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8 j इस तरह बिताना चाहिये कि सब आम वर्गको मालूम होजावे कि आज जैनों का कोई बड़ा भारी दिन है ।
१४ - चतुर्दशीकी सार्वजनिक छुट्टी हो इसके किये सभाकर ऐसा प्रस्ताव करके अपने ग्राम व शहरके अधिकारियों को उसकी नकल भेजनी चाहिये |
११ - चतुर्विष दानका एक चंदा सब भाई ओंमें घूमकर करना चाहिये और जितने रुपये इकट्ठे हो बे हिस्सा करके हमारी संस्थाओं जैसी कि काशी स्या० विद्यालय, जयपूर ऋषभ ब्र आश्रम, ब्यावर महाविद्यालय, बड़नगर औष - घालय-अनाथालय, देहली अनाथालय व महिलाश्रम, बम्बई श्राविकाश्रम, सागर विद्यालय, मोरेना सिद्धांत विद्यालय, उदयपूर पार्श्वनाथ वि०, कारंजा ब्र० आश्रम आदिमें तुर्त ही मनिओर्डर करके भिजवा देने चाहिये । यह चंद्रा चतुर्दशी के दिन बहुत सुगमता से हो सकेगा ।
इस प्रकार इस अनंत चतुर्दशीको जितना भी बन सके तन मन धनसे अतीव धर्मध्यान पूर्वक निर्गमन करना चाहिये तथा यथाशक्ति व्रत नियम भी लेने चाहिये जिसमें हर एक को नित्य स्वाध्याय व दर्शनकी प्रतिज्ञा तो अवश्य ले लेनी चाहिये ।
दिगम्बर जैन |
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हमारे अनेक स्थानोंपर हमारी वस्ती न होनेसे या कम होजानेसे
[ वर्ष १७
अनेक स्थानपर प्रमाद तो क्या द्रव्याभावसे ही यह कार्य नहीं होता है इसके लिये क्या२ उपाय करने चाहिये ऐसा एक लेख तीर्थभक्त शिरोमणि का ० देवीसहायजी फिरोजपुरने प्रकट किया था उसका एक उत्तम उपाय हमारे दक्षिणके घर्मप्रेमी विद्वान वकील श्रीयुत जयकुमार देवीदास चवरेने प्रकट किया है जिसको हमारी तीर्थक्षेत्र कमेटीने भी पसंद किया है वह यह है कि
मंदिर व प्रतिमा अनेक मंदिर जीर्णावस्था में रक्षाका उपाय | पड़े हैं तथा प्रतिमाओंकी अविनय हो रही है जिसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है परंतु
भारतवर्ष में हमारे जितने मंदिर हैं जिनकी वार्षिक आमदनी दो हजार या इससे ज्यादा हो उन मंदिरोंसे सौर दौ२सौ रुपय वार्षिक सहायता समाजके जीर्ण मंदिरो द्वार और प्रतिमाओंकी अविनयको दूर कराने के लिये लिया जाय ।
यह उपाय बहुत ही योग्य है । इसमें खुद तो द्रव्य देनेका है ही नहीं परन्तु अपना जीव उदार करके यदि अपने मंदिर में २०००) वार्षिकसे ज्यादह आमदनी हो तो उसमें से १००), या २००) वार्षिक जीर्ण मंदिरोद्वार व प्रतिमाकी अविनयको बचानेको देनेके लिये अलग २ निकाल रखने चाहिये व जहां २ आवश्यक्ता हो भेजने चाहिये। ऐसा ही उपाय हमारे बंब श्वेतांबर भाइयोंने कार्यमें परिणित कर दिया है अर्थात् बम्बईके ७ मंदिर व पेढेयोंसे ४५०० • ००) वार्षिक ५ वर्ष तक अपने मालवा व मेवाड प्रांतके जीर्ण मंदिरोंके उद्धारार्थ देना निश्चय किया है व उसका कार्य भी प्रारम्भ होगया है | क्या दिगंबरी माई इस उत्तम