Book Title: Dharmik Vahivat Vichar
Author(s): Chandrashekharvijay
Publisher: Kamal Prakashan

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Page 278
________________ परिशिष्ट-३ 257 पू. प्रेमसूरिजी म. पर पू. कनक वि. म. सा. का पत्रक्रमांक - 3 भावनगर, आश्विन शुक्ला - 2 पूज्यपाद परमोपास्य प्रशमरसपाथोधि परमकारुणिक परमगुरुदेव आचार्यदेव श्रीमद विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजश्रीकी पुनीतसेवामें...... ले. पादरेणु कृपाकांक्षी सेवासमुत्सुक सेवक कनक, सुबद्धि, महिमा आदिकी कोटिशः वंदनावलि यथासमय स्वीकार करनेकी कृपा करें / कृपानाथ ! आपश्रीके पुण्य प्रभावसे हमें पूरी सुख-शात्म है / आपश्रीका कृपापत्र प्राप्त हुआ / आपश्रीके पुण्यदेहमें सुखशाता होगी / देवद्रव्यके तीन प्रकारके जो भेद हैं, उस परसे तो प्रभुजीकी पूजाके लिए उपयोगी वस्तुके लिए उसका उपयोग हो, वह स्वाभाविक है / कृपादृष्टिमें वृद्धि करें / योग्यसेवा फरमायें / ले. सेवक कनककी कोटिशः वंदनश्रेणीका स्वीकार करें /

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