में कोई संस्कृत विद्यालय ( जिसमें उच्च कोटिका साहित्य
पंडितजी -भई चेतू, तेरा कहना ठीक है। मैं पहिले तो प्रसन्न हुवा था किचलो चौमासा न सही, अपनमें तो वह ताकत है कि १० दिनमें ही पौबारड़ कर लेंगे परन्तु ज्यों ही इन सुधारकोंकी कर्तन पर ध्यान आया कि सब मजा किरकिरा हो गया । चिट्ठी तो कई हैं, परन्तु करें क्या ? हम तो ठहरे पुराने आदमी अपनी प्रथमानुयोगकी कथायें सुनाकर कुछ व्रत विधान उद्यापन, प्रतिष्ठादि करा लेते और अपना प्रयोजन साध लेते थे। लोग भी बिचारे भोले थे, जो कोई कुछ कहता तो राज़वार्तिक गोमट्टसार समयसारादिका नाम लेकर कोई २ बातें कह देते और वे लोग सत्य मान लेते थे, परन्तु अब तो बोलना ही कठिन हो गया है, शब्द बोलने से पहिले पंक्ति पृष्ट अध्याय बत ना चाहिये, उक्ति निरुक्ति, नय प्रमाण लगाना चाहिये । यदि ऐसा न कर सके तो हंसी
.
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दिगम्बर जैन |
अंक ११ ]
न्याय, व्याकरण, तथा धर्मशास्त्र पढ़ाया जाय ) ही खोला, और न कोई भी विद्यार्थी काशी, मोरेना, जबलपुर, सागर, व्यावर आदि विद्यालयोंमें भेजकर पढ़ाया । वास्तव में आधुनिक भट्टारकोंने तो हम लोगोंके लिये भारी उपकार . किया था अर्थात् उन्होंने तो अपने२ गच्छके शिष्यों (यजमानों) को और तो क्या अष्टद्रव्यसे पूजा करने तकका अधिकार नहीं दिया थी । फिर स्वाध्याय (शास्त्राभ्यास) करना, सूत्र पाठादि करने की तो बात ही क्या ? उन्होंने भय भी अच्छा दिला रक्खा था “ कि जो गृहस्थ पूजा करे व स्वाध्याय करेगा, उसका नखोज जायगा " 1
था,
वे तो
यही तो बात है कि गुजरात में पहिले अष्टद्रव्यकी पूजाका प्रचार न अब भी बहुतसे स्थानों में नहीं है । जलादिसे अभिषेक करके चरणोंपर केशर तथा पुष्प चढ़ा देने मात्रको ही पूजा समझते थे, इसी कारण वहां कई मंदिरोंमें अष्टद्रव्यसे पूजा करनेके योग्य न तो बर्तन ( वासन ) ही पाये जाते थे और न पूजा तककी पुस्तकें यद्यपि तेरापंथने बड़ी उछल कूद मचाई और लोगों को अपने पैरोंपर खड़े होने का उपदेश दिया अर्थात् गृहस्थोंको देवपूजा तथा स्वाध्याय करने पर उत्तेजित किया और इस कार्य में सफल भी हुवे, परन्तु केवल उत्तरके प्रांतों हीमें । दक्षिण और गुजरात इनके चंगुल में न फंसा 1 यहां तो भट्टारकोंकी ही तूती बोलती रही। इसके बाद इन सभावोंने अपना राग अलापा, इत्यादि सब हुवा, परन्तु हमारे प्रिय गुजरात
१५ वर्ष
और
[११
प्रांत पर लेश भी प्रभाव न पड़ा। यद्यपि मे लोग भी सभायें कर कर प्रस्ताव कर लेते हैं परन्तु हमारे पुण्योदयसे इनके अंतःकरण में संस्कृतके प्रौढ विद्वान् तैयार करके धर्मतत्वोंके प्रचार करने का भाव हो ही नहीं सक्ता है ।
0
नौ ० - अजी पंडितजी महाराज, आपने सुना है कि नहीं कि अबके वैशाख मास में लग्नसारा पर सोंजित्रा में मेवाडा भाइयोंके समक्ष जाकर सेठ मूळचंदजी कापडिया, छोटालाल घेलाभाई गांधोनी तथा सरैयानेज गुजरात में एक ब्रह्मचर्याश्रम खोलनेकी आवश्यकता बताई तो ऐसा ब्रह्मचर्याश्रम पावागढ़ क्षेत्र पर खोलने का निश्चय होरहा है व बहुत से मेवाडा भाई इसमें सहायता देने को भी तैयार हुए हैं ।
पं० - क्या कहा? गुरुकुल ! गुजरात में ! असंभव १ सर्वथा असंभव !
नौ ० - जी नहीं, निश्चय हो रहा है । पं० - तुझे पक्का मालूम है ? नौ ० - जी हां ।
पं.- .तबतो......... परन्तु चिंता नहीं चाहे जो खुले संस्कृत व उच्च तत्त्वज्ञान तो वहां होना ही नहीं है । वह भी १ साधारण बोर्डिंग या पाठशाला ही समझिये. क्योकि ये लोग ६० साठ सत्तर रुपया मासिक वेतन न अध्यापकों को देंगे न योग्य शिक्षा मिलेगी । ये लोग देखेंगे थोडे वेतनवाला कोई १ अध्यापक और चाहिये कमसे कम तीन चार पूर्ण विद्वान अध्यापक, अनुभवी बयोवृद्ध धर्मका दृढ़ श्रद्धानी जैन सुपरिन्टेन्डेन्ट, जैन रसोइये, पुस्तक भंडार और प्रतिज्ञा पूर्वक कमसे कम ८ वर्ष पढ़नेवाले
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दिगम्बर जैन ।
११]
रीतिसे
मुंडन
तीव्र बुद्धि विद्यार्थी नो गुरुकुलकी धोती डुपडा पहिनकर चोटी रखकर कराकर सादगी से रह सकें । सो तुम जानते हो, गुजरात फेशनपसन्द देश है । यद्यपि महात्मा गांधी की आंधी वहां बहुत चली परन्तु हमारी जैन समाज पर उसका बहुत ही कम प्रभाव पड़ा क्योंकि इनको चाहिये बढिया मेनचेष्टरकी घोतियां, साढियां आदि क्योंकि खादी से इनका शरीर छिलता है । चर्खा चलानेमें हाथ दुखते हैं, सेठाई जाती है इस लिये हमको कुछ चिंता नहीं। हम तो पर्यूषण में गुजरात ही में जावेंगे, और ऐसा प्रयत्न करेंगे कि जिससे या तो वह गुरुकुल गर्भ से बाहर ही न आबे और यदि जन्म ले भी ले तो भी बाल्य या वृद्धावस्था के निर्बल माता पिताकी संतान के समान निर्बक और अल्प वयस्क रहे । नहीं मालुम ये लोग (सुधारक) क्यों हमारी अभीविका शत्रु बन रहे हैं ? सोचो तो कि जब ये लोग पढ नावेंगे तो हमारी पूछतांछ कहां रहेगी ? अभी तो हम लोग अंधों में कानेक समान राजा हैं, प्रभू हमारी रक्षा करो, जैसे बने ऐसे इस प्रतिमें संस्कृत व उच्च कोटिका तत्वज्ञान चारों अनुयोंगो का वास्तविक मर्म ज्ञान न फैलने पावे इसी में हमारा भला है ।
नौ० - तो महाराज शीघ्र चलकर उपाय करो नहीं तो फिर कुछ हाथ न आवेगा, क्यों कि सुना है गुजराती बातके पक्के होते हैं ।
[ वर्षे १७
है ये तो वसंत ऋतुके वादल केवल गर्जनेवालें न कि वरसनेवाले हैं । तो भी उपाय करना ही चाहिये । अच्छा चलो आज ही । नौ ० - जी चलिये ( दोनों जाते हैं )
पं० - सो तो कुछ बात नहीं है। बड़े बूढ़े सब हमारे कब्जे में हैं और द्रव्य देनेवाले भी वे ही हैं । और अभी कोई धौव्य द्रव्य तो हुवा नहीं I
नोट- उपर्युक्त स्वार्थी पंडित व उनके नौकरकी बातचीत परसे हमारे गुजरातके भाइयोंको चाहिये कि वे अपने आदर्श पर दृढ़ होकर कार्य करें और गुरुकुल जिसमें कमसे
कम ९० बालक लाभ लेकर उच्च कोटिका धर्मशास्त्र, न्याय, व्याकरण और साहित्यके प्रौढ विद्वान तैयार होते रहें, ऐसा प्रयत्न करना चाहिये | गुजराती भाइयों को ऐसे कार्य के लिये लाख पौनलाख रुपया एकत्र करलेना वायें हाथका खेल है, क्योंकि वहांके भाई सरल स्वभावी तथा श्रद्धानी व भक्त हैं । आशा है समस्त गुजरात उक्त गुरुकुलके प्रस्तावको अपनाकर इस पर्युषण पर्व में उसे चिरस्थायी रूपेण शीघ्र खोलने के लिये शक्तिको न छिपाकर द्रव्य प्रदान करेगा और शीघ्र खुलवाकर गुजरात परसे अज्ञानका लांछन दूर करेगा । पावागढ स्थान बहुत उत्तम है - गुरुकुल योग्य है ।
दीपचंद वर्णी ।
शु•
• * * * *
पूजन के लिये खातरीलायक -
पवित्र काश्मीरी केशरमगाईये । मूल्य ३) फी तोला । पॅनेजर- दि० जैन पुस्तकालय - सुर
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अंक ११]
जाति नं०
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* वर्तमानकाल और जैनधर्मकी आवश्यक्ता ।
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हमारे बहुतसे भाई जैनधर्मकी इसीलिए निंदा करते हैं कि वह दव्वूपन और कायरताके बीज बोकर मनुष्यों में क्षत्रियोचित भावको हटा देता है । पर ऐसा सोचना उनकी भूल है । भारतवर्षका इतिहास इस बातकी साक्षी नहीं देता । प्रतापशाली जैनी राजा चन्द्रगुप्तको कौन नहीं जानता और कौन नहीं जानता कि यूनानी सेनाको परास्तकर उसने भारत में अपना अखण्ड राज्य स्थापित किया था । कौन नहीं जानता कि ऐसे समय में वीरोचित कार्य करके उसने भारतवर्षकी रक्षा की थी । महाराजा खारवेल और अमोघवर्ष भी ऐसे ही
૧
(लेखक:- बा० हजारीलाल जैन बी० ए० रिसालकाबास - भागरा ) ( गतांक से आगे )
वस्तुका नाम
*******
चावल चने
( मनुष्यके योग्य कुदरती खुराकसे उद्धृत )
मांस और वनस्पतिके पृथक्करणका कोष्टक (Table )
मक्का
तूवर
मसुर
मूंग वटाणे
गुवारफळी
दिगम्बर जैन
जल
१३.५
१२.४.
१०.४
*ECE
१३.१०
९.०
१२.०
९.९
९.५
११.८
मांस बनाने
वाला तत्व
१३.८
७.६
१५.६
1
९.८५
२१.९
२५.०
२५.५.
२४.६
२९.९
प्रतापशाली राजा हो गये हैं । एकने करीब २ सभी पश्चिम और दक्षिण भारतके राजाओंको परास्तकर अपना प्रभुत्व स्थापित किया था और दूसरेने अपने व्यापार कौशल से दूर २ देशोंसे भी सम्बन्ध जोडा था । वीरता कोई मांस खाने हीसे नहीं आती । यह तो पृरुषका स्वाभाविक धर्म है । अगर ऐसी बात न हो तो आप नपुंसकको कितना ही मांस क्यों न खिलावें परन्तु वक्त पडने पर वह अवश्य भाग जायगा । अब हम आपको निम्नलिखित कोष्टक द्वारा यह बतलावेंगे कि पौष्टिक तत्त्व मांसमें अधिक है या फलादिकमें
चिकनाई मिठाई क्षार
१.९
0.8
६.११
४.६०
१.६
१.९
२.८
१.०
१.४
६९.१
६८.९
२.०
१.२
६३.६. ३.०
६८.५
१.५
६४.६
२.९
५८.३
५५.७ ३.२
६२.०
५३.९
३.१
7
ક્
पौष्टिक तत्व
९८.०
९८.१
१२४.३
१००.६
१०१.०
९९.५
११८.७
૧૦૧૦
९७७
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दिगम्बर जैन ।
[वर्ष १०
जाति
वस्तुका नाम
जल
मीस बनाने वाला तत्त्व
क्षार
पौष्टिक तत्व
6
૧૧.૧ १५.०
९५.८ ૧૨૧.૬ १५.०
. ..
.
२.२
૨૧.૬
शाकभाजी
. .
AWNo
४.१
बालोल भिडी कोल्हा टमाटर कांदा भाजी गाजर भसका दूध पनीर खापरा
८६..
.
.
3.५
.
.
૧.૨
४.०
दूघ
४४.०८
७.1 १५.९५ ५०.६
५.७२
१०.२ १२.५ २८.५ १००.८ १६५.९ २८.१ २१.८
१५.० ७५.१
फल
.१.३
.
.
अंजीर मटन
१४.।
.
.
मांस
मुर्गी मछली
२१.० ११.९
०.२
१४.०
अंडे
१४...
|
६०.५
उपर्योक्त कोष्टकसे आपको यह पता लग वनस्पतिके आहार करनेवाले मांसाहारी बाल जावेगा कि धान्य, शाकभाजी और फलों में कोंसे अधिक तन्दुरस्त, बजनमें विशेष और मांससे दुगुने और तिगुनेका फर्क है। मटन, स्वच्छ चमड़ीवाले थे । मछली, मुर्गी और अंडे में क्रमशः ५३.८, हाय ! यह देखकर हमें कितना दुःख होता १४.०, ५३.९, और १३.४. ही पौष्टिक है कि इन्द्रियलोलुपी मनुष्य अपने स्वार्थवश तत्व है पर चना, मक्का, तूबर, मूंग, भिंडी, देवीके नामपर सैकड़ों प्राणियोंका संहार करते पनीर और खोपरामें क्रमशः १२४.३, १००.६, हैं। बहुतसे तो यह मनौती करते हैं कि 'हे १०१.०, ११८.७, १२१.६, १००.८, माताजी ! यदि मेरा पुत्र अमुक रोगसे अच्छा १६५.९, पौष्टिक तत्व है। यही नहीं हम होजाय तो मैं एक बकरी चढाऊंगा। भला
आपको एक और बिलायतके डाक्टरका इसी किसीने आज तक देवीको मांसभक्षण करते विषयमें प्रमाण देते हैं । सन् १९०८में डाक्टर देखा भी है. ? यदि नहीं, तो फिर देवीका नाम निकलसनने १०.०० कड़कोंको छ: महीने क्यों बदनाम. करते हो ?'देवीको लोग 'जगदम्बा' तक फलादिका भोजन कराया और किसी नामसे पुकारते हैं। क्या कभी किसीने ऐसा भी दूसरे डाक्टरने इतने ही लडकोंको मांसाहार • मुना है कि कोई माता अपने बचको खा जाती पर रक्खा। छः महीने पश्चात जांच करने पर हो। उस देवीके लिये तो समस्त संसारके प्राणी
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अंक ११]
दिगम्बर जैन । बालक-पुत्रवत हैं फिर भला वह ऐसा क्यों जैसे कि सिंहव्याघ्रादिके और न वे.निहासे चाहने लगी और क्या मनोती सर्वदा सफलीभूत ही उतना काम लेते हैं जितना कि मुखसे । ही होती है ? यदि देवी किसीको मरनेसे बचा हमारे दांत नुकीले और चीडफाडकर खानेके दे तो ऐसा कौनसा प्राणी है जो मरनेकी इच्छा योग्य नहीं हैं। मांस खानेवाले प्रायः नासुर, करता हो ! धन, स्त्री मां और बाप इन सबसे क्षय, ज्वर और अंतीडीकी बीमारीसे मरते हैं। बढ़कर प्राण प्यारे हैं।
मिस्टर जोनबुडका कहना है कि “ I main"माता पासे बेक्ष मांगे, कर बकरेका सांटा। tain that flesh-eating is unnecessary, अपना पृत खिलाबन चाहे पूत देजे का काटा। unnatural and unwholesome.' अर्थात्
हो दिवानी दुनियां"। मैं दावेके साथ कहता है कि मांस भक्षण करना दुसरेका बुरा चाहकर क्या कभी किसीका निरुपयोगी, कुदरतके विरुद्ध और रोगोंको भला हुमा है ? जो एक बार किसीकी हत्या उत्पन्न करनेवाला है। हमें केवल शुद्ध सात्विक कर डालते हैं उनका हृदय बजका सा कठोर और उपयोगी भोजन करना चाहिए क्योंकि हो जाता है-हाथ नीचसे भी नीच कर्म करनेमें कहावत भी मशहूर है "जैसा आहार वैसा नहीं हिचकते। लोग यहां पर कह सकते हैं कि विचार " माप जैसा भोजन करेंगे वैसी ही साहब ! हम मारते नहीं इस लिए हमें खानेमें सदा आपकी भावनाएं बनी रहेंगी। क्या दोष ? पर इसके उत्तरमें हमारा नम्र इस महिंसा धर्मको सिर्फ जैनियोंने ही नहीं निवेदन है कि यदि आप खावें नहीं तो कसाई किन्तु प्रायः सभी धर्मावलम्बियोंने अंगीकार उन निरपराध प्राणियोंका वध ही क्यों करें ? किया है। अब हम यहां पर शास्त्रोंके कुछ एक शास्त्रकारने एक जीवके पीछे भाठ मनुष्य वाक्य उद्धृत करते हैं । जिससे साफ प्रगट हो पापके भागी बताए हैं सो बहुत ही ठीक है। जावेगा कि विशाल अहिंसामय धर्मके अनुसार उसका कहना है:
आचरण करनेसे ही आत्माको शांति मिल "अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रिय विक्रयी। सकती है। संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः॥"
“यो बंधनवधक्लेशान् प्राणिनां न चिकीर्षति । अर्थात् “ मारनेमें सलाह देनेवाला, शत्रसेस सर्वस्य हितप्रेप्नुः सुखमत्यन्तमश्नुते ॥" मरे हुए जीवोंके अवयवोंको पृथक करनेवाला,
__ (मनुस्मंति) मारनेवाला, मोललेनेवाला, बेचनेवाला, संवार "देवापहार व्याजेन यज्ञव्याजन येऽथवा । नेवाला, पकानेवाला, और खानेवाला ये सब नन्ति जन्तून मतघ्रणा घोरांते यान्ति दुर्गतिम् ॥ घातक ही कहलाते हैं।"
"सर्वे वेदा न त कुर्युः सर्वे यज्ञाश्च भारत। मांसाहारियों की बासनाऐं सदा खोटी रहा सतीर्धाभिषेकाश्च यत् कुर्यातप्राणिनांदया। करती हैं। मनुष्य के दांत ऐसे नहीं बने हुए हैं
(महाभारत"
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दिगम्बर जैन ।
[वर्ष १. भब हम इस विषयमें अधिक न लिखकर तो देखते हैं कि बे जनावर शीघ्र ही उसे खा अंगरेजीके प्रसिद्ध विश्वकोष 'इनसाइक्लोपीडिया जाते हैं और उनके मांससे एक भादमीका सालब्रिटनिका' में मांसाहार परित्यागकें विषयमें जो भर तक भोजन निर्वाह होना मुश्किल है। कुछ लिखा है उसका सारांश लिखे देते हैं। (१) जातीय उन्नति-सभी सभ्य जातिमाशा है उपर्योक्त विचारोंसे हमारे सभी भाई ओंका यह उद्देश्य होना चाहिए कि हमारी हिंसात्मक क्रियाओंसे घृणा करने लगेंगे। जातिमें अधिक परिश्रमी और कार्यक्षम व्यक्ति मांसाहार परित्यागके कुछ लाभ । उत्पन्न हों और उनकी संख्याकी उत्तरोत्तर
(१) स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभ-जो वृद्धि हो, यह तभी संभव है जब कि लोग लोग मांसाहार करते हैं, संभव है कि उन्हें वे अधिक शाकाहार करें । ऐसा करनेसे यह होगा रोग पकडलें जो कि उस पशूके शरीरमें रहे हों कि ज्योंर निरामिष भोजन करनेवालोंकी संजिसका मांस वे खाते हैं। इसके अतिरिक्त जो ख्या बढ़ेगी त्यों२ कृषक लोग अधिक परिश्रम पशु अपने नैसर्गिक भोजन घासके अतिरिक्त करके अन्न उत्पन्न करनेकी चेष्टा करेंगे और
और पदार्थ खाते हैं उनका मांस खानेवाले इस प्रकारसे उस जाति या समाजमें अधिक बहुधा गठिा , वात, पक्षाघात प्रभृति बात परिश्रमी लोग उत्पन्न होंगे। , विकारोंसे उत्पन्न रे गोंसे आक्रान्त होते हैं। (५) चारित्रिक उन्नति-जिस मनुष्य
(२) अर्थशास्त्र सम्बन्धी लाभ- में साहस, वीरता और निर्भयता भादि गुण फलाहारकी अपेक्षा मांसाहार अधिक खर्चीला भारम्भमें माचुके हों उसे उचित है कि ज्यों होता है । जितने में दो चार आदमी खा सकते उसका ज्ञान बढता जाय त्यों ९ मनुष्यता सीखे हैं मांसाहारकी व्यवस्था करनेसे एक भादमीको और पीड़ित जीवोंके साथ सहानुभूति करने का भी पूरा नहीं पडेगा।
___अभ्यास पैदा करे । अतएव चूकि निरामिष (१) सामाजिक लाभ-एक एकड भूमिः माहार करनेसे, मांसाहार पशुओंपर जो अत्यामें धान, गेंहू आदि बोएनाय तो उसमें उत्पन्न चार किया जाता है और उन्हें पीडा. पहुंचाई अन्नसे जितने मनुष्य भोजनकर सकेंगे वही जाती है वह दूर हो जायगी इस लिए मांसाहार पैदावर यदि माहारोपयोगी पशुओंको खिला दी प्रवृत्तिका अवरोध करना ही सर्वथा उचित है। जाय तो उन पशुओंके मांससे उतने मनुष्योंका
(अहिंसा दिग्दर्शनसे) पेट नहीं भरेगा । जैसे, मान लीजिये कि एक अब हम यहां पर संक्षेपमें यह बतलावेंगे कि एकड भूमिमें सौ मन धान पैदा हुआ उसे एक इस समय भारतवर्षको ही नहीं किन्तु समस्त मनुष्य सालभर अपने सारे परिवार वर्गोके संसारको इस पवित्र अहिंसा धर्मके अनुसार साथ खाता है, लेकिन यदि हम दश पशु पालते माचरण करनेकी परम मावश्यकता है। हैं और उनको उतनी भूमि निकाल दी है महात्मा गांधीजीने सरकारसे असह
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अंक ११]
दिगम्बर जैन । योगकी कडाई छेड दी। कांग्रेसमें इस प्रस्ता तो यह कदापि सम्भव नहीं कि दूसग व्यर्थ वके पास होनेपर छोटे बड़े प्रायः सभी भारतीय ही हमें नष्ट करनेको उतारू हो । जैनधर्म यही पुरुष और स्त्रियोंने उस प्रस्तावके अनुसार कार्य उपदेश देता है कि मन वचन और कायसे करना अपना परम धर्म समझा। जहां देखो तहां सबकी भलाईका ध्यान रक्खो। प्रतिदिनकी राष्ट्रीय झंडा दिखलाई देता था। स्कूल पूनामें भी इसी मंत्रके अनुसार भाचरण करनेके और कालेजोंसे हमारों विद्यार्थी अपने २ लिए हमारे पूज्य महात्माओंका उपदेश है:स्वार्थको छोडकर जंगमें आभिडे थे । जिधर "क्षेमं सर्व प्रजानां प्रभवतु बलवान् देखो उधर चर्वे ही की तूती बोली जाती
धार्मिको भूमिपालः । थी। क्या गरीब और क्या अमीर सभीने काले काले च सम्यग्वर्षतु मघवा खद्दर पहिनना अपना धर्म समझा । स्वरा.
व्याधयो यान्तु नाशम् ॥ ज्यके गीत गाए जाते थे और गांवके लोग
दुर्भिक्षं चौर मारी क्षणमपि जगतां इस दिनको ताकते थे जिस दिन इस पवित्र जैनन्द्रं धर्मचक्र प्रभवतु सततं सर्व सौख्य
____ मास्मभूज्जीवलोके । भूमिमें वे स्वराज्यको अपनी मांखोंसे देखलें ।
प्रदायी ॥" पर असलमें वह लडाई किसो जाति विशेषसे दूसरा जैनधर्मका मुख्य उपदेश यह है कि न थी। वह शांतिमय और अहिंसामय युद्ध तुम्हारी मात्मा अनन्त ज्ञान, मुख, वीर्य और था। वह मात्मिक शक्तिकी वृद्धि करानेके लिये दर्शनमयी है । तुम चाहो तो इस संसारके परम अस्त्र था और उप्तीमें कुछ इनेगिने महा- समस्त पदार्थों-तीनों कालोंकी भूत, भविष्यत शयोंको छोड़कर हम भारतीय असफल हुए। और वर्तमान पर्यायोंको 'दर्पण इव' जान सकते हिन्दु मुसलमानोंसे लडने लगे और मुसलमान हो । निप्त प्रकार दर्पणमें नेता मुख होगा हिन्दुओं का सत्यानाश करनेके लिये कटिबद्ध वैसा ही दिखलाई देगा, उसी प्रकार तुम्हें मंसार हो गए। ताजिओंके वक्त या अन्य किसी के समस्त पदार्थ साफ दिखलाई दे सकते हैं । हिन्दू त्योहार पर यह दृश्य देखने में आता है। तुम चाहो तो तुम उसी अवस्थाको प्राप्त हो अगर सर्कारी अफसर जरा भी छेड छाडी करें सकते हो जिप अवस्थाको तुम्हारे तीर्थकर तो लोग उनसे लड़ने में या उनका बु । चितवन (भगवान) प्राप्त हुए हैं । संक्षेपमें तुम्ही कर्मों के करने ही में अपने को कट्टर अप्सहयोगी समझते भोक्ता और तुम्ही कर्मोके कर्ता हो। यदि थे । महात्माजीने इस पर कितनी बार दुःख तुम्हारे कर्म शुभ होंगे । तुम्हें शुभ गति मिलेगी प्रकट न किया होगा। पर वह पारस्परिक और यदि अशुम हुए तो अशुभ गति मिलेगी। वैमनस्य बढ़ता ही गया और आन हम अपनेको दुपरे धर्मावलम्बी इस बातको बतलाते हैं कि उसी स्थलपर देखते हैं जिस स्थलपर कि पूर्वमें यदि कोका क्षय करते २ तुम बढ़ो तो भी तुम थे । यदि हम किसीका बुरा चितवन न करें ईश्वरावस्थाको प्राप्त नहीं हो सकते हां, उनके
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१८]
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[ वर्ष १० प्रिय अवश्य हो जाओगे । ईश्वर एक है पर छोड़कर प्रेमपूर्वक एक दुसरेको अपनाएं, उनकी जैनधर्म, इसके विपरीत, उपदेश देता है कि वृद्धि में प्रसन्न और दुःख में दुःखी हों तो यह संसार यदि तुम कष्ट उठानेको तत्पर हो, विघ्नबा- स्वर्ग हो जाय । जैन धर्म भी इसी बातका उपधाओंको सहने के लिए उद्यत हो, ज्ञानावरणी, देश देता है । अंतमें हम अपने सब भाइयोंसे दर्शनावरणो, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, प्रार्थना करेंगे कि वे जैन शास्त्रोंका अध्ययन करें गोत्र और अन्तराय इन आठों कर्मों को नष्ट जिससे इस धर्मकी बखूबियोंको वे समझ सकें कर सको तो उसी पदको प्राप्त कर सकोगे। और स्व तथा पर कल्याण भी कर सकें । इति ।
और बात भी ठीक है, व्यवहारमें भी ऐसा ही होता है। यदि दो विद्यार्थी एक ही नम्बर
उपालम्भ। प्राप्त करें तो दोनोंको एकप्ता ही स्थान मिकता
(१) है, तो दो पुरुष यदि एक ही गुणोंको प्राप्त
पाप पङ्कमें फंसे हुएको । कर सकें तो उन्हें एक ही स्थान क्यों न मिले।
घुसा न देते नहीं हो निकालने ॥ जैनधर्म मुख्यतः शांतिरसका उपदेश देता तड़फा रहे हृदय-मीनको सदा, नहै। इसकी क्रियाके अनुसार आचरण करनेसे
कृपा-वारि देते, निष्प्राण करते ॥
( २ ) सुख और शांति मिल सकती है । यूरोपवालोंने
न आदेश कुछ भी उस पंकको ही। 'राष्ट्रमंघ' (League & Nations) स्थापित
-देते, व उसको कुछ बुद्धि ही है। कर संसार में शांति देने की घोषणा कर दी है।
___ इससे न उसको कुछ द्रव्य ही मिला । इसका मुख्य उद्देश्य छोटे २ राष्ट्रोंकी सत्ता और मिलती न समता व कुछ ऋद्धि ही है। अधिकारों की रक्षा करना है पर उप्त संघने क्या कर दिखाया यह हमारी समझमें नहीं आता। झगड़ा हमारा प्रभो । देखते हो। 'वार फीवर' (युद्धकी आशंका) बढता ही जाता हमको सिखाते, मुखाते उसे या ॥ है । यदि शिक्षा विभाग स्वास्थ्य और २ भी हंसते, हमें देख, करुणा न करते ।। भावश्यकीय चीनों पर १ रूपया खर्च हो तो व करते न क्यों पार सुधार ही या॥ युद्धी सामग्री, सेनादि रखने के लिए तीन
-न्द्रान्त। . रुपया खर्चा होता है । क्या इस तरहसे कभी 40 me peox@KRONARAS शांति स्थापित हो सकती है ? A guilt & पूजन के लिये खातरीलायकmind is always sushious' अंग्रेनीमें पवित्र काश्मीरी केशरकहावत प्रसिद्ध है। अर्थात् दोषोको सर्वदा मगाईये। मूल्य ३) की तोला। आशंका बनी रहती है। . .
* पमना-द जन पुस्तकालय-सूरत यदि आन हमारे भाई पारस्परिक वैमनस्य 8 %
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अंक ११ ]
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KKKKKKKKKKKK * कपूर । *
TRAATTNTTTÆR सब लोग प्रायः यह न जानते होंगे कि कपूर क्या चीज है, किस तरह बनाया जाता है और कहां से आता है । कपूर एक प्रकारका तेल है जो कपूर के पेड की लकडीसे निकलता है, इम ते में दस हिस्सा कारबन और सोलइ हिस्सा
हाइड्रोजन और एक हिस्सा आक्सीजन होता है । कपूर बनाने में इस तेलसे आक्सीजनका भाग मलग करना होता है | कपूर १७१ दर्जा सेन्टीग्रेट पर पिघलता है और १०४ दनेकी गरमी पर उडता है | यह बेरंग और स्फुटिक और सुगन्धित होता है और पानी में तैरता है, तेज आंच में भडक उठता है और अलकोहल स्पिरिटमें गल जाता है । एक पौन्ड यानी भाष सेर रेक्टीफाइड स्पिरिटमें करीब डेढ छटाक कपूर मिला देने से गल जाता है। और यह बहुत अच्छा अर्क कपूर बन जाता है। हैजे की बीमारी के लिये मर्क कपूर बहुत अच्छी दवा है ।
चीन और जापान कपूरकी पैदायशकी खास जगह है। चीन में कम पैदा होता है और जितना पैदा होता है वहीं खर्च हो जाता है । चीन में कपूरकी लकडीके सन्दुक बहुत बनाये जाते हैं और मध्य एशियाके मुल्कोंमें बडी कदर और कीमत से बिकते हैं। उन देशोंमें घते बालवाले जानवरोंके चमडेकी पोशाक पहिननेका बहुत चलन है, जिनमें कीडे बहुत लगते हैं और केवल कपूरकी लकडीके सन्दूकोंमें रखने से इन कीडों से बचत और हिफाज़त रहती है ।
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चीनसे जापान में कपूरकी बहुत अधिक पैदाबार होती है और जिस जगह से कुल दुनिया में कपूर जाता है उनका नाम फारमूसा है । यह टापू चीन सागर में है, इसके असल बाशिन्दे मृगलियन नस्लके हैं । इन चीनियोंने असल बाशिन्दोंको मारकर जंगलमें हका दिया है जहां पर वे अब भी रहते हैं और चीनियोंके साथ हमेशा फवाद और मुकाबिलापर अमादा रहते हैं। इस टापू बहुत ऊंचे ऊंचे पहाड़ हैं और पहाडोंपर घने जंगल हैं । जंगलों में बांस और दूसरी तरह के जगली पेड हैं । इन्हीं जंगलोंके ऊंचे स्थानोंपर कपूरके पेड बहुतायतसे होते हैं।
1
कपूरका पेड सैकडों बर्ष तक हरा भरा रहता है, यहां तक कि दो हजार वर्ष तक के पेड अब तक मौजूद हैं । इसके पत्ते चौडे, मोटे, गहरे २ रंगके होते हैं । पेड बहुत मोटा और ऊंचा होता है जो शाहतलूतके पेडसे बहुत मिळता जुलता है । इसकी लकडी रंग और बनावटमें आपकी तरह होती है। कपूर पेडकी जडमें बहुतायत से लेकिन पेडी और शाखों में बहुत कम निकलता है । लकडीके टुकडोंको पानीमें खूब पकाते हैं और उस पानीको मिट्टीके बरतनोंमें रख देते हैं. ठंढे होनेपर कपूर बरतनों में चिमट जाता है, पानी बढा देते हैं और कपूर खुरचकर कारखानेदारोंके हाथ बेच डालते हैं । यह कारखाने भी उसी जंगल में है । कारखानेदार कपूरको खूब पकाते और साफ करते हैं और फिर उसे बन्दरगाह टोई चोशियाको भेनते हैं । फारमुप्ताके टापूमें यह नामी बन्दरगाह है। यहां अंग्रेज और यूरोपकी बहुत
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सीतियां आबाद हैं जो कपूर और चायका व्यापार करती है । इस बंदरगाहसे कार अमे रिका, जर्मनी और जापानको जाता है, जहां यह फिर साफ किया जाता है और दुनियाभरके बाजारों में बिकता है ।
कपूर बहुतसे काम में आता है। धार्मिक अनु ष्ठानों में यह बहुत इस्तेमाल होता है । कपूरकी मालायें और जलाने की बत्तियां भी बनती हैं । औषधियों में यह बहुत जगह काम आता है । आजकल बगैर धुयेंकी बारूद कपूर से बनाई जाने लगी है। कपूरकी सुगंधिसे खराब हवा शुद्ध और साफ हो जाती है । बहुत तरहके कीड़ा और बिमारियोंके जर्म इसकी गंधिसे भागते और मर जाते हैं। जिन दिनों छुआछुतकी बीमारियां फैलती हैं, बहुत लोग इसकी | डालियां अपने कपडों और जेबोंमें रखते हैं । " जयाजी प्रताप"
जैन समाज ।
प्यारी समाज तेरा, कैसे सुधार होगा । इस अवन्तीसे तेरा, वैसे उद्धार होगा ||टेक तू फूट कर रही है, आपस में लड़ रही है। नहिं एकता पकड़ती कैसे निस्तार होगा ||
लवन्दी कर रही तू, कषाएं बढ़ा रही तु | शांति भुला रही तू, दुखका न पार होगा || क्या जानती नहीं है, इस फूटका नतीजा । भारत हुआ विगाना, तुझको भी याद होगा | अब मान, फूट तनदे, तू एकताको भज ले । क्या “प्रेम” का निवेदन, तुझको स्वीकार होगा ॥ प्रेमचन्द पंचरत्न - भिंड |
पर्युषण पर्व
।
[ वर्षे १७
JXXXIY
( लेखक - पं० प्रेमचन्द पंचरत्न - भिंड | ) देखो पर्युषण पर्व प्यारा आगया ।
जैनियों के हृदय आनंद छा गया ॥ करो स्वागत हृदयसे हे भ्रातगण ।
सदाके सदृश न भूलो एक क्षण ॥ आचार्योंने भेद इसके दश किये ।
तिन्हें सादर आप अपनाओ हिए ॥ क्षमा पहिला मार्दवे है दूसरा ।
तृतियार्जव. सत्त्य चौथा है खरा ॥ शौच पैञ्चम छठा संयम है अहा ।
सप्तमा तप त्याग अष्टम है महा ॥ धर्म आकिञ्चने नवां उत्तम कहा ।
व्रत दशवां धर्म धारौ महा ॥
१ उत्तम क्षमा । आपको कोई सतावे क्रोधसे ।
सहन कीजे उसे अपने बोधसे ॥ क्रोध करना आपको नहि चाहिये ।
क्षमा धारन कर उसे अपनाइये ॥ २ उत्तम मार्दव ।
देहि धन बलरूप आदिक पायके ।
अभिमानमें आना नहीं हर्षायके ॥ मान दुर्गति खान इसको छोड़ दो। मार्दवसे प्रेम अपना जोड़ दो ॥ ३ उत्तम आर्जव
संकोच लो अब छल कपटके जालको ।
छोड़ दो अपनी दुरङ्गी चालको ॥ जो विचारो बात वह जाहिर करो ।
कर सरल परणाम आर्जव व्रत धरो ॥ ४ सत्य । झूठसे पावो न जगमें कीर्ति है।
सत्यकी होती सदा ही जीत है।
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दिगम्बर जैन । इसलिए ही झूठको अब त्याग दो। इसलिए परनारि लख द्रग मीचना । सत्य वचनोंमें जिह्वाको पाग दो। - पापकी क्यारी नहीं अब सींचना॥ ५ उत्तम शौच ।
___ अंतिम उपदेश । शुद्धि गंगाके नहानेमें नहीं।
ये धर्म उत्तम दशतरहके धार लो। प्राप्त होती मल छटाने में नहीं॥
सम्यक्त्वका सरना सदा स्वीकार लो॥ शुद्धता यदि प्राप्त जो करना चहो। प्रार्थना इक और मेरी मान लो। संतोष जलसे लोभ अन्तरका हरो॥ . शुद्ध खादीको पहिनना ठान लो॥ ६ उत्तम संयम।
खादी पहिनकर ही जिनालय आइये। इन्द्रियां पांचों करो वशमें सदा।
मिलोंके वस्त्रोंसे नेह हठाइये ॥ रोककर मनको धरो संयम सदा॥
यह निवेदन “प्रेम” का सुन लीजिये। प्राणियोंकी कीजिये रक्षा सदा।
खादी पहिननेको प्रतिज्ञा कीजिये ॥ शुद्ध संयम पालिये प्यारे सदा ॥ नये २ ग्रन्थ मगाइय। ७ उत्तम तप।
अहिंसा धर्म प्रकाश अनशनादिक तप जिन्होंने धर लिए ।
जैनधर्मशिक्षक तीरा भाग उन्होंने ही कर्म आठों हर लिए ॥
अष्टपाहुड-कुंकुंदस्वामी का मू व पं० तप बिना नहि मुक्ति होती है कहीं। इसलिए तप धारलो मानो कहीं।
य बन्द नीकी टीश रहित अनंतीनि ग्रंथमालाका
मुरम ग्रन्थ । पृष्ठ ४५० मूल्य १) पात्र । ८उत्तम त्याग ।
सामायिक पाठ-संस्का प्राकृ। व पं. अशन औषधि-आदि चार प्रकारका ।
अपचन्दनी की वचनिका । लागत मूल्य पांव आने । दान दीजे संघको हितकारका ॥ दानसे है स्वर्ग सम्पति पावना।
विमलपुराणजी-दो पकारके ६) तथा १) है धर्म उत्तम त्याग इसको ध्यावना ॥
षोडश संस्कार-
१) ९ उत्तम आकिंचन ।
सरल नित्य पाठ संग्रह मु०) व ॥1) बाह्याभ्यन्तरका परिग्रह छोड़ दो।
शांतितोपान ॥) भावना भवन :) आत्मसे सम्बन्ध अपना जोड़ दो॥
राजवार्तिकजी-प्रथम ख१) दुसरा खंड ३) मोहकी मजबूत फांसी तोड दो।
सुलोचनाचरित्र-ब• शतप्रसाद नीकृत ___ आत्मबलसे कर्मगढ़को फाड़ दो॥ रल ऐतिहासिक ग्रन्थ । मूल्य ।।2) यह आकिश्चन धर्म मुनि धारन करें। श्री पद्मावती पूजन कर्म रिपुको जीत शिवरमणी वरें ॥ जागती ज्योति १० उत्तम ब्रह्मचार्य ।
पंचमेरु व नंदीश्वर पूजन विधान ॥3) यती स्त्री मात्रके त्यागी भये।
पंचपरमेष्ठी पूजन विधान भाषा ।) ब्रह्म-भज शिवनारि अनुरागी भये॥
पंगाने का पताकाम योधासे विजय जिसने लही।।
इस जगतमें वीर सच्चा है वही ॥ मैने नर-दि० जैनपुस्तकालय-हरत ।
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२२ ]
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नीति - रत्नमाला ।
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( लेखक - बालकिशन जैन - पालम )
राजाके सप्तांग ये, इतिहासज्ञ पुरान | परिहासक गायक कवी, भट्ट तथा विद्वान ॥ १८२ अधना धन इच्छा करें, गर्वित इच्छे बाद | मानव इच्छे स्वर्गको, देव मुक्रति अविषाद || १८३ जाका शक्ति न ज्ञात हो, चेष्टा कुल नहीं ज्ञान | ताकि संगति मत करो, भाषत हैं मति मान॥ १८३ क्षुधा समान न अन्य दुख, चिंता सम नहिं रोग । अन प्राप्ति सम सुख नहीं, अपुत्र समां नहिं सोग दुष्ट उदर के कारण, किम नहिं करें पुमान | चाक देवि जिम बानरी, घर घर नृत्य करान १८६ नृपसेवा जानो इसी, असि धारा अवलेह | व्याघ्री गात्र स्पर्शनी, नागिन क्रीड करेह ॥ १८७ प्रहेलिका--अनेक सुषिर (बिल)ब आदिमें, ऋषिसंज्ञक कमंत | सर्पनको आराध्य वह, कहो जो कल जानंत निरगुण मानव गुणि पुरुष, अंतर होत महान । हार नारिके कंठ में, नूपुर पाद परान ॥ १८९ दुमंत्री राष्ट्र क्षय, कुंनरतें क्षय ग्राम ।
I
श्यालक ग्रह नष्ट है, मातुलतें घनधाम ॥ १९० सेवनतें बाढ़े स्वतः, कलह कंडु उद्योग | मैथुननिद्रा द्यूत पर - दारा मैथुन भोग || १९० पेट भरन भोजन करें, मैथुन हित संतान । कहैं बचन जो सत्य हित, सौं नर श्रेष्ठ महान १९१ योवन धन प्रभुता तथा, विवेक हीत चा अंस । एक २ अनरथ करें, सबमिल करें विध्वंस ॥ १९३
[ वर्ष १७
अनालस्य पांडित्यता, शील मित्र संघात । शौर्य पंच अचोरहर, अक्षय निधि विख्यात ॥ १९४ निस्नेह हुवे निर्वाण है, भत्रको हेतु स्नेह । जिस प्रदीप निस्नेहतें, छुटै ताप तन देह || १९९ पढ़े लिखे प्रश्नहि करे, पंडित जनको संग | रवितें बिकसै नलिनि जिम, प्रसेर बुद्धि अभंग १९६
विद्यत्ति किप्स, हरै न ऐसो कौन । कांचन मणि संयोग ज्यों, मोहै देखे जौन १९७ जलत अग्नि निम प्रथम ही, नाशै निन आधार । तिम विषयाशा अगन भी, देवै चित्त प्रजार ॥ १९८ लक्ष्मी किसके थिर हुई, भूप हृदय कहां प्रीत । अविनाशी किस तन हुवो, वेश्या किसकी म ेत ॥ स्वयं स्वगुण ऐश्वर्यको कथन न शोभं राम । निजकर कुच मर्दन किये, लहै न प्रौटा जेम २० नारीपर मुख द्रष्टिनी, कवी अज्ञ व्यवहार । रोगी सेवि अपथ्यको, बिगरत लगै न वार २०१
क्षमावणीके कार्ड
मूल्य III) सैंकड़ा |
दीवाली के कार्ड भी हैं, III) सैंकड़ा । ५० मंगानेवाले | ) ॥ व १०० मंगानेवाले 12) की टिकट भेजें । दीपमालिका (दीवाली, पूजन ) मैनेजर, दि० जैन पुस्तकालय-सूरत । क
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अंक ११]
दिगम्बर जैन । ®®®®®®®®®®®®®®®® (३) जर्मनीमें रोडियोकी करतूतें। . विज्ञान सरिता सरोज। रेडियोंने सम्य संसारमें एक नया युग लाकर
® खड़ा कर दिया है। इसके द्वारा नए २ आवि
कार किए जारहे हैं । जर्मनीमें इसके द्वारा (१) तारसे फोटू ।
समुचे राष्ट्रभरकी घडियोंका समय ठीक किया जीती जागती दुनियां में नित नए 'करश्मे ।
ए करम' जता है। और यह प्रत्येक पुलि मैनके गले में होते रहते हैं। अभीतक तो तारसे खबरें ही हारकी भांति पहिना दीगई है, जिससे उसके जाती थी, किन्तु अब फोटू हस्ताक्षर और सिरपर एक सीधा छातासा लग जाता है और अंगूठेकी निशानी भी दूरस्थ स्थानको भेजे जा कानों में डबियां ( सुनने के लिए ) कर्ण फूलसी सक्ते हैं । इसके भेजने की मशीन दो होती हैं। ,
लटक जाती हैं। इससे पुलिसमैन जहां कहीं एक भेननेको और दूसरी लेनेको, दोनों रेडियो
या हो फौरन खबर पा लेता है और रक्षा करनेको सेटकी सदृश होती हैं । जिन्क मथवा तांबेकी
मा उपस्थित होता है । भारतमें अभी उनके प्रतिलिपि बना लीजाती है। इसमें सुक्ष्म लकीरे दर्शन होना कठिन है। होती हैं। मशीनमें की सुई इन लकीरों में घूमती (४) अमेरिकामें बर्फकी खेती। हैं । दूसरी मशीनमें भी उसी प्रकार एक अन्य भाजकलकी सम्यताने बरफकी मांग भी बहुत सुई सादा प्लेटपर घूमती हुई लकीरें कर देती बढ़ा दी है। अमेरिकामें तो एक तरहसे इसकी हैं और फोटू उतर भाता है। कहिए क्या खेती ही होने कगी है। वहां प्राकृतिक रूपमें यह ‘करश्मे से कुछ कम है !
नदी नाली जो जम जाते हैं उनके बरफको मशी. (२) आंसुओंके दाम। नोंसे काटकर शहरों में ले पाया जाता है।
अभीतक तो प्रेमी और प्रेमिकाओंकी किन्तु इसे लोग कम पसन्द करते हैं:सं०प्रान्त भाख्यायिकाओं में ही बांसुओं का मूल्य पढ़ा अमेरिकामें कहते हैं प्रतिवर्ष २४,०००,००० जाता था। वे ' अनमोल ' समझे जाते थे। टन ऐसा बरफ गोदामोंमें लाया जाता है । परन्तु अब इस 'कलयुग' में उनका भी यथार्थ वहीं गत वर्ष कृत्रिम बरफ २९,०००,००० मूल्य लग गया। सर अल्मरोथ राइटने वैज्ञाः टन खर्च हुआ था । सभ्यताका यह ढंग निक खोन द्वारा ढूंढ़ निकाला है कि मांओं में आश्चयेमें डालने वाला है। भी क्रमि विनाशक शक्ति विद्यमान है । अब हरिबंशपुराण चिकन कागन खुले पृ.८.० ८) तो पाठकोंको चाहिए कि मांसुओंको बोत में पद्मपुराण (जैन रामायण) नाटक २) भरके रखते जांय और अंग्रेजी दवा विक्रेता- पंचमेरु व नंदीश्वर पूजन विधान(बड़ा)।ओंसे दाम वसूल करते जाय । बास्तवमें बांसु शील महिमा नाटक-सुखानंद मनारमा ।।। 'अनमोल' ही निकले !
पता:-दिगम्बर जैन पुस्तकालय-सूरत ।
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૨૪ ] શિનર જેના
[ સર્ષ ૨૭ શ્રી વીસા મેવાડા દિ
૩-કરકસરથી લગ્ન કરવાની પૃથાને આપણું
આજકાલ ઉલંધી રહ્યા છીએ, અને જે નહિ - જૈન યુવકમંડળ. ઇચ્છવા જોગ તેવાં ખર્ચ કરી રહ્યા છીએ. વાજાં
પાછળ ખર્ચ વિષે- અગ્ય નથી લાગતું શું ? જ્ઞાતિ અને તેની પ્રગતિના ઉપાયો.
દારૂખાનાની પ્રથા બંધ હતી તે વળી ચાલુ થયેલી લેખક -આર. જે. શાહ
જોવામાં આવે છે. સુધારે તે કયાં ગયે પણ ભ ઇએ ! બીજી જ્ઞાતિઓના સમાજની કુધારે દાખલ થતા જણાય છે. દાખાનું આપ ગુ પ્રગતિ સાથે આપણી સમાજની પ્રગતિ સરખાવતાં માનીએ છીએ કે આનંદ ઉપજાવે છે પણ ઉલટું આપણી સમાજ ઘણી પછાત છે. તેનાં કારણે તેના અવાજથી નિર્દોષ પંખીડાં તથા અન્ય આપણે ખંતથી ધારીએ તો દર કરી શકીએ. પ્રાણું એને ધાસ્તીરૂપ થાય છે. અહિંસા પરમે
૧-આળવિવાહ-માળસંગાઇની પૃથા આ ધમની ભાવનાવાળા મારા જેન બંધુઓ ! આ પણામાં કંઈક ક ધક પ્રચલિત હતી, તેમાં સુધારો સુત્રને શું તે વખતે વીસરી જાય છે ? થવાને બદલે એક પગલું આપણે પાછળ ભરતા ખરેખર થાય છે તેમજ, નહિ તે આવો વ્યય થયા છીએ. ભાઈએ ! આ બધું આપણું સમા- દારૂખાના પાછળ કરોજ નહિ. જની અધોગતિનું નિશાન નહિ તે બીજું શું ? ૪-સીમત તથા બારમાના વરા પાછળ. બાળવિવાહથી જોડાએલાં જોડા જોઈએ તેવું સુખ આવેલા મહેમાનો તથા ગેરહાજર હોય તેમને પશુ પામતાં જોવામાં આવતાં નથી, કેળવણી કે જે ભાથું તથા ઢેબરાં બંધાવવાની પ્રથા ચાલુ છે. તેમની જીંદગીની જરૂઆતન ચીજ તે તેમને જોઈતા ભાથામાં કળી લાડવા પોતપોતાની સગાઈનો પ્રમાણમાં મળતી નથી કારણકે બાળવિવાહ અને સંબંધ પ્રમાણે આપવામાં આવે છે. આ પ્રથા પછી બાળલગ્ન તેને અટકાવરૂપ થઈ પડેલું વાવાળાને વરી પ્રસંગે કેટલી કંટાળારૂપ થઈ રહે આપણા જેવામાં આવે છે. બાળલગ્ન જેટલાં છે! ઘેર આવેલાં મહેમાનને ઢેબરાં માટે કામે હાનિકારક છે. તેટલું જ બાળપણની સગાઈ પણ લગાડવાં એ શું અયોગ્ય નથી જણાતુ ? વળી સમાજને હાનિકારક છે.
બંધાવવાને આખી રાતને ઉજાગરો એ શું આ -લગ્ન પ્રસંગે કપડાં પાછળ થતા પ્રથા તરફ કંઈ પ્રિયતા ઉપજાવે છે ? બંધાવતી ખર્ચમાં કઇ સુધારો થયો છે પણ જોઈએ તેટલા વખતે લાડવા જેવી વસ્તુ ગેરહાજર હે ય તેમને પ્રમાણમાં થયો નથી. વરરાજા અને અન્ય કેટલાક માટે માગીને લેવી એ શું અયોગ્ય નથી લાગતું? પુરૂષવર્ગ ખ દી પહેરતો થયો છે પણ હજી સ્ત્રી
આવા પ્રસંગે અમુક માગણી એગ્ય અને અમુક વગ વિદેશી તેમજ રેશમી કાપડના મોહમાંથી
માગણી અગ્ય એવું સાંભળવામાં નથી આવતું મુક્ત થયો નથી. બહેનોએ જાણવું જોઈએ કે વિદેશી શું ? ખરેખર ઉપર પ્રમાણે બધી મુશ્કેલી આ કાપડમાં ચરબીનો પીસ આવતો હોવાથી તેમજ રવામાં
જોવામાં આવે છે તો તે પ્રથામાં કંઈક કંઈક
આ રેશમ કે શેટાના કીડામાંથી બનતું હોવાથી તે
ફારફેર થવાની જરૂર છે અને એજ કે, જેઓ કાપડ સમજવું એમાં પાપ છે અને આપણ ન હાજર હોય તેટલાને અમુક અમુક પ્રમાણમાં ફક્ત ધર્મના અનુયાયીઓને કલંકરૂપ છે. બહેનોએ ભાથું જ આપવું. ધ્યાનમાં રાખવું જોઇએ કે રેશમી કીંમતી કપડાં ૫ યુવાન પાછળ થતું બારમું-કેટલેક યા દાગીના પહેરવાથી શોભા વધતી નથી પણ અંશે બંધ થતું જોય છે અને તેવી જ રીતે દરેક સદાચાર નમ્રતા મળતાવડાપણું અત્ય'દિ ગુણોથી જ સ્થળે બંધ કરવામાં આપણું શ્રેય તેમજ ભરનાર શેભા વધે છે.
પ્રત્યે આપણા અંતરની લાગણીને દેખાય છે,
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કદ ૨૬ ]
दिगम्बर जैन । માટે યુવાનના મરણ પ્રસંગે બારમું કરવાની પ્રથા તેના બંધારણની સુરક્ષિત છે. પંચમાં કલાકોના બંધ થવી જોઇએ.
કલાકો સુધી શાત બેસી રહેવું અને બોલવું -આપણામાં ઘણાંખરાં લો બ્રાહ્મ વિધિ તો બધા એક સામટા બોલવું અને તે પણ પ્રમાણે કરાવવામાં આવે છે તો તેને બદલે જૈન સભ્યતા વિના અને કોઈ કોઈના પર આક્ષેપ નાંખતા વિધિ પ્રમાણે લગ્ન કરાવવાની જરૂર છે. માબાપે એ બોલવું એ શું બંધારણની સુરક્ષિતા છે? ખરેખર નાની કુમળી વયમાં પોતાનાં બાળકનો નહિ જ. માટે આ પ્રથામાં ફેરફાર થવાની જરૂર લગ્ન કરી તેમને સંસાર જાળમાં ફસાવવા ધણું જ છે અને તે એ કે પંચમાં બેસવા માટે અમુક ગેરળ્યાજબી છે. તે શરીરનું નૂર અને અક્કલ ગણત્રીમાં દરેક કટુંબમાંથી માણસે ચૂંટાવા જોઈએ
શીયારી તદ્દન નકામાં થાય છે. તેમજ કજો. તથા પંચ તરફથી વાદો તથા પ્રતિવાદોને સવાલ ડાથી પરત જોડું આખી જીંદગી દુઃખથી ગુજારે ( પુછવા માટે પણ એક માણસની ચુંટણીની જરૂર છે માટે કન્યા અને વર વચ્ચે ઓછામાં ઓછું છે. આ માણસ પંચનું કામ જેવું કે પંચના ચાર વર્ષનું અંતર અવશ્ય રહેવું જ જોઈએ. અને હિસાબ પંચ ભેગું કરવા સબંધી ખબર આપવા કન્યાનું લગ્ન ૧૨ વર્ષ પહેલાં અને વરનું લગ્ન સબંધી કામકાજ કરશે અને તે ધારવો મુજબ ૧૬ વર્ષ પહેલાં કદી થવું ન જોઈએ. .
બીન પગારે માનનીય સેકટરી તરીકે કામ કરવા હ-કરકસરની દષ્ટિએ લગ્ન કરવાની આપણું મળી આવશે. પ્રથા ઘણી પ્રશંસનીય છે પણ લગ્ન કરવાની વિધિમાં કારરિની જરૂર છે અને તે એ કે જેને બોલનાર માણસે ઉભા થઇ, બોલવાની પ્રથા વિધિ પ્રમાણે યોગ્ય ઉમરે થાય તેમાંજ સુખ * ચાલુ કરવામાં આવશે તે હાલ થતો ઘોંઘાટ સમાયેલું છે.
એકદમ બંધ થઈ જશે અને જે જે દરખાસ્તો ૮-સમાજમાં કેળવણી પ્રચાર એ સમાજની હશે તેને યોગ્ય, નિવેડે સહેલાઈથી આવશે. ઉન્નતિનું એક સાધન છે અને તેનો પ્રચાર ભાઈઓ! આવી આવી કેટલીક અયોગ્ય પ્રથાઓ વધારવાને જ્ઞાતિ તરફથી સ્કોલરશીપ યા કેળવણીને આપશામાં પ્રચલિત હેવાથી અપશુ કોમની માટે મદદની યોજના થવાની આવશ્યક છે.
પ્રગતિ થતી અટકે છે માટે જાણી છે તેને ફરી હાતિ ના સાર્વજનિક કામમાં સહાયરૂપ
કરી સંતોષવી એ શું આપણું મતની નિર્બળતા થઈ પડનારૂ યુવકમંડળ યા વેલંટીયર મંડળ જેવું
નથી સૂયવતી ? આવી પ્રથા દૂર કરવાનું શરૂ - મંડળ, કેવી રીતે હમેશાં કાયમ રહી સમાજને
તમાં કંઇક ટીકા પાત્ર થવું પડી પણ ભવિષ્યમાં સહાય કરી રહે તેને માટે પેજના થવાની ખાસ
તે ઘણી જ લાભદાયક છે. અમુક માણસ કહેશે કે જરૂરી છે. આ મંડળમાં યુવક મંડળની સહા
મારે ત્યાથી શરૂઆત ન થાય કારણકે ટીકાપાત્ર યતાથી દરેક જગ્યાએ અઘરાં પણ કામ સહેલાં ૧
થવું પડે પણ બંધુએ, આપણે બધા એમ ધારીએ થઇ પડયાં છે તો પછી આપણે આવા મંડળને
કે અમારે ત્યાંથી પહેલ ન થાય તો પછી શરૂઆવકાર રૂપ કેમ ન ગણીએ ? ખરેખર આવા
આત થાય કયાંથી ? માટે જેને ત્યાં પ્રસંગ આવે મંડળની જરૂરીઆત છે જ.
તેણે અવસરે પહેલ કરવાની તક ગુમાવવી નહિ. . ૧૦-ધર્મિક જ્ઞાનની આપણા સમાજમાં
શરૂઅ તેમાં જે માણસ પિતાને યોગ્ય લાગતી ઘણી ઉણપ છે અને તે ઉણપ ઉપદેશક યા પાઠ
પ્રથાને વળગી રહેતાં ટીકાપાત્ર થાય છે તે પાછશાળાઓ સ્થાપી પુરી થાય તેમ છે.
ળથી પ્રશંસનીય થાય છેજ. ૧૧-આવા સમાજનું બંધારણ પંચના ઉપર મુજબ હમારો નમ્ર અભિપ્રાય આપ હાથમાં છે અને પંચનું કામ સરલ હોય તોજ સૈ ધ્યાનમાં લેશે એવી મારી નમ્ર અરજ છે.
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૨૨ ]
ાિમા ના
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તા ક–આશા છે કે અઢાર વર્ષની ઉ૫- બબ્બે લાખ રૂપીઆનો વહીવટ-સામાન નિર્ભય રને દરેક યુવક આ મંડળને તાકીદે સભાસદ તાથી સોંપી દે છે. વેપારાથે હજારો માઈલ દૂર થઇ જશે અને પોતાના વિભાગવાર કાર્યવાહકને જતી વખતે, યાત્રાના પ્રસંગોમાં અથવા મરણની લખી ફી (વાર્ષિક માત્ર ચાર આના ) મોકલી છેલ્લી ઘડીએ તાતી માલ મીલકત કે તાળાં આપી સભાસદ તાકીદે થશે એવી આશા છે. ચાવી સુદ્ધાં જે પોતાના અંતના અડીને સગા પુત્ર, મંડળના નિયમો અને ઉદેશ પત્ર લખવાથી મોકલી સ્ત્રી કે માતાને નહિ સેપતાં તે સાફ દાનતવાળા આપવામાં આવશે. વોર સં૦ ૨૪૫૦ શ્રાવણુ સુદી ૫ મિત્રને કે બીજા કોઈને પી જાય છે. અથવા પ્રકાશક-મંત્રીઓ,
જેમાં અંદાજનું કામ હોય છે, તેવામાં પણ તે શા, હીંમતલાલ વરજીવનદાસ માણસની પુંઠ જોવામાં આવતી નથી. કોઈ કોઈ શા૦ સેમચંદ જેચંદભાઈ વખત માલ ખરીદવીમાં, વેચવામાં, દલાલીમાં, ઠે. બજારમાં, રસદ (ખેડા ) નોકરના પગાર ઓછા વત્તા કરી ચુકવવામાં,
મકાને બાંધવાના કામને સામાન લેવામાં, પ્રતિષ્ઠા ays જેવા ભારે એના કામમાં, ઝવેરાત જેવા
મે ટ વેપાર ખેડવામાં કે એવા બીજા અનેક
પ્રકારના કામોમાં કે જ્યાં રૂપીઆ બે રૂપીઓની કાકા કાશે નહિ પરંતુ હારે ને લાખોની ઉથલપાથલ
• થતી હોય તેવા સમયે બેટ ખાય, લાભ જાય, (લેખક-માસ્તર લલુભાઈ રાયચંદ-ફતેહપુર) -
* કે અધક દામ આપે (ધારા કે અમુક વસ્તુના कर कछोटो जीभड़ी, ए त्रण राखो वश;
હજારના બારસે ઉત્પન્ન થવાના છે, પરંતુ અજાપછી જો ત્રિરોકમાં, જો ન જશે . પણે કે પ્રતિકુળ સંજોગોમાં આઠમાં વેચી દે)
મ-૧ માણસ હાથ ચો , ૨ જીભમાં તે પણ તેને તેના માલીક એમ સમજતા કે મીઠાશ, અને ૩ લંગટને સાચો હોય તો તેને ધારતા નથી કે મારા માણસે અમુક રૂપી આ કોઈપણ ઠેકાણે જવાથી અથવા રહેવાથી કોઇ પણ ઓછા લઈ માલ વેચાણ કર્યું માટે તેમાં તેણે માણસને તે અપ્રિય થતું નથી.
હાથ કર્યો હોવો જોઇએ. તેને સ્વને પણ ખ્યાલ . ૧-હથને ચાખે-આ ગુણ જે માણ- આવતા નથી. આ તે એક દૃષ્ટાન્ત માત્ર છે. સમાં હોય છે તો તે ઘરમાં ગમે તેટલાં માણસે ૫'તુ એવા હજારો સંજોગે આવે છે કે હે ય અથવા પરદેશ નોકરી કરવા જાય, કે કોઇની જયાં ખ સાં તર કરવાની તક ઘણી વખત મળી સાથે દુકાનમાં અથવા ધંધામાં જોડાય તો તેને આવે છે, તો પણ તે હાથ ચોખે એટલે એટલો બધે વિશ્વા બેસી જાય છે કે ઘરનું પોતાના હક સિવાયના દ્રશ્યમાં દાનત ન બ ભાડકોઈપણ માણસ તથા નેકરી જેની કરે છે તે નાર માણસ અન્યાયના ન પ તાને ન પોષાય કે ન શેઠ કે ધંધામાં જોડાએલ ભાગીદાર વગેરે કોઈ છાજે તેવા દ્રશ્યને લાત મારી દે છે. તે તો એમજ તેની પુંઠ જોતું નથી. તે સર્વને એવા પૂર્ણ સમજે છે કે લોકો વઢને ઝાડા થવા વિશ્વાસ હોય છે કે કોઈ દિવસ તે એક નજીવી સુવઠા શરીરે હા તે દવા | દાતણ સરખી ચીજથી ૯ઈ ભારેમાં ભારે બહુ શ્રેષ્ઠ છે. કેટલીકવાર તેમ સમજીને વત વા. મૂ૯ય ઘરેણુ સુધીમાં પણ જીવ બગાડે તેમ નથી. છતાં તેની સત્યતા પર પાણી ફરી જાય છે, પણ ભલે તે સાધારણ સ્થિતિને હોય પરંતુ તે ઉપ આખરે જેમ પાણીમાં નાખેલું તેલનું ટીપું નીચે રોક્ત વિશ્વ સ ગુરુને લીધે તેને હજારો નહિ જવા છતાં આખરે ઉપર આવી જાય છે, તેમ તે
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છુપાઇ ગયેલું સત્ય પણ આખરે બહાર પડી વિશેષ પ્રકાશમાં આવી જાય છે. તે પુછો તેની એટલી કદર થાય છે કે પોતાના ધારવાં કરતાં વિશેષ આજીવિકા, વિશેષ માન્યતા તે વિશે" પૂછ થાય છે, માટે દરેક મનુષ્યામાં પ્રથમ ઉપરક્ત ગુણુ ડેવાજ જોઇએ.
दिगम्बर जैन ।
ધણી એવા પણુ માનુસે મળી આવે છે કે પેાતાના ધરમાંજ પેતે બધા ભાઇઓમાં કર્યાં હર્તા તે મે-વડીલ હોવાથી તે ઘણુંખરૂં કાવું દેવું પેાતાનાં હાથમાં હાવાથી ઘરની મિલકતમાંથી મોટા હાથ કરી દે છે અથવા નાકર હાય તા શેઠ ન જાણે તેવી રીતે દ્રવ્ય છુપાવવા પેરવી કરે છે, છેવટે પાપ છારે ચઢીને જેષ્ઠારે છે” તે પ્રમાણે પણ તેનું પાપ છતુ રહેતું નથી. કદાપિ કારજીવશાત્ જાહેરમાં ન આવે તાપણુ કુદરતને તેા ખરાખરજ ન્યાય આપવા પડે છે એટલે કે મેળવેલું ધન અગ્નિથી, પાણીથો, ખીમારીથી અથવા એવા બીજા કાઇ કારણેાથી નાશ થાય છે. અથવા તેવા પુરૂષોને શ્રીખીમાર રહે, કાંતા મરી જાય ૧ તેને લીધે ક્રીથી ખરચમાં ઉતરવું પડે, સતિ થાય નહિ, થાય તેા જીવે નહિ, તે મેળવેલું ધન સગા વહાલા કે રાજય ખાય છે તે પાતે અન્યાયથી અને અતિ તૃષ્ણાથી અને હક વિનાના ને ન પાષાય તેત્રા મેળવેલા દ્રવ્યને લીધે દુર્ગતિમાં જવું પડે છે. પરંતુ માણુસા કયાં દેખે છે? કેમકે આજકાલ પૈસાવાળાઓનીજ સરભરા તે માન્યતા છે. પછી તે ચેારીથો, હિંસાથી, અન્યાયથી કે ગમે તે રીતે મેળવેલુ હાય પણ તેને ઊત્તેજન મળે છે, તેની પીડ ઢાકાય છે, તેને મહેશ કહી શાખથી આપે છે તેથી દુનીયામાંના થાડાક સજ્જને સિવાય ધણુાખર આતે એનીજ લગની લાગેલી એશ્વમાં આવે છે. ધનવાન થવું—મલે પાપ થાય કે પુન્ય તેની પરવા નથી. પૈસાદાર હૈ।શું તે આપણી પુષ્ટ છે, આપણી ગણતરી છે, આપણી માન્યતા છે, શ્રેષ્ઠતા છે એવા ખ્યાલથી તે ઉત્તેજના મલવાથી ઉપરાત ગુણુ દિવસે દિવસે ખાતે। જાય છે. માણસ ગમે તેમ ધારે કે કરે પણ કુદરત કદી
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સાંખતી નથી. માણુસ ન્યાયતા અન્યાય કરે તે ભન્ને પણ કુદરતના ન્યાય બરાબર થાય છે. એક ઠેકાણે કહ્યું પણ છે કે— अन्यायोपार्जितं द्रव्यं, दश वर्षाणि तिष्ठति । प्राप्ते षोडशे वर्षे सम्मूलं च हि नश्यति ||
૨-લગાઢના સાચા-એટલે કે જેને પરસ્ત્રીના ત્યાગ છે તે માણસ ઉચ્ચતા તે આદરની દૃષ્ટિથી જોવાય છે. ને તેને સારા :સારા ખાનદાનાના કુટુ મેામાં પણ હરવા ફરવા ને જવા આવવાની છુટ હેાય છે. જે વ્યભિચારી હાય છે તેને અનેક રીતે પૈસા ઉરાડવા જોષ્ટએ એટલે તે ઘરમાંથી, દુકાનમાંથી કે સાંપેલા કામમાંથી હાથ મારવા ચુકતા નથી, લગેટને સાચે હેા નથી, તેને ઘણાંખરાં ખીજા પશુ બ્યક્ષન લાગુ થઇ જાય છે. ચારી કરવી એ તા તેનેા એક ખાસ ધધેાજ હૈાય છે. એથી કોઇ કોઇ વખત એ પકડાઇ જાય છે તે તે વખતે તેને ધણું ખમવુ પડે છે. તેાકર હાય તા તેને કાઢી મુકવામાં આવે છે. તેનું ચિત્ત ધંધામાં કે કોઈ ઠેકાણે કરીને ખેસતુ નથી તેથી તે કાઇ રીતે તે ધંધામાં કે નારીને લાયક રહેતા નથી. તે તે પૈસે ટકે ખાલી થતા જાય છે, તેમ તેમ તેને વધારે મુઝવણ થાય છે ત્યારે તે વધારે વધારે ચેરી કરી પૈસા મેળવી પેાતાની ઉમેદ પાર પાડવા પ્રયત્ન કરે છે તે જ્યારે તે કઇ રીતે જાવી શકતા નથી તે અકળામણુ થાય છે તેા મરવા પણ તૈયાર થાય છે તેના કઇ વિશ્વાસ રાખતું નથી. પેાતાના ધરના માણુસા પણ તેની ચિંતા કરે છે. જેને ઘેર જાય તેના ઘરવાળાઓ કયારે જાય, ક્યારે જાય એવી ભાવના રાખે છે. વળી તેના સામે આંગળી કરી આ કાઠ્ઠી છુટા છે” એમ સા કાઇ કહ્યા કરે છે. એવા માણુઋતુ ધકા માં તે। શુ' પશુ સંસારના દરેક કામાં ચિત્ત લાગતું નથી તે તેથી અહે:નિશ ચિંતાતુર રહે છે. ચિ ંતામાં તે ચિંતામાં તે શરીરથી જુવાનીમાં પણ ઘરડા માણુસ જેવા અથવા મરેલા મડદા સમાન દેખાયછે. તેથી ઉલટુ બ્રહ્મ
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શિખ્યા બના
[ ક ?
પાળનાર માણસના શરીરમાં એટલી કૃતિ રહે એટલે ઉપરથી મીઠું બેલનારાથી તો માણસ છે કે તેને કોઈ કામ કરવાની તક મળી છે તે ઘણી વખત થાપ ખાઈ જાય છે ત્યારે કડવું એકદમ ઉત્સાહ પૂર્વક કરી દે છે. જે તેને સત્સ- બોલનારાથી તો માણસ ચેતીને ચાલે છે. તેથી ગતિનો લાભ મળે તે ધર્મ કરવામાં એટલે કે ઉપરની મીઠાશ કંઈ કામની નથી. ખરી રીતે તો તપ કરવામાં, પરોપકાર કરવામાં સમાજ સેવા જેની જીમમાં મીઠાશ છે, તે અંદરથી પણ તેજ વગરના કામમાં આગળ પડતો ભાગ લઈ કોમળ ને ચેખા દીલને હે વો જોઈએ. શાસ્ત્રમાં સષ્ટિની દૃષ્ટિમાં આદર્શ બની જાય છે. કોઈ કઈ - ૪ પ્રકારના માણસ બતાવ્યા છે. ૧ ઉત્તમ મનુષ્ય વાર આકસ્મિક પ્રસંગોમાં પોતાના માલિકનું, એ છે કે જે ઉપરથી ને બહારથી એક સરખો પિતાના ઘરનું કે પાડોશી આદિનું કામ ઉપાડી મીઠા, કમળ ને ચેખા દીલ તે દ્રાક્ષ સમાન લઇ બ્રહ્મચર્યનો પ્રભાવ જગજાહેર કરી દે છે. છે. ૨ મધ્યમ મનુષ્ય, એ છે કે જે ઉપરથી કઠણ
લંગટને સાચો એટલે પરસ્ત્રી ત્યાગી અથવા પણું અંદરથી ચેખે ને કોમળ તે શ્રીફલ (નારીયથામાં પૂર્ણ બ્રહ્મચર્ય એ એ એક ગુણ છે ચલ ) સમાન છે કેમકે તે ઉપરથી બટુક બોલો કે તેના પ્રભાવથી નિદ્રાદેવી તેને એટલી બધી લાગે પરંતુ પરીપાક કાળે તે હિતકારક હોય છે. અચેત નથી કરતી કે જેટલી કમી પુરૂષોને અચેત ૩-અધમ મનુષ્ય તે છે કે ઉપરથી મીઠે પણ કરી દે છે. આ એ ગુજ્જ છે કે કે હિંદુ
અંદરથી મેલો તે બદરીફલ કહેતાં બોર જે અને કાણુ મુસલમાન દરેક કામ દરેક સમયમાં
હોય છે એટલે કે ઉપરથી વર્તમાન ને બે લવામાં તેને પૂર્ણ માને છે અને ભવિષ્યમાં માનશે. બ્રહ્મ- ભલાઈ ભાસે છે, પણ અંદરથી પસાર વિનાનો ચર્યના ગુણ જગજાહેર છે.
હેય છે૪ અધમાધમ મનુષ્ય એ છે કે જેવા
ઉપરથો બટુક બોલા તેવાજ અંદરથી પણ કઠેર બ્રહાચર્ય ગુણધારીજ આ લોકમાં ધર્મ
હોય છે એટલે તે પુંગીકલ એટલે સેપ રો સમાન ધન અને યશની પ્રાપ્તિ કરી પરલોકનું ભાતું કરી
છે, તેથી જેના હૃદયમાં કોમળતા છે તેની જીભની શકે છે. કેમકે જેને લંગોટ સાચો છે, તેનાં જ
મીઠાશ સોનામાં સુગંધીનું કામ કરે છે. મગજ લર હોય છે અને ઉંડા તત્વોની અને
એકંદર રીતે મીઠું બોલનાર કોઈને ' અમાવત ઉંડા અને દીર્ષ વિચાર કરવાની શક્તિ તેનામાં
થતજ નથી. તે માણસ સર્વેને પ્રિય લાગે છે, આવી જાય છે. ખરી વાત છે કે
અને તેને ગમે તેવું કામ હોય તો પણ તે બી નરે શી રતન મેં , રતનાજી રવાના પિતાના બનાવી લઈ તે પિ નું કામ સહેલાઈથી જિીન ટોજી સંવા, રહી ને માન | કરી શકે છે. તેનો કોઈ દુશ્મનન હેતેજ નથી. ૧ કામમાં મીઠારા-એ એક એ ગુણ છે
જીભની મીઠાશ એજ બોલવાની શક્યતા છે.
જીભની મીઠાશ ન હોવાને લીધે તે કેટલાક કે તે ગુણ જેનામાં હોય છે તે વેરીને પણ વશ
નિ:સ્વાર્થી સેવા કરનારા હોવા છતાં તેમના ઉપર કરે છે, પરંતુ તે સાથે યાદ રાખવું કે જીમની મીઠાશ હોય એટલે મેલવામાં મધ જેવી મીઠ
સમાચાર પત્રોમાં કટુક ને છડા શબ્દોની ભરમાર હષ અને અંદરખાનેથી મેલો હોય તો તેવી
કરી પિતાનું હૈયું ખાલી કરી દે છે આમની મીઠાશની અપેક્ષાએ તો કડવું બેલનારા પણ
મીઠાશ ન રાખનારા એટલે તે બટુક બોલનારા સારા છે. કહ્યું પણ છે કે
સવે કાઇને ખારા અગર સમાન લાગે છે, એવું
બોલનારા વાત વાતમાં શબ્દ શબ્દમાં વઢી પડે મન મેરા સન ૩૧છા, ઘટી થાય
છે. કરાંઝીને, તતણીયાં ખાઇનેતપી જઈને, સુકા રે રી રૌના મા, તન મન % હી ર૪ ને છાકોટાથી બોલનારા કે હલકા શબ્દોને પ્રયોગ
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ભજ ૨૨ ]
કરનારા
સમયપર વિવાહની વરસી કરી મુકે છે. તેવા માણુસાને કાઇ સાથે કરવા દચ્છા ધરાવતુ નથી. તેની સાથે ધંધામાં યાત્રામાં કે તેમનુ જ ભલુ કરવામાં યેાગ ધરાવતા નથી, કદાપિ તેના સાથે અજાગૃપણે કે ભાગોગે સબંધ અન્યા હાય તે। લઢી ખાઝીને છુટા પડવાના પ્રસંગ આવે છે. એમ તા સર્વે કાઇ કહે છે કે “ જીભમાંજ મીઠાશ છે અને જીભમાંજ ઝેર છે.” અને વાત પણુ અક્ષરશ્ન: સત્ય છે પરંતુ એમ ગુણુને જાણનારા અને એને અનુભવ લેનારાજ તેનુ પ્રાયઃ પાલન કરો લાભ લજી શકે છે.
[ ૨૨
ચેલા અને ફેશનની પીસીમારોમાં ક્રુસેલાઓની વધારે માન્યતા નથી એટલુંજ નહિ પણ તેમેની કદર એટલી થતી નથી કે જેટલી એક સાધારણ સ્થિતિવાળા પણુ નીતિમાન, ધર્માતા, પાપકારીની કદર થાય છે. જગતમાં ગુણનીજ પૂજા અને ગુણુનેાજ મહિમા છે. ગુણ વિનાનું જેમ સેમરતુ કુલ બહૂ સુંદર દેખાવા છતાં નકામુ છે. તેમ ધણા ભણેલા હોય પણ નીતિ રીતિમાં ન ચાલતા હાય, પરોપકાર બુદ્ધિ ન હાય, ચારિત્ર સદાચરણને તિલાંજલી આપી હોય તે તે ભણવું પણ બ્ય છે. દૃષ્ટાંત તરીકે જેમ “રસાઇ ભેજનના અર્થે હોય છે તેમ જ્ઞાન પ્રાપ્તિ ચરિત્રને અવે છે. જગતમાં અર્થાત્ ભગૢવું તે જીત્રન યાત્રા સુધારવા માટે છે. અથવા શીક બનાવવા માટેજ છે. કોઇ મહત પુરૂષે કહ્યું छे ! डोक्टर के बेरिष्टर वीगेरेनी डीपीओ मेळव• वामांज केळवणीनो हेतु पार पडतो नथी, परन्तु समाज सेवा अने तेथी अधिक आत्म श्रेय करवाમાંગ મળીનું તત્વ સમાયેલું છે. માટે આ ઉપના કથનને ધ્યાનમાં રાખી જે કાઇ પ્રથમ કહેલા ૩ ગુણને ધારણ કરશે તેા તે સાચા માનવ સમજ જતી ગણુત્રીમાં ગણાશે તે સ્વપર ઉપકાર કરી શકશે, એજ આ તુચ્છ લેખના સાર છે.
જીવ
दिगम्बर जैन ।
મીઠાશથી ખેલનારાજ દુકાનની અંદર પેાતાના શકે છે. મીઠારાથી ધરાકાને સારી પેઠે પલકી મેાલનારાજ ઘરમાંના ખાનગી ઝઘડાના અથવા અહારના ઝધડાના સહેલાઈથી અંત લાવી સમાધાન કરી શકે છે, મીઠાશથી ખેલનારાજ પ્રાય: પેાતાના મનને ખાવી કાબુમાં રાખી શકે છે. ટૂંકમાં મીઠું ખેાલનારા ધારે તેા આ લેાકમાં ધન અને યશની પ્રાપ્તિ કરી પરલેાકને માટે યથાયેાગ્ય ધર્મસાધન કરી શકે છે. ખીજા બધા ગુણા હૈય પશુ આ એકજ ગુણુ ન હોય તેા તેને તેના કામમાં ઘણી અગવડતા ભાગવવી પડે છે એટલુ જ નહિ પરંતુ તેના ઘણાખઞ ગુણુ ઢંકાઇ જાય છે ને તેની પ્રશ'સાના બદલામાં નિંદા થાય છે. દૃષ્ટાંતતરીકે જીએ-કાગડાએ કાનુ બગાડયું નથી તે કાયલે કાઇને કંઇ આપ્યું નથી. પશુ એક તેની ખેલવાની મોઠાશને લીધેજ હર સૈા કાઇના ચિત્તને હરણ કરે છે. આ એકજ ગુથી જ્યારે માનવને સુગમ પડે છે અને લાભ કર્તા છે ત્યારે જ્યાં ઉપરાક્ત ત્રણે ગુણા ઢાય ત્યાં તા પછી જગતમાં તેનું સન્માન થાય એમાં ક ંઇ નવાઇ નથ→ મનુષ્યામાં મનુષ્ય બનવા માટે પ્રથમ આ ૩ ગુણુ અવશ્ય અવશ્ય હાવા જોઇએ. એ ૩ જીણુ વિના જે માણસા પેાતાને ઉચ્ચ ધારતા હોય કે પેાતાને યેાગ્ય સમજતા હૈાય તેા પેાતાના દીલથી ગમેતેમ સમજે પરંતુ સજ્જનેાની દૃષ્ટિમાં તે ઉપરીક્ત ગુગુ
SSSSSSS उत्तम उपदेश | BOOOOOOOOOOOOO
१ – उस ईश्वरकी सेवा करनी चाहिये जो सर्वज्ञ हो, वीतराग हो - जिपको न किसीसे राग न द्वेष हो और जो ८ मूलगुण, १९ व्रत, १२ प्रकारके तप, ४ प्रकारके दान, रत्नत्रय, समता भाव, जलगालन विधि, रात्रिभोजन इन ૧૩ (૮+ ૨+૨+:+3+3) `ડિયામોંતે
વિના વધારે કેળવાયલા સુધારાના શિખરે પડે!-મુષિત હોવાઢે વ નાિનેન્દ્ર, ત્રહ્મા, વિષ્ણુ,
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दिगम्बर जैन ।
० ]
महेश, बुद्ध, इसाई और यवन भी क्यों न हों । २- पच परमेष्टीकी दो माला दिवसमें दो समय अवश्य जपनी चाहिये ।
३ - स्नान सदा प्रातःकाल गरम और स्वच्छ जल से करना चाहिये चूंकि हमारे शस्त्रानुसार स्नान धर्मका एक अंग है ।
५- भोजन करने के पूर्व अपने ईश्वरका स्मरण करना चाहिये और पूर्ण होनेपर धन्यवाद हो ।
(लेखक पं० प्रेमचंद पंचरत्न, भिंड) - प्रिय वाचको ! हमारे पूर्वाचार्योंने अहिंसा (दया) का स्वरूप इस प्रकार दर्शाया है
४ - स्नान बने वहांतक नदिया तालावपर ही दया मूलो भवेद्धर्मा, दया प्राणनिकंपनं । करना चाहिये । दया या पररक्षार्थ, गुणा शेषा प्रकीर्तितः ॥ अर्थात् दयाका लक्षण सम्पूर्ण प्राणियों की रक्षा करना बताया है, तथा दया ही धर्मका मूल है और जो दया दूसरोंकी रक्षा के लिए की जाती है उसके द्वारा कीर्ति आदि उत्तम गुण प्रगट हो जाते हैं ।
६- भोजन नियमित समयपर और खूब चबा २ कर करना चाहिये ।
७9- घंटी बजे तब भोजन नहीं करना चाहिये जब भूखकी घंटी बजे तो भोजन करना चाहिये ।
८- दंतधावन सदा नीम या बबूलके दातोनसे करो और इन वस्तुओं को मिला करना चाहिये।
चाक मिट्टी बादाम के छिलके का कोयला, लवण । ९ - प्रातः काल में थोड़ा २ नाकसे ठंडा जल पीने से गरुड़ के समान तीव्र दृष्टि होती है और ब्रह्मपतिके समान बुद्धि होती है ।
S. अहिंसा |
१० - जिस प्रकार सीने, बुनने तथा अन्य मशीनोंको साफ करनेकी और संभालने की आवश्यकता है उसी प्रकार शरीररूपी मशीनको साफ और संभाळनेकी आवश्यकता है ।
भुरालाल जैनी ।
[ वर्ष १७
इसी लिये जिसकी प्रशंसा पूर्व - आचार्योंने अपने मुक्त कंठसे की है, ऐसी दया (अहिंसा) को कौन ऐसा पापात्मा होगा जो ग्रहण न करे, क्योंकि जिसके द्वारा हम पराये प्राणोंकी रक्षा कर सकते हैं, जिसके द्वारा हम दूसरोंको सताना महा पाप समझते हैं, जिसके द्वारा हम दूसरोंको निर्भीक बना सकते हैं, जिसके द्वारा हम अन्याथियोंका अन्याय सहन कर सकते हैं, जिसके द्वारा हम शत्रुको भी अपनाते हुए अपना प्रेम उस पर प्रकट कर सकते हैं, और जिसके द्वारा हम अनेकानेक हिंसामय विघ्न आते हुए भी अपनी धार्मिक नीतिका उल्लंघन नहीं करते वह केवल एक अहिंसा ही है ।
अहिंसा प्राणी मात्रकी हितैषिणी देवी है । वह अपने भक्तोंको सदैव अभयदान देती है ।
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दिगम्बर जैन ।
अंक ११ ]
॥
जो मनुष्य उसका ध्यान करता है, वही सब जीवका सच्चा बंधु है और उसका घर्मसे पक्का रिस्ता है । जिस किसीने अहिंसा देवीका शरण लिन उसीने क्रोध, मान, माया, मत्सर, मादि शत्रुओं को जीत लिया और उसीने अपने आत्माको संसारके बंधन से मुक्त करनेका यथार्थ प्रयत्न किया, क्योंकि नीतिमें कहा हैधर्म यस्य तस्य लिङ्गानि दमः शांति अहिंसतः तपो दानं च शीलं च, योगो वैराग्यमेव च भावार्थ-महिंसा धर्मका एक मख्य चिह्न है, तथा उसके तप, दान, शील, योग, वैराग्य और और दमः (इन्द्रियोंको वश करना) आदि गुण हैं। ऐसा जान अहिंसादेवीका भक्त क्षमा, संतोष और शांतिताका उपासक होता है । उसे कोई कितना ही सतावे कितना ही दबावे परन्तु वह किसीको भी सताने दबानेका इरादा नहीं करता और न किसीका बुरा बिचारता | वह सदैव ही दूसरोंके दुःख दूर करनेका प्रयत्न करता रहता है, क्योंकि पक्का अहिंसावृत्ति | क्योंकि
जो नरोत्तम वृत अहिंसा धारता । वह सदा परकी भलाई चाहता || कोई कितना ही उसे दुतकारता | किन्तु सबपर वह क्षमा ही चाहता || वर्तमान समय में गांधीजी संसारमें सबसे बड़े महात्मा समझे जाते हैं, जिनको सभी धर्माव लम्बी भली भांति चाहते हैं, और उनके सिद्धान्तों का पालन करते हुये देशको धार्मिक तथा स्वतंत्र बनाने के लिए हजारों लोग राज्यनतिक क्षेत्र में उतर, शांतिताकी लड़ाई लड़ रहे
।
[ ३१
हैं। क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या जैन, क्या आर्य, क्या ईसाई, और क्या पारसी, सभी महात्मा गांधीके व अहिंसा के अनुयायी दिखाई देते हैं । महात्माजीका उपदेश है सताता है सताने दो, किन्तु नेका बदला " सहनशीलता" दो। तुम्हारा सहनशील गुण उसको यथार्थ रास्तेपर लावेगा, तब यही तुम्हारे द्वारा उसका उपकार होगा । हमारे न्यामत कवि भी बताते हैं किअपनीसी जान जानिये औरोंकी जानको । न्यामत किसी के दिलको दुखाना नहीं अच्छा ॥ अतः जिसे तुम सतावोगे वह तुमको सतावेंगा | जिसे तुम हंसावोगे वह तुमको हंसावेगा । इससे तुम अपने प्राणों की तरह सबके प्राण समझो । किसी भी जीवको दुखानेका इरादा मत रक्खो । सुनोसताता है जो गैरोको
वो खुद आपद बुलाता है । हंसाता है जो गैरोको
वो खुद खुशियां मनाता है । जो अहिंसावती दे, वह हिंसोत्पादक कारणोंसे सदैव बचता रहता है । वह जो कार्य करता है हिंसा रहित करता है-उसके परिणाम कभी हिंसामय नहीं होते। लाख, जहर, आदिके व्यापारका उपदेश नहीं देता और न करता | व्रती मिथ्या मुकदमा नहीं करता ।
कि :- जो तुमको तुम उसके सता
अहिंसा व्रती अशुद्ध चर्बी मिश्रित मिर्लोके वस्त्रोंको उपयोगमें नहीं लाता । वह तो अपनी देशी शुद्ध खादीको स्वीकार करता है जो कि सब प्रकार से शुद्ध है ।
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दिगम्बर जैन ।
[वर्ष १० महिंसाव्रती ऐसी झूठ नहीं बोलता जिससे समयोपयोगी शिक्षायें । दूसरोंपर विघ्न मा जावे तथा प्राण दंड मिल (लेखक-पं० जयचन्द्र जैन शानी-कलकत्ता) नेकी शंका हो ।
१-ब्राह्म मुहूर्तमें उठना समस्त रोगोंका और न वह अपने व्यापारिक कार्यों में झूठकी नाशक हैं। शरण लेता, वह किसीकी वस्तु धोका देकर -२-सुख नींद सोनेसे मन प्रसन्न रहता है, नहीं ठगता, कितीको कमती नहीं देता और बुद्धि निर्मळ रहती है, पदार्थका ज्ञान बड़ी सरन बढ़ती लेता, लेने देनेको तराजू वांट हीनाधिक लताके साथ होता है। नहीं रखता, क्योंकि व्यापारमें झठ बोलनेसे, ३-प्रातःकालमें शय्यासे उठते समय अपना ठगनेसे, हिंसाका पाप लगता है। मुख घी या दर्पणमें देखो। . सारांश यह है कि दूसरों के दिलका दुखना .
४-प्रातःकालमें रजस्वला स्त्रीको अंधे,लंगडे, ही हिंसा है तो क्या अपने स्वार्थके लिए झूठ :
! लूले, कुबड़े भादि विकल अंग वालोंको नहीं
' देखना चाहिये। बोलने और ठगनेसे हिंसा न लगेगी ? अवश्य
५-नित्य दन्तधावन नहीं करनेवालेके लगेगी। इसलिये हमको चाहिये कि हम निम्न कविताके भावको समझ अहिंसाका आदर करें- मुखशुद्धि नही होता है।
६-कार्यकी बाहुल्यतासे शारीरिक कर्मोको यदि हम अहिंसा धर्म से सम्बन्ध करना चाहते। नई तो क्यों नहीं नीचे लिखे दोषोंको शीघ्र निधारते ॥टेक ७-वीर्य, मल, मूथ, वायुका वेग इनका व्यर्थ परको कष्ट देकर चाहना अपना भला । रोकना अश्मरी, भगंदर, गुल्म, बवासीर आदि झठी गवाही पेश करके फांसना परका गला ॥
रोगोंका यदि हम अहिंसा सलिल पीकर शांति रहना चाहते ॥तो. व्यवसाय वह अति निंद्य है जिसमें समाई झुठ है। ९-प्रातःकालमें गौओंके छूटते समय व्यायाम अरु ठगरहे परद्रव्यको एक दिन मचेगी लूट है ॥ रसायन समान फल देती है। यदि हम अहिंसा मार्गपर, परको चलाना चाहते ॥ तो० १०-शस्त्र और वाहनके अभ्याससे व्याया. है मिलोंके वन सारे अशुचि चर्बीसे सने । ममें सफलता करनी चाहिये। उन्हें ला उपयोगमें हम धर्मके धारक बने ॥ ११-जब तक शरीरमें पसीनेका उदय नहीं यदि हम अहिंसा धर्मका झंडा फहराना चाहते ॥ ता० हो तब तक ही व्यायामका समय है। प्राण हरना दिल दुखाना कौनसा यह पाप है।
१२-शारीरिक बलसे भी अधिक व्यायाम मैं तो कहूंगा बस वही हिंसा भयानक ताप है ॥ "प्रेम" की अर्जी यही जो दुःख हरना चाहते ॥ तो०॥ करना रोगोंका घर तैयार करना है।
१३-व्यायाम नहीं करनेवालोंके अमिका “बोलो अहिंसा धर्मकी जय । उद्दीपन, शरीरमें दृढ़ता, उत्साह और निरा
लसता कहांसे हो सकती है ?
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આજના અંકને વધારી. હાલ તરતમાં મંગાવી લેનાર પાસે રૂ. ૨ ઓછા લેવાશે,
શું તમારે પૈસાદાર થવું છે ? જે થવું હોય તો જ વાંચો, દેશને ઉદય કયારે થાય જ્યારે દંશ હું હૃદ્યોગનું નામ છે ! કર સ્વતંત્ર રંધે કરતે થાય ત્યારે તમે નોકરી માટે વલખા મારતા હો છતાં ન તે જરા નોં, તમારી પાસે મૂડ ન હોયતો ગભરાશે નહિ, તમારી પાસે પૈસા ટકી ન હોય તે આઝાદ નઈ. મારી માં તે ઝવ દૂર કરવા માટે આજેજ
ક
પિસાર થતાં ૩૧ ,
આ પ્રસ્ત ગાવે. તે તમને પૈસા શી રીતે મોહ તે કર, એ જે રી એ કેતા હો તાપ તે ઉપરત કહ્યું કે બે કમાઈ શકે તે હુ મા ન્હા , દર જ છે જેમ કે , વગર મૂડીએ વેપાર કેમ કરાવવા, હજાર નવા નવા હુન્નર ૨ હરિક શી રીતે કરવી, ખેતીવાડી કેવી રીતે કમાવું વગેરે અનેક ઉપાય તમને દબ. મારા ધંધા ઈંધરતિ પામતે કંઈ એક જ પ્રયોગ હાથ કરી લેશે તે તમે રૂચ અને મશુરીએ. મૂડી છે. જગર, હૈર બેઠાં તો છું કરવા છતાં હજારો રૂપિયા મેળવી શકશો.
આ પ્રસ્ત પ્રભુમાં એટલું બધું લોકપ્રિય છે પપૈડકું છે કે તે જે જ ખતમાં શું આત્તિમાં હજારો નકલો ખપી ગઈ છે અને જે રોથી મા
જ જણ ધરા વધારા સાથે બહાર પાડી છે આ પ્રસ્તાવ અત્યાર સુધીમાં હળી મા સે કમ છે લાગ્યા છે અને જેમને લિકાના અનની ૫૭ તાણ પડતી હતી, જે પાંચ સાત કે દસ પંદર રૂપિયામાં ખાખ દીવસ નોકરી કરતા હતા તે અત્યારે હજાર રૂપિઆ મેળવી સુખમાં જીદગી મળે છે. તમારે પણ છે સહેલાઈથી હજારો રૂપિઆ મેળવવા હોય તો આજેજ આ પુસ્તક મંગાવે..
- આ મસ્તકનો અનુભવ કરી હજારો માણસે એ સુખી થઇ અને તે સિવો અને સ્વ છે. તેઓ મના અરે ઘણા પૈસાતાજા થયા છતાં પણ અમારે યુ લતા નઈ. કેટલાસ તો આ પુરત પોતાના પની માફક સાચવી રાખે છે. આ પુરતમાં છે જે હારના, નૈના અને પરીવાડીની પ્રયોગ યા છે તે ધેર બની શકે તેવા છે. જો તેને અનુર કર્યો છે. તેમાંના છેચાર પ્રયોગે તમે હાથ કરી લેશે તે પછી તમે કદી પૈસા માટે સુખ ના મારે--ૉળી બંદર એટલા બધા પ્રયોગો છે કે જેને અમે સાવસ્તર વર્ણન કરવા કરીને તે બીજુ પુસ્તકે શાચ, જેથી માત્ર ટુંકમાંજ હકીકત આપીએ છીએ. તેમાં તેર ભાગ ૨ ૧૫૦ ઉપરાંત પ્રકરણું છે અને ત્રણું હજાર ઉપરાંત પ્રગો છે.
ભાગ ૧ લા ધનનું મહત્વ, ધનની આવશ્યકત, પૈસાનું મહત્વ વગેરે. ભાગ ૨ – ધનવાન થવાને માટે વૈશ્યતા પ્રાપ્ત કરવી,ધીરજ, પરાક્રમ, સિદ્ધિને મુળ મંત્ર વગેરે ભાગ ૩ -વિક પ્રાપ્ત કરવીધાની રાધ, કયે ધંધે લાભપ્રદ થઇ શકે. ભાગ ૪ થો નોકરી જુદા વહા ઘા ઝુથી જુદી જુદી રીતે પ્રાપ્ત કરવાની રીત
ભાગ ૫ મો--વેપાર કરવાના ફાયદા મારી પ્રાહકો વધારવાની ટૂળ, સુડી ધીરનાથ, મિલકત શી રીતે વધારવી, નર ઉદ્યોગની વૃદ્ધના સાધનો, કયા ઉદ્યોગ પર્વ લવવા, વેપારને મદદ કરનાર, સાધન, જયાબંધ માં શી રીતે એકઠા કરે. નાનું, નેણ શાહ, ના નવા ઉદ્યોગ, સટ્ટાને ધધા , તેમાં ધારેલી બાજી શી રીત સહાય, લોન શરનો ઉં, જીણાવટીને ૯ છે, તેમાં રાયદા શી રીતે મેળવવા - ભાગ ૬ ઠો-ખેતી, ખેતીના સાધન, જમીનનો રેમ્ય શી રીતે વધારવા, કમીનની ઉપાદ શકિત વધારવાના ખાતર, જમીનના મુખ્ય પ્રકાર, ખાતર સંબંધી કળા, ખેતી ૨ષધી પ્રયોગ, વીસ પચીસ ભણે પાક ઉતરે તેવા ખાતના પ્રયોગે તે સાથે કરવાનું અનાજનું વાવેત, હિં, ઢાંખર, બાજરી, જાર, તુવેર વગેરે,તલ,અળસી, અમળી, દીવેલા, તમાકુ, કેરી, ૪, જીરૂ મેથી,ધાણા, વરીયા, સુવા,ગળી, લસણ,કોકમ, શેરડી, કપાસ, સણ વગેરેને ધાર્યા કરતાં વીસ પચીસ જો પાક દતરે તેવી રીતે વાવેતર ફરવાની તથા પકવવાનો નવીન શોધ. હીંગ, ગોળ, ખાંડ, સાકરે અનાવવી વીર.
ભાગ ૭ મા-અનીજ પદાર્થોથી ધનની વક્ર ધાતુ, તેમાં તેનું રૂપુંલાટું, તાંબુ, પીતળ, રડી અગરખ, સ્ટેટને પાર, ખાસ્ટર શેફ પેરોય, વીગેરેની વાધ તથા પણ બનાવવાની રીત,
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ભાગ ૮ મા-ઝવેરાતને વેપાર, હીરા, માણેક, શનીશ્વર, પુખરાજ, મીસતી, ઈમીટે સન, માણેક વીર પારખવાની અને વેપાર કરવાની રીત, હીરામથિી છટા કાઢવાની રીત, મોતી કુદરતી મોતી, એબવાળા મોતી બનાવટી મોતી, મોતીના મુળુ મેરી વિંધવાની રીત મા રીતે અવારવ, માની ધાવાની રીત,
| ભાગ ૨ મે-કન્નર ઉદ્યોગ તેમાં તમામ પ્રકારના રંગ બનાવવાની રીત; સફેદ, લાલ કીરમછે. હીલો, પીળા, ક્ષ વીગેરે રંગ રસાયનિક રોત બનાવવાની કળા હાથીદાંત, પશમી કપડ, ઉનન સુતરનાં વિગેરે ક૫ડનિ જુદા જુદા રંગ ચઢાવવાની વિદ્યા. કાગળ બનાવવાનો ઉદ્યોગ જેમાં અપવાના, લખવાના, કાગળ, ન તખતા, પાલીસપેપર, કાચને ઉદ્યોગ જુદી જુદી જાતના કાચ બનાવવાના પ્રયોગ. ચામડાને ઉંધોગ- ચામડીને શુદ્ધ કરવાની, પર્વવાની તેના પર જુદા જુદા રંગ ચઢા- . વવાની રીત, સાબુ બનાવવા ઉસમાંથી સાબુ બનાવ, ચરબીન, કોમના તેલને, કોપરેલને એરંડીયાને ડોળીયાનો, રાળને સાબુ બનાવાની રીત, oો રંઅને સામું હોદ મૂનાવો; પાપડીઆ ખારમાંથી બનાવ, અર્ધા કલાકમાં સાથ બનાવશે. અલીસરાઈન કાઢવાની રીત, આથાડીન, ટેનીન, ડીસન્ટેકટ, હાર, મ, બારસો૫, વિન્ડસર, હીના, લેમન, ફાને, નારંગી, કાલીક, હની સર, પારદર્શક ડાય કાઢવાને સાબુ બનાવવાની રીત, જવાને પાવડર, રસાને અર્ક નાવ, વગેરે. મીસુખત્તિ બનાવવાની કિયા અને તેની બનાવટ. કટોગ્રાફર બનવાને ; કેમેશ તીરેતી સમજ, ફોકસ મેળવી ફોટા પાડવાની રીત: કાચને દવાથી દેવાની રીત, દર : ૫ પરધી કોરા કાગળ ઉપર કેવી રીતે ઉતારવે, કાગળ ઉપર ઉતારેલા ટાને દવાથી દેવાની કીત તથા તેની દવાઓ તેને તૈયાર કરવાની રીત વીરે; સીમેન્ટ બનાવવાની ક્રિયા જુદી જુદી જાતના અનેક પ્રકારના સીમેન્ટ બનાવવાની જુદી જુદી બનાવટ. વારનિશબ્દરેક પ્રકારની વારનીશ નાવાની મજા, જાણે બનાવવાનો ફિયાઓ, લાહી–જુદી જુદી જતની અનેક પ્રકારની શાહી બનાવવાની રીત જે તમામ પ્રકારની છાપવાની, લખવાની; નાહીએ, કપડાં કે વાડી વિગેરે પર લખવાની રબરસ્ટેમ્પની, પરમેનટ સાડી, ટાઈપરાઈટરની શાહી, વગેરે અનેક જતાની બનાવટે.. બટને તમામ પ્રકારના બટને બનાવવાની બનાવટ. દીવાસળીઓ-દરેક જાતની બનાવવાની ક્રિયા, સાબુ અને ડું બનાવવાના લગભગ ૪૦ પ્રો , બનાવટી ધાતુ બનાવવી. ધાતુ વિગેરે સાધવાની, તેનો રસ કરવાની ક્ષિા, રણ વિગેરે ધાતુઓ ધોઈ પાસ કરવી, તેના ઉપર અક્ષરા કાતરવાની રીત. ધાત ઉપર વીજળીની મદદ વડે બીટ ચઢાવવો. વીજળીની બેટરી બનાવવી. વીજળીને ઉપમ કરવી, ગીલેટ કરવાની સોનેરી અને ફરી ભૂકી બનાવવાની રીત, લાડને રંગવાના તથા તેની બનાવટના
આ પ્રયોમા, હાથીદાંત જેવું બાકી બનાવતું લાકીના વહેરની વસ્તુઓ બનાવવી, અબુનસની લાકડ જેવાં લાકડાં બનાવવા, હાથીદાંતને સંધિવાનું મિશ્રણ, પાણીથી પલળે કે અમિથી બળે નાહ તેવાં લાકડ, જીવજંતુઓને દુર કરવા, સાપ, ઉંદર, મા ક દહ, કડી, મg૨ જતા અટકાવવા અને જાય તો દુર કરવાના તથા કરી આવે નહિ તેના મા, અનાજ અને નહિ દેના પાય. અનાઓ જીવડાં ન પડે તેના ઉપાય, લાકડી સકે નહિ તેના ઉપાય, કે પશું વસ્તુ પર રાજ કેહવા, સુતરાઉ, રેશમ ઉનનાં, મખમલન કે દરેક જાતના કપ, લોઢું, સોનેરી દર પરથી કી શાહીના કે ડામર, મેચ, ચરબી વિગેરે ગમે તેના ડાઘ કાઢવાના પ્રયોગો, રંગેલાં કપડાં ધોવ, મોતી ઉપરથી કાય કાહવા, સોના રૂપાની જણસે ઉપરથી ડીલ કાઢવા, કાચ, આરસપહા; && શરીર, દોષ, તરવાર, ફેટે વિગેરે દરેક ઉપરથી ડાબ કાઢવાનો તથા તેને ધોઈ સારું કરવાની રીત, ગ પારખવાની રીત--દુમાં, પાણીમાં, ઝેર, સોનું ચાંદી, ધાત, તેલ, ઘી વગેરે દરેક ચીજમાંથી ભેદ પારખવાની રીત, કટલીક સુધીવાળી બનાવટો, અગરબત્તી, છુપ, બરાસ વગેરે અનેક ચીજોની બનાવટ, કેક, અકીલ, ગુલાલ, કાશે એળી વગેરે બનાવવાની રીત, દુધની ભૂકી કરવાની રીત, બનાવટી વસ્તુઓ બનાવવાની રીત, જનાવી આરસપહાણ, પત્થરો મન્સનસનાં લાકડી, હાથીદાતચામડી, એક, ગાક, કસર, કસ્તુરી કઢાઈ, હીરા, નીલમ, મોતી, મા, પોખરાજ, ૫બા, અકીટ, કપાસ, રેશમ બનાવવાની રીત, શારીરને સ્વચ્છ બનાવનાર-ગોરા બનાવનાર પ્રયાગઢ, ખીલ દુર કરવાના, ચાડી દુર #રવાના, ના દાત કાઢવાના, શીતળાના ચાંઠ દુર કરવાની, ચામડી થર થાય તેના ઉપાય, ખરી જતા વાળ અટકાવવાના, રાળ વધારવાના, વાળ કા કરનાર કલપ, વગેરે અનેક બનાવટો. આઈસક્રીમ બનાવવા, લીંબુ, ગુલ્લાબ, કાક્ષ વગેરે દરેક જાતનું શરબત બનાવવાની રીત, શરબત તૈયાર કરવાનો પાવડર, ચાસણી વગેરે બનાવવાની ત, રાપરો બનાવવા મુજબ, નારંગી, સુખડ, કેવડે, અંબર વગેરે ગમે તે પુલમાંથી અત્તર કાઢવાની રીત, સુગંધી તેલ બનાવવાની રીત, જેમાં ગુલાબ, જઇ ચમેલી, મોગરો, કપુર, બાન, બદામ, પિરેa, તેજ, લવીંગ, લીલારસ, જાયફળ, નાગરમોથ, ખસ વગેરેના તેલ કાઢવાની બનાવટો, લડીમાળમાં ફરવાનું તે; &ત્તને વધારનાર તેલ, વાળ ઉગાઢનાર ગુલાબી તેલ, હેરઓઈલ, કોપરેલ શુદ્ધ કરવાની રીત, જુદી જુદી વતની હેરઓઇલ બનાવવાની રીત- તેની વસ્તુ
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નિ વજન, લવંડર, બિન વોહર, કરીડા વોટર ગેરીયન વેટર, બાદશાહી અગરાજ લાવર, 2 વેટર, ગુલાબજળ. આર જવાટર વગેરે અનેક બનાવટ, સેડ લામેનેડ, સેડાઇટર લેમોનેડ વોટર, ટાની વોટર ઈઝર બનાવવાની રીત, બનાવવાની રીત, જુદી જુદી જાતના બીસ્કીટ બનાવવાની રીત, છ ક બનાવવા-જુબંધી કરતુરીની મદ્રાસી વગેરે અનેક જાતની તપખીર બનાવવાના પ્રયાગા. મીણ માપડ બનાવવાની, પોળા માણન સદ કરવું, તંબુ કે નિવાસ પામ ન ૫ડે તેવા રવાના વરે અનેક પ્રયાગ. બનાવટી સ્લેટ અને પિન્નત બનાવની ઇવાનું દારૂખાનું બનાવવાના અનેક પ્રયોગો જદુઈ સાપને સળાઓ બનાવવી, દાટેલું ધન શોધી કાઢવાના અનેક પ્રયોગ તથા તે મા દાઢયું છે તે જાણવાની વિલા, ટલા ચમત્કારી પ્રયોગો. દિગ્ય દષ્ટિ, જળપ્રવેશ મૃતસંજીવન અગ્નિપ્રવેશ, આકાશ ગમન વિગેરેના જાદષ્ટ પ્રયોગો, પાણીમાં ભડકા કરવા દેવતાને પ્રકટાવવા. રંગ ઉડાવી દેવા ભગા બનાવવા, લેહા કાવું નદષ્ટ ડીવા, પસ ચાટાડ, વગર દેવતાએ ચા કે રસોઈ બનાવવી. વિગરે કટલાક ઉપાગી ગયા. લીબનો રસ ટકાવી રાખવો, રેસ કે અંદરનું પાણું ટકાવી રાખવું, ગુલાબનો જ તાજો રાખવા, બયકા તાજ રાખવા બી જાળવી રાખવા, સ્વદેશી ચહાના બનાવટ, બરય બનાવો. વત માગ ઓલવવી. તાડના છતાં હર કરવા શીગડાંનાં શીપ જેવા બટન બનાવવ, કચકડાનાં બટન ર્કાગડા જેવી બનાવવા, રબરસ્ટેમ્પ બનાવવા, દુધમાંથી માખણુ વધુ નીકળે તેવા પ્રયાગ, વીજળી બનાવવો, કાનમવા જાડા, માથામાંથી ને ખડે કાઢવાની રીત, વાજબના અંગુઠી બનાવવી, ખારો સુંઠ, પીપર બનાવવો, સીગારેટ બનાવવાની રીત, બારીઆ બનાવવી, અસ બનાવવા, તકતા તૈયાર કરવા, ઝાય સાથે ધાતું ચટાડવા, ફાટાને ચટાડવાનુ મશ્રણ રાગ સુધારવાના પ્રયોગો. માસના દીવા કરવા, વીજળીનું તાવીજકરવું, દારુ છોડાવવાના પ્રયોગો, બધી છાડાવવાના પ્રયાગ, કપુરની માળા - મને પ્યાલો બનાવવા, પારાને વાલે બનાવવાની પાંચ બનાવટ ચીકણું સાપારી બનાવવી. માતાને પાછુંદાર બનાવવાની દવા, મસા કાઢી નાંખવાની દવા, કાળ, ધાણું, અને ગુલાબી દંતમંજન બનાવવુ, સેના વરસ બનાવવાના પ્રયાગા.
ભાગ ૧૦ મે–વૈધક પ્રયોગ દરેક પ્રકારના એસન્સ મને અર્ક બનાવવાની રીત, પેટ દવાઓ જેવી માબેનટ આમ અમેનીઆ, કાનટ સોડા, લાઈમ સાઇડ ઓર ખાયને ના કલારાઇડ આમ ગાડ, લાદવુસુ, ખાંડનો સરકે, પિટાસ બનાવવો, ગાઉટ પીસ, બ્લીસ્ટર, કલાઠિયન કોલેરા માકર, દાદરના મલમ, કલેરોક્રામ કિવનાઈનની ના મોઆ, સરસપાસ, ખાયને પીસ,કમ્પાઉન્ડર આયર્ન માકર, સા૫ આર હાઇપોસ્ટક્સ એવોર્ડ લાઈમ, નાઇટ્રેટ એ પીટાસ, કવીનાઇન આયન મીક્ષચર, એકસાઇડ એફ કાપર, પિનકાલન, કલાઇન સાઇટ્રીક એસીડ, ડાવસ પાવડર કાલ્પકામ માફક આ રાઝ, નાઇટ્ટાક એસીડ, મહુઆટિક એસીડ, ફેસરસ ડેસીયાના ટોનીક પીલ્સ, ઇન્સપીસ. ઇસ્ટસસાર૫, સસાપરિલા, બાલામત, ખરજવાના મામ, મ થાવ ભામ. મિથાલ આર્ટ, ડાઇ() વાળ વાવાનું પાણ. બાલનાયાક સાબુ. બાલનારા તલ, બાજાકે અમર્ક, તાંબુલવટી, બહેરાપણુનુ તલ, બાળા માળા, પારાના મલમ, કાબામલમ, સામલમ, લસણુનેહ અલ , ફટકડાના, માયાને, હીરાકસીને, દાવાના પેનટાઇનના વગેરે મલમ બનાવવા..
ભાગ ૧૧ મા-આયુર્વેદિક દવાઓ, તેમાં તમામ પ્રહારના કવાધી, ચુ, ગુટિકાઓ, ગુગળ, આસવ અવલેહ, અમર ભગ, રસ ને માત્રાઓને સમા થાય છે. ઉપરાંત દરેક જાતના ભારે કાઢવાની રીત પાકે સુરમ્બા, અથાણાં, ચટણ વિગેરેની બનાવટ.
" ભાગ ૧૨ મા ધન પ્રાપ્તિનો આધ્યાત્મિક ઉ પાયો, જેમાં માણસ ધનવાન થઈ શકે છે ધનવાન થવા માટે કોને આશ્રય ગ્રહણ કરવા, ધનવાન થવાના કેટલાક ઉપાયો, ધનવાન બનાવનાર માનસિક કયા. ધનવાન થવા માટે ઇશ્વર પાસ કરવાની માગણjના વિધિ. ધનવાન થવા માટે શારિરીક ક્રિયા, જળપ્રદ બંધા ધનવાન બનાવી શકે તેવા નવમા સિાહ બાન વિગેરે.
ભાગ ૧૩ મ–જેમાં અનેક ગરીબધાં વનવાન એવા પુરૂષોનાં જીવનચરિત્રાનો સમાવેશ કર્યો. છે. તે વાચા ધનવાન થવા ઈચ્છનારે સવા ચા અને વાતા પણ કાશે.
આમાંના ઘણા પ્રયાગી ત ખાસ નવીન બને હજારો રૂપીબા ખતાં શીખી ન શકાય તેવા રાસ હતા તે પણ દાખલ કર્યા છે. કીંમર માત્ર છે. ૧૦-૦ - પિ. ૦-૮૦ (તર ભાગ ભેગાજ છે.)
ઠાસાના હેડ માતરે ભગવાન હમાણુ લખે કે પુસ્તક મનુષ્યને ઘણુંજ ઉપયોગી છે. જે માણસ તેના ઉપયોગ કરે તે ધનવાન થયા વગર રહે જ નાં મામાંથી મેં પચિ સાત હજારની અજમાયસ લીધા જેમાં હું જ ફક્ત મંદ સૂર્યા. ને આપના અભાર માનું છું ધનવાન તે ધનવાનજ છે.
- ટાઉદેપુરથી--ગમખૂલસેન જ મશદીન એ છે કે ધનવાન નામનું પુસ્તક તેની મહેનત જતી રમત રૂ૧૦ રા દાત તે ઇચ્છે છેડી છે, આપે તે બનાવો દેશી ભાઈ ને ઉત્તેજન આપ્યું છે. મારે ગુણ ભરેલું ધનવાન પુસ્તક પાસે હોય ને ધંધો કરે તે ધનવાન થઈ શકાય તેમ છે. કાં, રૂ, ૧૦, આ પુસ્તક હાલ તરતમાં મંગાવી લેનાર પાસે માત્ર રૂ. ૮–૦ જ લેવાશે. વ્યવસ્થાપક ભાગ્યોદય અમદાવાદ
પેનાગ ૧૧ મ
રસા ને આવતા બનાવે, પાથ, આશા, ધનવાન
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નવી આવૃત્તિ સને ૧૯૨૪ સુધીની સુધારા વધારા સાથે છપાય છે, તમારે અસહકારી થવું હોય તો પણ તમામ કાયદાનું જ્ઞાન પ્રાપ્ત કરવું જોઈએ. કોર્ટ કચૈરીને કામ કરવા હોય, દાવા ફરીયાદ કરવાની રીત જાણવી છે તે પણ તમામ કાયદાઓ છુટા ખરીદવાથી ઘણું ખરચ થાય છે, તેથી જુજ કિમતમાં તમામ કાયદાઓનુ નોન એળવવું હોય તે આજેજ
કાયદાનો રિક્ષક ફોજદારી રેવન્યુઅન દીવાની કાયદાનું જુથ
અને
( ચોથી આવૃતી) મંગાવે. સ્ત્રી પુરત (હાને માં, અમલદારોમાં અને જનસમાજ માં એટલું બધું લોકપ્રિય થઈ પડયું છે ? તેની થોડા જ વખતમાં ત્રણ રમત ખપી ગઈ છે. કાટ કચેરીનું કામ કરનારા, વકીલ, સોથ વારવાર કામ પડતું હોય તેવા માણસો તે તેને હંમેશા પોતાની પાસે રાખે છે. કારણ કે તેમાં ફોજદારી, દીવાની અને મુલ્કી તમામ માદાઓને સમાવેશ કરેલ છે.
ધાશસભાના મેબ, કલેટ, દેશી રાજયના દીવાના, એરીર, મેજીસ્ટ્રેટ અને જડજે તે કહે છે કે: આ પૂરત દરેક માય પિતાના હિતની ખાતર હંમેશા પાસે રાખવું જોઇએ. આ પુસ્તક 'સ હશે તો કાષ્ઠ પદ અન્યાયી અમજદારી બીક છે. વકીલોને ઘેર ધક્કા ખાવા નહિ જવું પડે. તેના અંદર નીચે પ્રમાણે જ હારી, હવાની ને રેવન્યુ કાયદાઓ છે. સને ૧૯૨૪ સુધીના સુધારા વધારા સાથે છે.
આ પુસ્તફમ આપેલા કાયદા છુટા છુટા કરીદાથી બસો ૫રતિ પિચ ખર્ચ થાય તેમ છે. છતાં દબાણ હયદા તે ગુજરાતી માં મળતા નથી. આ પુસ્તકમાં અનેક કાયદાઓ છે. જેમાં પાનલીડ પ્રસીજ રોડ જેવા અનેક કાયદાની સાત આઠ રપમી કીંમત હોય છે. તે તે તમામ કાયદા માં કેટલાક પીનલ કોડ જેવા તો વળી અગત્યની ટીમ સાથે છે તેની કીમત માત્ર ૨, ૧૫ -૦ અને પીચ્ચે ૧-૦-૦ ખેલ છે. જેના સંબંધમાં હજારો ક્ષિપ્રા માંથી માત્ર જુજ વા. .
૪ ભાઇ માકૅજ કટના વડા તુજ નામદાર કુશાલ મોહનલાલ છે Rી લે છે ક~-~દાનો શિક્ષસ રમે નામનું પુસ્તક મળ્યું છે મોજીથી અજાણ એવા ગુજરાતી બાણુને એ પુસ્તકે ઉપર્યાગી થઇ પઠવા | સંભવ છે, અને હું ધારું છું કે
કાઠીયાવાડના દેશી રાજ્યમાં અને કાજ સાથે લેવાશે અને ચેનલ ને અને
ફોજદારી ફાયદા કીમીનલ પ્રોસીજરે કે
સરકારી છુપી વાતોનો એકટ પુરેપુરો અગત્યની ટીકા સાથે
આબકારી એસ્ટ ઈનડીયન પીનટ્સ કેબારા ને મેળાનો કો
મ્યુનીસીપલ એકટ પુરેપુરો અત્યની રક્ષા માં
વેપારની દબદબાથી નિશાનીને જ જંગલી પાકીના રક્ષણને ફાયદા ડીસ્ટ્રીટ લિસ છે —
પસ એકટ
મુરાવાને કાયદો બા એક્ટ તમાકુને એકટ
ગાડાપણુ એ કટ પોલેજ પોલીસ કાર
યુરોપમાન વેચન સી ક્રટ રેલવેનો એટ
કારખાનાને એકટ દડાના યુથ ક્રતા દશાનન કા.
ધોડદારૂની શરતેને કાયદે બાર નાર પદાર્થોને એ જ ૨ીય ગ્રીઓને થાય
ગલી પીના વીકારને બેસ્ટ વર્તમાનપત્રોને એ કદ
દીવાસળીએાને એકટ હાનીકારક મંડળ ા એ ફટ હાવાના સાન વેતનપાન કે,
રીમ કુંપનીને કાયદે જુગારને એકટ,
વૈદ્ય :ગુનેગારોને સ્વાધિનું કરવાનું છે, ટકા ; ઝેરી જ કરોને
ગુહા કરનારી જાતોનો એકટ કાટલી તથા ભરતના માને
પેટ નાના એકટ રૂમાં ભેળસેળ ન કરી રહે
હિંદુસ્તાનના રક્ષણને એકટ થી પર છે .
કોપરાઈટનો કાયદો કારીગર તે રન ડે
અફીણને એકટ જનાવર તરફ ઘાતકીપણાને કટ
રાજદ્વારી કેદીને કાયદે
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ટન સનંદને ગીરાને
એકટ
હવાની કિટના કાયદા, સીવીલ પ્રોસીજર કેહ (પુરેપુરા) મટરને એ કહે છે મુદતને કાર
વહેંચણ કરવાને બૈટ | નરવાને માટે
પ્રભેટ તથા વહીવટની સનંદને | સુકારોનો સાય મુસલમાની સહ
નાદારીના કાયદા કેટરીનો એસ્ટ
મુસલમાનને વણ કરવાને કાયદે કાગળના ચલણી નષ્ણુને એકટ સ્ટામ્પ ડયુટીનો કાયદે
હીન્દુની મિલક્તની અવરથાને હા, અધીકારીઓને નાણું ધીરવાને કા. કરારને કાયદો
દસ્તાવેજોના નમૂના | સરકારી નોકરાની વરતણુકત મા, ૨જીવન એકટ
જદારીકટમાં કરવાની અરજી. |
તનાવીને કાયદો ટ્રાન્સફર ઓફ પ્રોપર્ટી એકટ એના ને દીવાની કોર્ટમાં કરવાના બાકી ના કાયદા ટેકે શાસ્ત્ર
દાવા. રેવન્યુ કોર્ટમાં કરવાની એમ- ! ઇ-કમટેક્સ એકટ ઇઝમેન્ટ એકટ, ટ્રસ્ટ એકટ ૨જીએના નમુના અને તેના મતાદારોને એકટ મઈયતનું લેણું વસુલ કરવાને કા. વા અપીલાના નમુના બંદરે બાતને એક સગીરના વાલી નીમવાને એક રિવન્યુ અને મુલકી કાયદા | વહાણેને એકટ રીલીફ એગ્રીકલચર એક્ટ
લેન્ડ રેવન્યૂડ.
જમીન લેવાને એક્ટ સ્માલકે ક કાર્યોને એકટ
(પુરેપુરો અગત્યની નોટ સાથે) સુતરાઉ માલઉંમર જકાતને કરુ, વારસાનું સટીફીકેટ લેવાનો એકટ હેરેવન્યુ કોડની રૂ
જળમાર્ગમાં કસ્ટની યુટી એકટ. હિંદુ વિધવાના પુનર્લગ્નને કે. માપણીના લ
જંગલને કાયદે પારસીઓના જગ્નને કાયદે
સરવર્ઝની રે
ઇરીગેશન એકટ . કેટમાં સમ ખાવાને કાયદો મામલતદારની કેરટન એકટ શીતળા કાઢવાનો એકટ
વડોદરા રાજ્યના વરીષ્ટ કટના-હાઈકોર્ટ જજ સાહેબ, મે. રા. બા. વીંદભાઇ હાથીભાઈ દેસાઈ બી. એ. એલ. એલ. બી. લખે છે કે
રા. ૨. જેઠા દાલ દેવશંકર દવે કાન “ કાયદાને શિક્ષક ” બે નામના પુસ્તકની પતી આવૃત્તિ મારા જેવા માં આવી હતી. તેમ હાલમાં નવી આવૃત્તિ પ્રાપ્ત થઈ છે. તે ૫ મારા માં આવી
છે. આ પુસ્તક દરેક માણસને કાયદાની સાધાર રીતે વ્યવહારોપયે મે માહીતી મેળવવાનું એક સાધન કે પુરા પાડે એવું છે અને તેથી તે દરેક જણે પિતાના ઘરમાં રાખવા જેવું છે. એ જ પુરક દવાની ફોજદારી તથા મુસકી સંબંધી તમામ માહીતી મળે એવું ગુજરાતી ભાષામાં આ એક જ પુસ્તક છે, અને સાધારા બાબતમાં વકીલને ઘેર જવાની તસ્દી ન લેતા દરેક ખાસ જરૂરી કાયદા સંબધી માહિતી મેળવી શકે એવું ઉપયોગી છે.
1 સુરતના મ. ડીસ્ટ્રીકટ અને સેસન્સ જજ એ ચિમનલાવ એ. મતા, એ. એ. એ. * એલ. બી. લખે છે કે નમારું પુસ્તક કાયદાને શિક્ષક મળ્યું. તેમાં તમામ ઉપયોગી કાયદાઓનો સમાવેશ્વ
રેલો છે. તેમાં હીંદ અને અસમાન મેં પણ છે, જેથી ગુજરાતી જાસુનાર વર્ગ માટે તમે એક વાંકા વખતની બેટ પુરી પાડી અને મહત્વનું કાર્ય કર્યું છે. તે પુસ્તક ગુજરાતી સુના કોલે, ભાજી,
રેવન્યુ ઓફીસરો અને જડને અને કાયદાના અભ્યાસી મને ઘણજ ઉપયોગી થઈ પડશે. એટલું જ નહીં છે પણ તે પુસ્તક એટલું બધું ઉપયોગી છે કે તેને રેફરન્સ માટે દરેક કામદા નસના માધ્યમે પોતાના ટેબલ ઉપર દરરોજ રાખવુંજ નિષએ, હું તમારા માં કાર્યો માં તમને ફતેહ મળે તેવું એવું છે, પુસ્તક ખપી જવા આવ્યું છે માટે તાકીદે મંગાવી લેવું. કો. ૨. ૧૫-૦
જાગોદય ઓફીસ–મદાવાદ,
૨૬ ઠકુરાણી ' છે અને સુભાની કુલ
કડછલકા- આ મરતક માં ૨ પ્રકરણોમાં પુરુષને પાગી અનેક ફિયર
સ, વન્દ્રનાથ બાળકતો થોગી અયુ. નાગી વીજાને સમાનેલ છે. ગૃહસ્થાશ્રમમાંના કષ્ટને રામ માધક “મુન રસીક નકલી પંયો એનાં કામ સહન કરી શી રીતે સુખી સ્થિતી પ્રાપ્ત કરવી તેનું
રજીન, વુિં થાનો પવનો, પતિને મદદ કરનાર ફિત્તમ દત રૂપ છે. એ શી રીતે સુધરે, પતિ
કોનાં કામ. પ્રેમ અને મા દુઘી વિજય જ રીતે સેવા, આનંદ મેળવવાનો ઉપાય, સુધારાનો સડે. |
મેળવો, આધ્યાત્મિક જીવન હેમ ગાળવું વીગેરે રસીક બો ત્યાગ અને સુખી અવસ્તા વીર વિષય રસીક વાત છે પાક ૫ ક. ૨. ૧-૮-૧, વાર્તા રૂપે છે. કી. ૧–૦-૦
વ્યવસ્થાપક-ભાગ્યોદય-અમદાવાદ
સુખી ગૃહસંસાર
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હાલ તમતમાં મગાવી લેનાર પાસે રૂ. ૩) એછા લેવાશે. અંગ્રેજી, હિંદી, મરાઠી, ખગાળી, સ ંસ્કૃત, ઉર્દુ, અને ગુજરાતી, જાણવા માટે
પ્રાસ્તરઑફનૉલેજ
મગાવે, આ પુસ્તક ઉપરથી દરેક માસ માત્ર છે માસમાં જ ઘેાડી મહેનતે પૂજી, હિંદ, ભરાડી, ખાળી, ઉર્દુ અને સંસ્કૃત શીખી શકે છે, દરેક માસે ઉપ રની ભાષામા શીખવી જોઇએ, વેપારમાં તેમ મુસાફરીમાં ઉપરની ભાષા એનું જ્ઞાન હાય તા જ્યાં ત્યાં ફ્ાયદે થાય છૅ, આટલી બધી ભાષામા શીખતાં વર્ષોંન વર્ષા થાય છે, તે દ્ધારે રૂપિયા ખર્ચવા છતાં પણુ આ ભાષાઓ પુરી શાંખી શકાતી નથી. તમે માત્ર આ પુસ્તકને અભ્યાસ કરવાથી માત્ર છ મદિનામાં જ. ઉપરની તમામ એક ખત, ખેલતા અને વાંચતા શીખી શકશે, બાળકાવે તેમ મેટી મરના મહુસેને ઘણું ઉગી છે. વા મા ભાષાને ક્રમ એવા રાખેલા છે કે દરેક ભાષા અટ યાદ રહી જાકે, બે પાને ભ્યાસ કરતાં ત્રણ ચાર ભાષા સામટી ખાવડી શકે. આ પુસ્તક છપાવતાં લહું ખ અને મહેનત પડી છે. તેના ભ્યાસ કરવાથી જ ખાત્રી થશે. કીંમત માત્ર ૐ,૧૦૦ હાલ તરતમાં મંગાવી લેનાર પાસે માત્ર રૂ.૭૦૦ લેવાશે. આ પુસ્તક વાદરા રાજ્યની લાયબ્રેરીએ માટે મંજુર થવું છે. આ પુસ્તકને લાભ મેળવનારા શું કહે છે તે વાંચા,
સુરતથી ચનલાલ હીરાલાલ લખે છે કેઃ માતર આફ નાલેજ મળ્યું. ઘણા લાંબા સમયથી તે પુસ્તક મેળવવા મારી તીત્ર ઇચ્છા હતી એટલે તે પ્રાપ્ત થતાં અથથી પ્રતિ મવલાન કરી ગયેા અને તેથી મને માનદ થયા. પુરતાની શૈલી, ભાષા શીખવાના ઉમેદવારને ઘણો સુગમ પડે તેવી છે. તેમજ જુદાં જુદાં પુસ્તકા વસાવી જુદી જુદી ભાષા શીખવાને! મિા પરિશ્રમ કરવા કરતાં જે આ પુસ્તકથી જ શીખવામાં આવે તે ઘણા ટૂંકા સમયમાં તેમજ ઘેાડી મહેનતે તે ભાષાઓનું જ્ઞાન થાય એ નિ:સન છે. વળી એ પણ નિર્વિવાદ છે કે આપે જે જે ભાષાઓની પસંદગી કરી છે તે હાલના સમયાનુસાર ઉપયામાં જ , તળી આપે અંગ્રેજી, મરાઠી, ગુજરાતી અને હિંદીની રચના ભેથી ાપી છે તેથી દરેક ભાષ જુદીજુદી શાખાની મહેનત પણ આપે ટાળી છે ટુંકમાં તે પુસ્તક પહું ઉપયાગો ડાઇ સાહ્નિત્ય પ્રેમી એને બીજી ભાષાઓમાં રલા સાહિત્ય ગીતનું પાન કરવામાં એક અ સમાન થઇ પડશે એવી આશા સાથે વિરમું છું.
મુંબઇથી સુંદરદાસ લખે છે કેઃ આપનું આસ્તર આફનાલેજ રી સારા જ્ઞાનન આખડો ને મથ સારે તેમ છે. વળી વગર માસ્તરે ગ્રીષ્ણુ દરેક ભાષાનું પ્ર દવા ૧ર સુ છે તે દરેક ક્ષેત્રમાં સંગ્રહેવાને ભલામરૢ કરીએ છીએ.
પુસ્તકની કીંમત માત્ર રૂ. ૧૦-છે છતાં હાલ મંગાવી લેનારને માત્ર રૂ. ૭)માંમળશે. બાંટવાથી અદરેહેમાનખાન ઢાબા થાપલા એસ્ટેટવાળાં લખે છે કે-આપનું આસ્ટર ઓફ તાવેજ નામનું પુસ્તક મે વાગ્યું છે, જુદી જુદી ભાષાઓનું જ્ઞાન મેળવવા એ પુસ્તક !દદરૂપ થાય તેમ છે, તેની રચના શુ નવા શીખા તે સહેન્રી પડે તેવી છે, વળી આ પુસ્તકદ્વારા જે લાભ લઈ શકાય તેના મુકાલામાં તેની કીંમત માત્ર નામની જ કહેવાય.
ભચથી સાકરલાલ માધવલાલ તેરાવાયા લખે છેઃ માસ્તર એક્ નોલેજ એ પુસ્તક ખરેખર ભાષાનકડા ધરાવનાર મનુષ્યને આટે માદર્શક ભાનીયા તરીકે અતિ ઉપયાગી છે. આ અથાગ શ્રમ વેઠી આવા અમુલ્ય પુસ્તકની બક્ષીસ ગુજરાતને સમર્પણ કરી તે બદલ ખરેખર તમને ધન્યવાદ આપ્યા સિવાય શું કરીએ ? વમાં આપના પુસ્તકના ઉઠાવ સારી રીતે થાય અને તેથી આપતો અમુલ્ય મહેનત સફળ થાય એવું ઇચ્છું છું.
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। १४-खुले हुये-नहीं दके हुये वर्तनमें अन्न समा प्रवेश मत करो। भलीभांति नहीं पकता है।
___२८-संध्याओंमें, दिनमै, जलमें, देवायतनों में १५-धर्म, अर्थ और कामकी शुद्धि और मैथुन करना वर्जित है। दुनोंका स्पर्श ही स्नानका कारण है। २९-पर्वके दिनों में उपद्रव आनेपर भी
१९-निरंतर सेवने योग्य सुस्वके लिये कुलीन स्त्री के साथ सहवास मत करो। उत्तम वचनोंका प्रिय मधुर सरस रूप प्रयोग ३. - स्वतंत्र रहना 'नुष्योंको सुखके लिये और ताम्बूलका भक्षण ये दो ही पदार्थ हैं। उत्तम रसायन है।
१७-निरंतर बैठनेवाले का उदर बढ़ जाता ३१-स्त्रियोंका स्वतंत्र रहना चारित्रका है, मन वचन और शरीरमें शिथिलता बढ़ नाशक है। जाती है।
३२-लोभ, प्रमाद और अचानक विश्वाससे १८-अत्यंत खेद मनुष्यको असमयमें बृद्ध जब स्वयं बृहस्पति तक भी ठगे जाते हैं तब बना देता है।
दुसरे पुरुषोंकी तो बात क्या है ? १९-देव गुरू और धर्म नहीं माननेवाले ३३-कुलके कनुकूल ही पुरुषका स्वभाव पुरुषका विश्वास उठ जाता है।
होता है। १०-मात्मसुखके अनुरोधसे कार्य करनेके ३४-सरोग दशामें ही धर्ममें बुद्धि मनुष्योंकी लिये रात्रि और दिनका विभाग बनालेना पायः होती है। भावश्यक है।
१५-निरोग वही है जो विना किसीकी २१-कालके मनियमसे काम करना मरनेके प्रेरणासे वा उपदेशसे धर्मको चाहता है वा बराबर है।
करता है। २२-अत्यन्त आवश्यक कार्यमें कालको ३१-व्याधिसे दुःखित पुरुषके लिये धैर्यको व्यर्थ व्यतीत मत करो।
छोड़कर दूसरी औषधि नहीं है। २३-आत्म रक्षामें कभी भी प्रमाद करना ७-संपारमें भाग्यशाली मनुष्य वही है उचित नहीं है।
जिसका जन्म किसी प्रकारके कुत्सित दोषोंसे २४-पूजनीय और सेवनीयको उठ कर _सहित नहीं हुआ है । नमस्कार करो। .
_ ३८-भयके स्थानोंमें धैर्यका धारण ही भयके २५-देव गुरु और धर्मके कार्योको अपने दूर करनेका उपाय है, विषाद करना उपायआप देखो।
नहीं है। २६-पर स्त्रीके साथ और माता बहिनके ३९ धूपसे संतप्त मनुष्यके मलमें प्रवेश करसाथ एकांतमें मत रहो। ..
नेसे आंखों में कमनोरी और मस्तक पीड़ा हो २७-विना अधिकारके और संमति राज. नाती है।
(मरर्ण)
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________________ "Digamber Jain" Rend. NO. B.744. SEEEEEEEEEEEEEEEEझडझडक एतिहसिक व तुलनात्मक दृष्टि से आ रचित शैलीपर रचा हुआ बिलकुल नवीन 13 भगवान् महावार अथवा संक्षिप्त जैन इतिहास लेखक-बाबू कामताप्रसाद जैन, स० संपादक "वीर" संशोधक-ब्र० शीतलप्रस दजी व बरिस्टर चंपतरायजी। तुर्त ही मगाईये। उत्तम छपाई सफाई, पुष्ट कागज, मनोहर जिल्द पृ० 300 व मूल्य ) पौने दो रुपये मात्र / मैनेजर, दिगम्बर जैन पुस्तकालय-सूरत / ESSASSSSSSSESER aao पूज्य ब्र सीतलप्रसादजी कृत बिलकुल नये ग्रन्थ / तत्त्वमाला अथवा चौवीस जिन पंचकल्याणक पाठ-पाषा पूना-२४ तीर्थकरों के समी कल्याणकों की जिनेंद्रमतदर्पण दूसरा भाग ल।२ 121 पूनाओं का संग्रह // 1 तीसरीवार छपकर अभी ही तैयार होगया। तत्या थे मुत्रजी टीकाजैनधर्मका मुलभतासे सामान्य ज्ञान होने के लिये मृद व सदासुख नीकृत मषा / ) यह ग्रन्थ अवश्य 2 मगाइये व विशेष मंगाकर अग्रवाल इतिहासबांटिये। ट 100 व मूल्य छह आने वा० बिहार लाल बुलंदशहर का ) 21) सैंकड़ा। * महात्मा गांधी और आर्यसमाज // मैंने नर दि० जैन पुस्तकालय-सूरत। हरिबंशपुराण चिकने कागन खुले पृ.८०.८) उदयपुर में-ब्र पं० कन्हैयालाल नीने चातु- पद्मपुराण (जैन रामायण) नाटक 2) मांस किया है इससे अच्छी धर्मप्रभावना हो पंचमरु व नंदीश्वर पूजन विधान(बड़ा रही है व अनेक प्रकार के व्रत विधान हो रहे शील महिमा नाटक हैं व इन्द्रध्वज मंडल विधान भी हो रहा है। पना:-दिगम्बर जैन पुस्तकालय-सुरत। नविजय प्रिन्टिग प्रेस खपाटिया चकला-सुरतमें मूलचंद किरानदास कापड़ियाने मुद्रित किया और "दिगम्बर जैन आफिस, चंदावाड़ी-सुरतसे उन्होंने ही प्रकट किया।।