________________
दिगम्बर जैन ।
१० ]
सीतियां आबाद हैं जो कपूर और चायका व्यापार करती है । इस बंदरगाहसे कार अमे रिका, जर्मनी और जापानको जाता है, जहां यह फिर साफ किया जाता है और दुनियाभरके बाजारों में बिकता है ।
कपूर बहुतसे काम में आता है। धार्मिक अनु ष्ठानों में यह बहुत इस्तेमाल होता है । कपूरकी मालायें और जलाने की बत्तियां भी बनती हैं । औषधियों में यह बहुत जगह काम आता है । आजकल बगैर धुयेंकी बारूद कपूर से बनाई जाने लगी है। कपूरकी सुगंधिसे खराब हवा शुद्ध और साफ हो जाती है । बहुत तरहके कीड़ा और बिमारियोंके जर्म इसकी गंधिसे भागते और मर जाते हैं। जिन दिनों छुआछुतकी बीमारियां फैलती हैं, बहुत लोग इसकी | डालियां अपने कपडों और जेबोंमें रखते हैं । " जयाजी प्रताप"
जैन समाज ।
प्यारी समाज तेरा, कैसे सुधार होगा । इस अवन्तीसे तेरा, वैसे उद्धार होगा ||टेक तू फूट कर रही है, आपस में लड़ रही है। नहिं एकता पकड़ती कैसे निस्तार होगा ||
लवन्दी कर रही तू, कषाएं बढ़ा रही तु | शांति भुला रही तू, दुखका न पार होगा || क्या जानती नहीं है, इस फूटका नतीजा । भारत हुआ विगाना, तुझको भी याद होगा | अब मान, फूट तनदे, तू एकताको भज ले । क्या “प्रेम” का निवेदन, तुझको स्वीकार होगा ॥ प्रेमचन्द पंचरत्न - भिंड |
पर्युषण पर्व
।
[ वर्षे १७
JXXXIY
( लेखक - पं० प्रेमचन्द पंचरत्न - भिंड | ) देखो पर्युषण पर्व प्यारा आगया ।
जैनियों के हृदय आनंद छा गया ॥ करो स्वागत हृदयसे हे भ्रातगण ।
सदाके सदृश न भूलो एक क्षण ॥ आचार्योंने भेद इसके दश किये ।
तिन्हें सादर आप अपनाओ हिए ॥ क्षमा पहिला मार्दवे है दूसरा ।
तृतियार्जव. सत्त्य चौथा है खरा ॥ शौच पैञ्चम छठा संयम है अहा ।
सप्तमा तप त्याग अष्टम है महा ॥ धर्म आकिञ्चने नवां उत्तम कहा ।
व्रत दशवां धर्म धारौ महा ॥
१ उत्तम क्षमा । आपको कोई सतावे क्रोधसे ।
सहन कीजे उसे अपने बोधसे ॥ क्रोध करना आपको नहि चाहिये ।
क्षमा धारन कर उसे अपनाइये ॥ २ उत्तम मार्दव ।
देहि धन बलरूप आदिक पायके ।
अभिमानमें आना नहीं हर्षायके ॥ मान दुर्गति खान इसको छोड़ दो। मार्दवसे प्रेम अपना जोड़ दो ॥ ३ उत्तम आर्जव
संकोच लो अब छल कपटके जालको ।
छोड़ दो अपनी दुरङ्गी चालको ॥ जो विचारो बात वह जाहिर करो ।
कर सरल परणाम आर्जव व्रत धरो ॥ ४ सत्य । झूठसे पावो न जगमें कीर्ति है।
सत्यकी होती सदा ही जीत है।
11