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________________ nnnnwww अंक ११] दिगम्बर जैन । ®®®®®®®®®®®®®®®® (३) जर्मनीमें रोडियोकी करतूतें। . विज्ञान सरिता सरोज। रेडियोंने सम्य संसारमें एक नया युग लाकर ® खड़ा कर दिया है। इसके द्वारा नए २ आवि कार किए जारहे हैं । जर्मनीमें इसके द्वारा (१) तारसे फोटू । समुचे राष्ट्रभरकी घडियोंका समय ठीक किया जीती जागती दुनियां में नित नए 'करश्मे । ए करम' जता है। और यह प्रत्येक पुलि मैनके गले में होते रहते हैं। अभीतक तो तारसे खबरें ही हारकी भांति पहिना दीगई है, जिससे उसके जाती थी, किन्तु अब फोटू हस्ताक्षर और सिरपर एक सीधा छातासा लग जाता है और अंगूठेकी निशानी भी दूरस्थ स्थानको भेजे जा कानों में डबियां ( सुनने के लिए ) कर्ण फूलसी सक्ते हैं । इसके भेजने की मशीन दो होती हैं। , लटक जाती हैं। इससे पुलिसमैन जहां कहीं एक भेननेको और दूसरी लेनेको, दोनों रेडियो या हो फौरन खबर पा लेता है और रक्षा करनेको सेटकी सदृश होती हैं । जिन्क मथवा तांबेकी मा उपस्थित होता है । भारतमें अभी उनके प्रतिलिपि बना लीजाती है। इसमें सुक्ष्म लकीरे दर्शन होना कठिन है। होती हैं। मशीनमें की सुई इन लकीरों में घूमती (४) अमेरिकामें बर्फकी खेती। हैं । दूसरी मशीनमें भी उसी प्रकार एक अन्य भाजकलकी सम्यताने बरफकी मांग भी बहुत सुई सादा प्लेटपर घूमती हुई लकीरें कर देती बढ़ा दी है। अमेरिकामें तो एक तरहसे इसकी हैं और फोटू उतर भाता है। कहिए क्या खेती ही होने कगी है। वहां प्राकृतिक रूपमें यह ‘करश्मे से कुछ कम है ! नदी नाली जो जम जाते हैं उनके बरफको मशी. (२) आंसुओंके दाम। नोंसे काटकर शहरों में ले पाया जाता है। अभीतक तो प्रेमी और प्रेमिकाओंकी किन्तु इसे लोग कम पसन्द करते हैं:सं०प्रान्त भाख्यायिकाओं में ही बांसुओं का मूल्य पढ़ा अमेरिकामें कहते हैं प्रतिवर्ष २४,०००,००० जाता था। वे ' अनमोल ' समझे जाते थे। टन ऐसा बरफ गोदामोंमें लाया जाता है । परन्तु अब इस 'कलयुग' में उनका भी यथार्थ वहीं गत वर्ष कृत्रिम बरफ २९,०००,००० मूल्य लग गया। सर अल्मरोथ राइटने वैज्ञाः टन खर्च हुआ था । सभ्यताका यह ढंग निक खोन द्वारा ढूंढ़ निकाला है कि मांओं में आश्चयेमें डालने वाला है। भी क्रमि विनाशक शक्ति विद्यमान है । अब हरिबंशपुराण चिकन कागन खुले पृ.८.० ८) तो पाठकोंको चाहिए कि मांसुओंको बोत में पद्मपुराण (जैन रामायण) नाटक २) भरके रखते जांय और अंग्रेजी दवा विक्रेता- पंचमेरु व नंदीश्वर पूजन विधान(बड़ा)।ओंसे दाम वसूल करते जाय । बास्तवमें बांसु शील महिमा नाटक-सुखानंद मनारमा ।।। 'अनमोल' ही निकले ! पता:-दिगम्बर जैन पुस्तकालय-सूरत ।
SR No.543201
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size8 MB
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