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दिगम्बर जैन ।
अंक ११ ]
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जो मनुष्य उसका ध्यान करता है, वही सब जीवका सच्चा बंधु है और उसका घर्मसे पक्का रिस्ता है । जिस किसीने अहिंसा देवीका शरण लिन उसीने क्रोध, मान, माया, मत्सर, मादि शत्रुओं को जीत लिया और उसीने अपने आत्माको संसारके बंधन से मुक्त करनेका यथार्थ प्रयत्न किया, क्योंकि नीतिमें कहा हैधर्म यस्य तस्य लिङ्गानि दमः शांति अहिंसतः तपो दानं च शीलं च, योगो वैराग्यमेव च भावार्थ-महिंसा धर्मका एक मख्य चिह्न है, तथा उसके तप, दान, शील, योग, वैराग्य और और दमः (इन्द्रियोंको वश करना) आदि गुण हैं। ऐसा जान अहिंसादेवीका भक्त क्षमा, संतोष और शांतिताका उपासक होता है । उसे कोई कितना ही सतावे कितना ही दबावे परन्तु वह किसीको भी सताने दबानेका इरादा नहीं करता और न किसीका बुरा बिचारता | वह सदैव ही दूसरोंके दुःख दूर करनेका प्रयत्न करता रहता है, क्योंकि पक्का अहिंसावृत्ति | क्योंकि
जो नरोत्तम वृत अहिंसा धारता । वह सदा परकी भलाई चाहता || कोई कितना ही उसे दुतकारता | किन्तु सबपर वह क्षमा ही चाहता || वर्तमान समय में गांधीजी संसारमें सबसे बड़े महात्मा समझे जाते हैं, जिनको सभी धर्माव लम्बी भली भांति चाहते हैं, और उनके सिद्धान्तों का पालन करते हुये देशको धार्मिक तथा स्वतंत्र बनाने के लिए हजारों लोग राज्यनतिक क्षेत्र में उतर, शांतिताकी लड़ाई लड़ रहे
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हैं। क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या जैन, क्या आर्य, क्या ईसाई, और क्या पारसी, सभी महात्मा गांधीके व अहिंसा के अनुयायी दिखाई देते हैं । महात्माजीका उपदेश है सताता है सताने दो, किन्तु नेका बदला " सहनशीलता" दो। तुम्हारा सहनशील गुण उसको यथार्थ रास्तेपर लावेगा, तब यही तुम्हारे द्वारा उसका उपकार होगा । हमारे न्यामत कवि भी बताते हैं किअपनीसी जान जानिये औरोंकी जानको । न्यामत किसी के दिलको दुखाना नहीं अच्छा ॥ अतः जिसे तुम सतावोगे वह तुमको सतावेंगा | जिसे तुम हंसावोगे वह तुमको हंसावेगा । इससे तुम अपने प्राणों की तरह सबके प्राण समझो । किसी भी जीवको दुखानेका इरादा मत रक्खो । सुनोसताता है जो गैरोको
वो खुद आपद बुलाता है । हंसाता है जो गैरोको
वो खुद खुशियां मनाता है । जो अहिंसावती दे, वह हिंसोत्पादक कारणोंसे सदैव बचता रहता है । वह जो कार्य करता है हिंसा रहित करता है-उसके परिणाम कभी हिंसामय नहीं होते। लाख, जहर, आदिके व्यापारका उपदेश नहीं देता और न करता | व्रती मिथ्या मुकदमा नहीं करता ।
कि :- जो तुमको तुम उसके सता
अहिंसा व्रती अशुद्ध चर्बी मिश्रित मिर्लोके वस्त्रोंको उपयोगमें नहीं लाता । वह तो अपनी देशी शुद्ध खादीको स्वीकार करता है जो कि सब प्रकार से शुद्ध है ।