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________________ अंक ११] दिगम्बर जैन । इसलिए ही झूठको अब त्याग दो। इसलिए परनारि लख द्रग मीचना । सत्य वचनोंमें जिह्वाको पाग दो। - पापकी क्यारी नहीं अब सींचना॥ ५ उत्तम शौच । ___ अंतिम उपदेश । शुद्धि गंगाके नहानेमें नहीं। ये धर्म उत्तम दशतरहके धार लो। प्राप्त होती मल छटाने में नहीं॥ सम्यक्त्वका सरना सदा स्वीकार लो॥ शुद्धता यदि प्राप्त जो करना चहो। प्रार्थना इक और मेरी मान लो। संतोष जलसे लोभ अन्तरका हरो॥ . शुद्ध खादीको पहिनना ठान लो॥ ६ उत्तम संयम। खादी पहिनकर ही जिनालय आइये। इन्द्रियां पांचों करो वशमें सदा। मिलोंके वस्त्रोंसे नेह हठाइये ॥ रोककर मनको धरो संयम सदा॥ यह निवेदन “प्रेम” का सुन लीजिये। प्राणियोंकी कीजिये रक्षा सदा। खादी पहिननेको प्रतिज्ञा कीजिये ॥ शुद्ध संयम पालिये प्यारे सदा ॥ नये २ ग्रन्थ मगाइय। ७ उत्तम तप। अहिंसा धर्म प्रकाश अनशनादिक तप जिन्होंने धर लिए । जैनधर्मशिक्षक तीरा भाग उन्होंने ही कर्म आठों हर लिए ॥ अष्टपाहुड-कुंकुंदस्वामी का मू व पं० तप बिना नहि मुक्ति होती है कहीं। इसलिए तप धारलो मानो कहीं। य बन्द नीकी टीश रहित अनंतीनि ग्रंथमालाका मुरम ग्रन्थ । पृष्ठ ४५० मूल्य १) पात्र । ८उत्तम त्याग । सामायिक पाठ-संस्का प्राकृ। व पं. अशन औषधि-आदि चार प्रकारका । अपचन्दनी की वचनिका । लागत मूल्य पांव आने । दान दीजे संघको हितकारका ॥ दानसे है स्वर्ग सम्पति पावना। विमलपुराणजी-दो पकारके ६) तथा १) है धर्म उत्तम त्याग इसको ध्यावना ॥ षोडश संस्कार- १) ९ उत्तम आकिंचन । सरल नित्य पाठ संग्रह मु०) व ॥1) बाह्याभ्यन्तरका परिग्रह छोड़ दो। शांतितोपान ॥) भावना भवन :) आत्मसे सम्बन्ध अपना जोड़ दो॥ राजवार्तिकजी-प्रथम ख१) दुसरा खंड ३) मोहकी मजबूत फांसी तोड दो। सुलोचनाचरित्र-ब• शतप्रसाद नीकृत ___ आत्मबलसे कर्मगढ़को फाड़ दो॥ रल ऐतिहासिक ग्रन्थ । मूल्य ।।2) यह आकिश्चन धर्म मुनि धारन करें। श्री पद्मावती पूजन कर्म रिपुको जीत शिवरमणी वरें ॥ जागती ज्योति १० उत्तम ब्रह्मचार्य । पंचमेरु व नंदीश्वर पूजन विधान ॥3) यती स्त्री मात्रके त्यागी भये। पंचपरमेष्ठी पूजन विधान भाषा ।) ब्रह्म-भज शिवनारि अनुरागी भये॥ पंगाने का पताकाम योधासे विजय जिसने लही।। इस जगतमें वीर सच्चा है वही ॥ मैने नर-दि० जैनपुस्तकालय-हरत ।
SR No.543201
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size8 MB
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