Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 11
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 34
________________ दिगम्बर जैन । [वर्ष १० महिंसाव्रती ऐसी झूठ नहीं बोलता जिससे समयोपयोगी शिक्षायें । दूसरोंपर विघ्न मा जावे तथा प्राण दंड मिल (लेखक-पं० जयचन्द्र जैन शानी-कलकत्ता) नेकी शंका हो । १-ब्राह्म मुहूर्तमें उठना समस्त रोगोंका और न वह अपने व्यापारिक कार्यों में झूठकी नाशक हैं। शरण लेता, वह किसीकी वस्तु धोका देकर -२-सुख नींद सोनेसे मन प्रसन्न रहता है, नहीं ठगता, कितीको कमती नहीं देता और बुद्धि निर्मळ रहती है, पदार्थका ज्ञान बड़ी सरन बढ़ती लेता, लेने देनेको तराजू वांट हीनाधिक लताके साथ होता है। नहीं रखता, क्योंकि व्यापारमें झठ बोलनेसे, ३-प्रातःकालमें शय्यासे उठते समय अपना ठगनेसे, हिंसाका पाप लगता है। मुख घी या दर्पणमें देखो। . सारांश यह है कि दूसरों के दिलका दुखना . ४-प्रातःकालमें रजस्वला स्त्रीको अंधे,लंगडे, ही हिंसा है तो क्या अपने स्वार्थके लिए झूठ : ! लूले, कुबड़े भादि विकल अंग वालोंको नहीं ' देखना चाहिये। बोलने और ठगनेसे हिंसा न लगेगी ? अवश्य ५-नित्य दन्तधावन नहीं करनेवालेके लगेगी। इसलिये हमको चाहिये कि हम निम्न कविताके भावको समझ अहिंसाका आदर करें- मुखशुद्धि नही होता है। ६-कार्यकी बाहुल्यतासे शारीरिक कर्मोको यदि हम अहिंसा धर्म से सम्बन्ध करना चाहते। नई तो क्यों नहीं नीचे लिखे दोषोंको शीघ्र निधारते ॥टेक ७-वीर्य, मल, मूथ, वायुका वेग इनका व्यर्थ परको कष्ट देकर चाहना अपना भला । रोकना अश्मरी, भगंदर, गुल्म, बवासीर आदि झठी गवाही पेश करके फांसना परका गला ॥ रोगोंका यदि हम अहिंसा सलिल पीकर शांति रहना चाहते ॥तो. व्यवसाय वह अति निंद्य है जिसमें समाई झुठ है। ९-प्रातःकालमें गौओंके छूटते समय व्यायाम अरु ठगरहे परद्रव्यको एक दिन मचेगी लूट है ॥ रसायन समान फल देती है। यदि हम अहिंसा मार्गपर, परको चलाना चाहते ॥ तो० १०-शस्त्र और वाहनके अभ्याससे व्याया. है मिलोंके वन सारे अशुचि चर्बीसे सने । ममें सफलता करनी चाहिये। उन्हें ला उपयोगमें हम धर्मके धारक बने ॥ ११-जब तक शरीरमें पसीनेका उदय नहीं यदि हम अहिंसा धर्मका झंडा फहराना चाहते ॥ ता० हो तब तक ही व्यायामका समय है। प्राण हरना दिल दुखाना कौनसा यह पाप है। १२-शारीरिक बलसे भी अधिक व्यायाम मैं तो कहूंगा बस वही हिंसा भयानक ताप है ॥ "प्रेम" की अर्जी यही जो दुःख हरना चाहते ॥ तो०॥ करना रोगोंका घर तैयार करना है। १३-व्यायाम नहीं करनेवालोंके अमिका “बोलो अहिंसा धर्मकी जय । उद्दीपन, शरीरमें दृढ़ता, उत्साह और निरा लसता कहांसे हो सकती है ?

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