Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni View full book textPage 8
________________ (८) ढूंढनीजीके-कितनेक, अपूर्ववाक्य. परंतु जिसने, ढूंढनीजीका तदन जूधका पुंज, और केवल कपोल कल्पित, और अति तीक्ष्ण, वचनका लेख, नहीं वांचा होगा, उनको हमारा लेख किंचित् तीक्ष्ण स्वरूपसें मालूम होनेका संभव रहता है, इस वास्ते प्रथम ढूंढनीजीने-सत्यार्थ चंद्रोदयमें, जे जूठ, और निंद्य, और कटुक, शब्दो लिखे है, उसमेंसें किंचित् नमुना दाखल लिख दिखाता हूं, जिससे पाठक गणका ध्यान रहै ॥ और विचार करणेमें मसगुल बने रहें । ॥ देखो ढूंढनी पार्वतीजीकी चतुराइपणेका लेख ।। (१) प्रस्तावनाका दृष्ट. १ लेमें-ढंढक सिवाय, सर्व पूर्वाचार्योको, सावधाचार्य ठहरायके, हिंसा धर्मके ही कथन करनेवाले ठरहाये है।।१॥ विचार करोकि, जैन मार्गमें जो पूर्वधर आचार्यों हो गये है, सो क्या हिंसामें धर्म कह गये है ? अहो क्या ढूंढनीके लेखमें सत्यता है ? ॥ और मंदिर, मूर्तिका, लेख है सो तो, गणधर गूंथित सूत्रोंमें ही है ? । तो क्या यह ढूंढनी गणधर महाराजाओंकों, हिंसा धर्मी ठहराती है ? ॥ (२) आगे एट. २१ में-चार निक्षेपका स्वरूपको समजे विना, ढूंढनीजी तो बन बैठी पंडितानी, और सर्व पूर्वाचायोंको कहती है कि हठवादीयोंकी मंडलीमें, तत्वका विचार कहां । इत्यादि ॥२॥ . पूर्वाचार्योंकी महा गंभीर बुद्धिको पुहचना तुमहम सर्वको महा कठीन है, परंतु हमारा किंचित् मात्रका लेखसे ही, विचार करना कि ढूंढनीजीको, निक्षेरके विषयका, कितना ज्ञान है, सो पाठक गणको मालूम हो जायगा ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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