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________________ अंक ११] दिगम्बर जैन । उपायका अनुकरण इस दशलक्षणी पर्वमें पंचा- भगवान महावीर पर सम्मति । यती करके करेंगे ? भगवान महावीर । लेखक - बाबू कामताप्रसाद जैन, सम्पादक आगामी १८ वें वर्षके प्रारम्भमें भी 'दिगं. - 'वीर' अलीगंज एटा, प्रकाशक-मूलचंद किप्त- बर जैन' का सचित्र नदासनी कापड़िया मालिक, दिगम्बर जैन पुस्त "दिगंबर जैन" का विशेषांक हम प्रकट लय सुरत | पृष्ठ संख्या ३०० प्रकाश कसे प्राप्य! विशेषांक व करना चाहते हैं इसलिये - मूल्य सादी जिल्द !॥ पक्की निल्द २) मूल्य । इस अंकमें प्रकट होनेके ___ आजकलका शिक्षित संसार जितना भगवान् लेख व चित्र जिनरको गौतमबुद्ध के नामसे परिचित है उतना भगवान् भेजने हों उनको तथा हमारे विद्वान लेखकोंको महावीरके नामसे नहीं है। आजकलके ऐतिहा. एक मासके भीतर भेननेके लिये हम सादर आमं सिकोंमें अहिंसाके सिद्धांत तथा रक्तमय यज्ञोंके त्रण करते हैं। हिंदी, गुजराती, मराठी, संस्कृत बन्द कराने का श्रेय गौतमबद्धको ही प्राप्त है, तथा अंगरेजी भाषाके लेख व कविताएं प्रकट किन्त उन लोगोंकी दृष्टि भगवान महावीरकी होंगी जिसमें अंगरेजी, संस्कृत, मराठी बहुत ओर नहीं गई है । गौतमबुद्धने मृतकका मांस कम व हिंदी, गुजराती भाषाके लेख विशेष साने खाने का विधान किया है किन्तु भगवान् महारहेंगे। नवीन वर्ष वीर सं० २४५१का हमारा वीरने मांस तो मां मुहूर्तके रखे हुए मक्खनको भी सचित्र जैनतिथिदर्पण ग्राहकों को समयपर मिल खाने का निषेध किया है। भाजकलके शिक्षितोंमें सके इसलिये आगामी आश्विनके अंकके साथ ही भगवान् महावीरका नाम प्रगट. न होने का सब ग्राहकोंको तैयार करके भेन दिया जायगा। कारण उनके अनुयायी जैनियोंकी संकुचितहृद. समी ग्राहकोंसे वीर सं० २४४९-५० यता है अन्यथा भगवान् महावीर ऐसे समाज विक्रम सं० १९७९-८० वर्ष १६-१७ सुधारक, तथा देश सुधारकके नामका महत्व अर्थात् दो वर्षका मूल्य वसुल करनेका है और मानकल किसीसे छिपा न होता। दो वर्षके दो उपहार ग्रंथ भी देनेके हैं वे तैयार हममे अभीतक कई 'महावीरचरित्र' देखे हैं, हो रहे हैं और एक माहके भीतर उनकी ३॥-) किंतु यह सबमें अच्छा ही नहीं प्रत्युत अपने की वी० पी० सब ग्राहकों को भेजी जायगी। ढंगका निराला है। यह पुस्तक ऐतिहासिक जो १९८० में ग्राहक हुए हैं उनको १९८० दृष्टिसे इस प्रकार लिखी गई है कि जैनधर्म का ही उपहार भेजा जायगा। तथा जिसका सम्बन्धी अनेक बातोंका साधारण ज्ञान हो जाता मुल्य आया होगा उनको बुकपेकेटसे ग्रंथ भेजे है। पुस्तकमें जैन दर्शनका संक्षेप भी दिया जायंगे। दो अलग ग्रंथ भेटमें अवश्य दिये हुआ है । ग्रन्थ के देखने से विदित होता है कि जायंगे यह नि:संशय है । ग्राहकगण धैर्य रक्खें। लेखक माधुनिक- ऐतिहासिक आविष्कारों तथा
SR No.543201
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size8 MB
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