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दिगम्बर जैन ।
[वर्ष १. भब हम इस विषयमें अधिक न लिखकर तो देखते हैं कि बे जनावर शीघ्र ही उसे खा अंगरेजीके प्रसिद्ध विश्वकोष 'इनसाइक्लोपीडिया जाते हैं और उनके मांससे एक भादमीका सालब्रिटनिका' में मांसाहार परित्यागकें विषयमें जो भर तक भोजन निर्वाह होना मुश्किल है। कुछ लिखा है उसका सारांश लिखे देते हैं। (१) जातीय उन्नति-सभी सभ्य जातिमाशा है उपर्योक्त विचारोंसे हमारे सभी भाई ओंका यह उद्देश्य होना चाहिए कि हमारी हिंसात्मक क्रियाओंसे घृणा करने लगेंगे। जातिमें अधिक परिश्रमी और कार्यक्षम व्यक्ति मांसाहार परित्यागके कुछ लाभ । उत्पन्न हों और उनकी संख्याकी उत्तरोत्तर
(१) स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभ-जो वृद्धि हो, यह तभी संभव है जब कि लोग लोग मांसाहार करते हैं, संभव है कि उन्हें वे अधिक शाकाहार करें । ऐसा करनेसे यह होगा रोग पकडलें जो कि उस पशूके शरीरमें रहे हों कि ज्योंर निरामिष भोजन करनेवालोंकी संजिसका मांस वे खाते हैं। इसके अतिरिक्त जो ख्या बढ़ेगी त्यों२ कृषक लोग अधिक परिश्रम पशु अपने नैसर्गिक भोजन घासके अतिरिक्त करके अन्न उत्पन्न करनेकी चेष्टा करेंगे और
और पदार्थ खाते हैं उनका मांस खानेवाले इस प्रकारसे उस जाति या समाजमें अधिक बहुधा गठिा , वात, पक्षाघात प्रभृति बात परिश्रमी लोग उत्पन्न होंगे। , विकारोंसे उत्पन्न रे गोंसे आक्रान्त होते हैं। (५) चारित्रिक उन्नति-जिस मनुष्य
(२) अर्थशास्त्र सम्बन्धी लाभ- में साहस, वीरता और निर्भयता भादि गुण फलाहारकी अपेक्षा मांसाहार अधिक खर्चीला भारम्भमें माचुके हों उसे उचित है कि ज्यों होता है । जितने में दो चार आदमी खा सकते उसका ज्ञान बढता जाय त्यों ९ मनुष्यता सीखे हैं मांसाहारकी व्यवस्था करनेसे एक भादमीको और पीड़ित जीवोंके साथ सहानुभूति करने का भी पूरा नहीं पडेगा।
___अभ्यास पैदा करे । अतएव चूकि निरामिष (१) सामाजिक लाभ-एक एकड भूमिः माहार करनेसे, मांसाहार पशुओंपर जो अत्यामें धान, गेंहू आदि बोएनाय तो उसमें उत्पन्न चार किया जाता है और उन्हें पीडा. पहुंचाई अन्नसे जितने मनुष्य भोजनकर सकेंगे वही जाती है वह दूर हो जायगी इस लिए मांसाहार पैदावर यदि माहारोपयोगी पशुओंको खिला दी प्रवृत्तिका अवरोध करना ही सर्वथा उचित है। जाय तो उन पशुओंके मांससे उतने मनुष्योंका
(अहिंसा दिग्दर्शनसे) पेट नहीं भरेगा । जैसे, मान लीजिये कि एक अब हम यहां पर संक्षेपमें यह बतलावेंगे कि एकड भूमिमें सौ मन धान पैदा हुआ उसे एक इस समय भारतवर्षको ही नहीं किन्तु समस्त मनुष्य सालभर अपने सारे परिवार वर्गोके संसारको इस पवित्र अहिंसा धर्मके अनुसार साथ खाता है, लेकिन यदि हम दश पशु पालते माचरण करनेकी परम मावश्यकता है। हैं और उनको उतनी भूमि निकाल दी है महात्मा गांधीजीने सरकारसे असह