Book Title: Dharmik Vahivat Vichar
Author(s): Chandrashekharvijay
Publisher: Kamal Prakashan

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Page 276
________________ परिशिष्ट-३ 255 पू. पाद प्रेमसूरिजी म. सा. पर लिखा गया पू. कनकविजयजी म. सा. का पत्रक्रमांक - 2 भावनगर, सौराष्ट्र, कार्तिक शुक्ल-३ (2008) पूज्यपाद परमोपास्य प्रशमरसनिधि परमकारुणिक परमाराध्यपाद परम गुरुदेव आचार्य महाराज श्रीकी पुनीतसेवामें, ले. पादेरणु,सेवासमुत्सुक, कृपाकांक्षी सेवक, कनक, सुबुद्धि, महिमा आदिकी कोटिशः वंदनावलि स्वीकार करें / कृपानाथ ! आपश्रीमद्के पुण्य देहमें निराबाधा होगी / आपश्रीका कृपापत्र कल शाम प्राप्त हुआ / पढ़कर समाचार विदित हुए / इसके साथ पत्र भेजा है / आपश्रीकी सूचना ध्यानमें है / उपरान्त, आपको यदि निश्चितरूपसे यह महसूस होता हो तो यथासमय निर्भीकतासे प्रतिपादन करने में संकोच रखनेका कोई कारण मुझे दिखाई नहीं देता / मध्यस्थ संघविषयक प्रस्तावके बारेमें पूछनारके कह सकते हैं कि 'इसमें असंमत होनेमें शास्त्रीय दृष्टि से हमें कोई कारण दृष्टिगोचर नहीं होता / ' इसमें सारी बातें आ जाती है अन्यथारूपमें तो खास प्रकारका मनोभेद ही इसमें विरोध करा रहा है / __ योग्यसेवा फरमायें / कृपादृष्टिमें वृद्धि करें / पत्रका प्रत्युत्तर दें / चातुर्मासके बाद घोघा, तलाजा आदिकी ओर यात्रार्थ जानेकी भावना है / / ले. पादरेणु कृपाकांक्षीसेवक कनककी कोटिशः वंदन श्रेणीका स्वीकार करें / ___ मुनिराज श्री पद्मविजयजीको अनुवंदना-सुखशाता / उनकी ग्रीवाकी तकलीफमें राहत होगी / मुनिश्री मित्रानंद विजयजीको अनुवंदना, सुखशांता / ..

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