Book Title: Dharmik Vahivat Vichar
Author(s): Chandrashekharvijay
Publisher: Kamal Prakashan

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Page 280
________________ 259 परिशिष्ट-३ पूज्यपाद प्रेमसूरिजी म. साहबने "मध्यस्थ बोर्ड' को पेश किया हुआ खरडा परमाराध्यपाद, प्रातः स्मरणीय, सिद्धान्तमहोदधि आचार्यदेव श्रीमद्विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजाकी आज्ञासे, श्री श्वे. मूर्तिपूजक मध्यस्थ संघ सभाके सदस्योंके लिए धर्मलाभके साथ विदित हो कि आपका पत्र प्राप्त हुआ था / हालमें कई स्थलों पर देवद्रव्यमेंसे उधार कर साधारणके खर्चमें ली गयी रकमें, ट्रस्ट एक्ट आदिकी विरुद्धमें आपके द्वारा व्यक्त की गयी तीव्र आलोचना उल्लेखनीय है / प्रभुशासनमें महा पवित्र माने गये देवद्रव्यकी रक्षा और शास्त्रानुसारी उपयोगके लिए उत्पन्न सावधानी, यह सचमुच जैनशासनके प्रति सुंदर प्रेम और वफादारीका प्रतीक है / आपमेंसे प्राय सभी कहीं न कहीं देरासर, उपाश्रय आदिके पुण्य संचालनका उत्तरदायित्व निभाते हैं कि जिस उत्तरदायित्वका ऊँचा पालन शासनकी सुरक्षा, प्रभावना तथा भव्यजीवोंको धर्म-सुविधा आदिमें अच्छा योगदान देनेके उपरान्त ठेठ तीर्थंकर नामकर्मके विशिष्ट लाभ प्राप्त कराने तक ले जाता है / आप महासौभाग्यसे प्राप्त हुए इस उत्तरदायित्वको, अनेक जीवोंको धर्ममें उन्नत करनेके साथ स्व-आत्माको उन्नत करनेमें सफल करें ऐसी संघ अपेक्षा रखे, यह स्वाभाविक है / - प्रस्तुतमें तुमारे द्वारा किये गये प्रस्तावके विषयमें तुमारी देवद्रव्यकी रक्षा करनेकी तत्परताके अनुसार पहले तो निम्न प्रदर्शित मुद्दे विशेष उल्लेखनीय हैं - (1) शास्त्राधार पर, प्रभुभक्ति निमित्तसे उद्घोषित द्रव्य, देवद्रव्यमें ही समाविष्ट हो सकता है, उसके बजाय अपनी अपनी बुद्धि अनुसार पूराका पूरा या आठआनी-दस आनी आदिके प्रमाणमें, सीधा साधारण विभागमें जमा किया जाता है, वह बिल्कुल अशास्त्रीय है, पापवाही है और संघका अपकर्ष करनेवाला है / (2) उपरान्त, ऐसे देवद्रव्यमेंसे जो उपाश्रय आदिके कार्यों में हजारोंकी तादादमें खर्च किया जाय वह, तथा (3) पर्युषणादिमें प्रभावनामें खर्च किये जाय वह, तथा (4) भाताखातेमें खर्च किया जाय वह, तथा (5) आयंबिल विभागमें रकम दी गयी है, ऐसा विदित हुआ है / वह यदि सही हो तो अति अनिच्छनीय और ट्रस्टीशीपके उत्तरदायित्वका विघातक है /

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