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________________ monomw दिगम्बर जैन । [ वर्ष १० जैनधर्मके अच्छे पण्डित हैं। ग्रन्थकी भादिमें भगवान महावीर-रचयिता बाबू काम२३ ऐतिहासिक ग्रंथों की सूची दी गई है तापप्ताद जैन, उपसंपादक "वीर" अलीगंज जिनकी सहायता लेखकने इस ग्रंथमें ली है। (एटा), प्रकाशक-मूलचंद किसनदास कापड़िया. लेखकने जैनियोंके 'कालचक्र' के सिद्धान्तको सूरत मूल्य १) पृष्ठ संख्या ३०० है। समझाते हुए यह बतलाया है कि तीर्थकर उक्त पुस्तकको लिखकर बाबू कामताप्रसाद कौन हैं ?' जैनधर्मका यह एक ऐसा सिद्धांत है जीने सच्चे प्रभावना अङ्गका पालन किया है । जो प्रायः सबको विदित होना चाहिये । इसके वास्तवमें जैनेतर लोगोंके मिथ्याभ्रमको हटानेके पश्चात् इस कल्पमें जैनधर्मके आदि प्रवर्तक श्री लिये ऐसे २ ग्रन्थोंकी बड़ी भारी आवश्यकता ऋषभदेवका चरित्र देकर श्री नेमिनाथनी, श्री है। इस ग्रन्थमें ३९ लेखों द्वारा परम पूज्य पार्श्वनाथजी तथा अवशेष तीर्थकरोंका चरित्र श्रीवीर प्रमुके चरित्रपर ऐतिहासिक खोनके ऐतिहासिक प्रकाश डालते हुए लिखा गया है। साथ अच्छा प्रकाश डाला गया है। भगवान् महावीरके चरित्रचित्रणसे पूर्व भारत श्रीवीर भगवान्के विषयमें अन्य ऐतिहासिक वर्षकी 'तत्कालीन ऐतिहासिक परिस्थिति' का पुरुषों का क्या मत है इस विषयका सपमाण नकशा खींचा गया है, जिससे ग्रंथकी उपयो- वर्णन इस पुस्तकमें अच्छी तरह किया गया है। गिता बढ़ गयी है । भगवान् महावीरके चरित्र समस्त पुस्तक महात्माओंके वाक्योंसे ही पूरी को विस्तारपूर्वक ऐतिहासिक प्रमाणों द्वारा की गई है। प्रत्येक परिच्छेदके प्रारम्भमें अच्छे २ लिखने के पश्चात् इन्द्रभूति गौतम, सुधर्माचार्य श्लोक ब कविताएं हैं। म० बुद्धने भी प्रथम एवं अन्य शिष्य, महिलारत्न चन्दना, वारिषेण जैनधर्म धारण किया था और कठिन तपस्यासे मुनि, क्षत्रचूडामणि जीवंधर, जैनसम्राट् श्रेणिक घवड़ाकर भात्मज्ञानके अभावसे उन्होंने इसको [बिम्बसार| और चेटक, बुद्ध और मक्खाली छोड़कर एक मध्यम मार्ग चला लिया था इसका गोशालके चरित्रोंका वर्णन किया गया है। ग्रंथकी बर्णन "भगवान् महावीर और म० बुद्ध नामक समाप्तिमें दिगम्बर तथा श्वेताम्बर आश्रमोंकी लेखमें भलीभांति किया है । १७२ पृष्ठपर उत्पत्तिके समयपर विचार करके कुछ जैन लिखा है कि बौद्ध ग्रंथों में लिखा है कि जब राजाओंका वृत्तान्त दिया हुआ है। बुद्ध शाक्यभूमिको जारहे थे, तब उन्होंने देखा इस प्रकार इस पुस्तकको इस समयका जैन कि पावामें नातपुत्त महावीरका निर्वाण होगया धर्मका इतिहाप्त कहना भी अयोग्य न होगा। है। इसके पश्चात् बुद्धने पुनः अपने धर्मका पुस्तककी छपाई तथा बाइंडिंग सभी अच्छी प्रचार किया था। महारानी चेलनाका भी संक्षिप्त है । हमारी सम्मतिमें प्रत्येक इतिहासप्रेमीको जीवन लिखा है। मंगानी चाहिये। "आज' काशी इस पुस्तकमें भगवान महावीर स्वामीके साथर ता. २८-८-१४ चन्द्रशेखर शास्त्री। कितने ही ऐतिहासिक व्यक्तियों का दिग्दर्शन
SR No.543201
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size8 MB
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