________________ 66 धार्मिक-वहीवट विचार चुरा जाते हैं / बादमें आगमें गला दिये जाय, यह कैसी दुःखद आशातना है ! प्रतिदिन चोरी, छिनाझपटी बढ़ती रहेगी / पुलीसकी सुरक्षा प्राप्त न होगी / ऐसी स्थितिमें देरासर मध्यरात्रिमें भी खुला हो तो, चोर उसमें से कुछ भी प्राप्त न कर सके , ऐसी स्थितिमें देरासर रखा जाय / काश, इन सारी बातोंको बार बार, जगह-जगह पर समझाने पर भी, श्री संघोंका आभूषणमोह कम नहीं हो पाता / परंपरागत प्रणालीमेंसे. संचालक अलग नहीं हो पाते / आभूषणोंकी चोरी न होगी तो भी भारत सरकार अन्तमें एक ही कलम-कानूनके बलबूते पर अपने कब्जेमें कर लेगी तब ? यह भी बडी मुसीबत खड़ी ही है न ? प्रश्न : (17) क्या गरीब लोंगोके कल्याण निमित्त देवद्रव्यका उपयोग किया न जाय ? उत्तर : वर्तमान गरीबी, बेकारी, बीमारी, और महेंगाई कृत्रिम है / मानवसर्जित है / सारा आसमान फट पड़ा है, अरबों रूपयोंसे भी उसका हल नहीं हो पायेगा / दूसरी बात यह है कि धर्मक्षेत्रमें जिस हेतुकी पूर्तिके लिए जो रकम जमा हो, उसका उपयोग अन्य क्षेत्रोंमें किया नहीं जा सकता / कस्तूरबा फंडकी रकमका बंगालके दुष्कालमें राहतके लिए उपयोग करनेकी बात गांधीजीने काटकर, उसके लिए अलग बड़ा फंड एकत्र कराया था / अन्य उद्देशमें रकमका उपयोग करनेसे दाताके साथ विश्वासघात होता है / देवद्रव्यके खातेके पास केवल 20-25 करोड या 50 करोडकी रकम है / जैन श्रीमंतोंके पास अरबों रूपयोंकी संपत्ति है / बम्बईमें ही 100100 करोड रूपयोंके मालिक जैन श्रीमंत १००से अधिक हैं / मानवताकेकार्योमें, ये श्रीमंत लोग ही क्यों उदार नहि रहते है / उनकी भी नजर देवद्रवय पर क्यों पडती है ? उपरान्त, भारतमें ऐसे हजारों देरासर हैं, जिनके जिर्णोद्धारके लिए वर्तमान देवद्रव्यकी 50 करोडकी पूंजी, तिनकेके समान है / देवद्रव्यके खातेकी. रकम तो सर्वप्रथम जीर्णोद्धारमें ही उपयोगमें लायी जाय / / __ कई ट्रस्टीलोंग अपने ट्रस्टकी देवद्रव्य खातेकी लाखोकी रकम पर मोहान्ध बने हुए हैं / आवश्यकता पड़ने पर भी भिन्न भिन्न जिनालयोके