Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 1
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ जैसे डा० बुलर, राव साहब वी० एन० मण्डलीक, प्रोफेसर हापकिन्स्, श्री एम० एम० चक्रवर्ती तथा श्री के० पी० जायसवाल। मैं 'बाय' के परमहंस केवलानन्द स्वामी के सतत साहाय्य और निर्देश (विशेषतः श्रौत माग ) के लिए, पूना के चिन्तामणि दातार द्वारा दर्श- पौर्णमास के परामर्श और श्रौत के अन्य अध्यायों के प्रति सतर्क करने के लिए, श्री केशब लक्ष्मण बोगेल द्वारा अनुक्रमणिका भाग पर कार्य करने के लिए और तर्कतीर्थं रघुनाथ शास्त्री कोकजे द्वारा सम्पूर्ण पुस्तक को पढ़कर सुझाव और संशोधन देने के लिए असाधारण आभार मानता हूँ। मैं इंडिया आफिस पुस्तकालय (लंदन) के अधिकारियों का और डा० एस० के० वेल्वल्कर, महामहोपाध्याय प्रोफेसर कुप्पुस्वामी शास्त्री, प्रोफेसर रंगस्वामी आयंगर, प्रोफेसर पी० पी० एस० शास्त्री, डा० भवतोष भट्टाचार्य, डा० आल्सडोर्फ, प्रोफेसर एच० डी० वेलणकर (विल्सन कॉलेज बंबई) का बहुत ही कृतश हूँ, जिन्होंने मुझे अपने अधिकार में सुरक्षित संस्कृत की पाचुलिपियों के बहुमूल्य संकलनों के अबलोकन की हर संभव सुविधाएं प्रदान कीं। विभिन्न प्रकार के निदेशन में सहायता के लिए मैं अपने मित्रसमुदाय तथा डा० बी० जी० पराञ्जपे, डा० एस० के० दे, श्री पी० के० गोडे और श्री जी० एम० मैच का आभार मानता हूँ। इस प्रकार की सहायता के बावजूद इस पुस्तक में होनेवाली न्यूनताओं, च्युतियों नीर उपेक्षामों से मैं पूर्ण परिचित हूँ । अतः इन सब कमियों के प्रति कृपालु होने के लिए मैं विद्वानों से प्रार्थना करता हूँ।* पाण्डुरंग वामन काणे *मूल के प्रथम तथा द्वितीय के प्रा Jain Education International संकलित । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 614