Book Title: Dharmik Vahivat Vichar
Author(s): Chandrashekharvijay
Publisher: Kamal Prakashan

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Page 297
________________ परिशिष्ट क्रमांक-५ देवद्रव्य-गुरुद्रव्य-विवाद (यह विवाद मुख्य तीन प्रश्नों पर आधारित है / यहां क्रमशः उन तीन प्रश्रोंके शास्त्राधारित समाधान दिये गये हैं / ) - पं. चन्द्रशेखर विजयजी प्रश्न : (1) क्या स्वद्रव्यसे ही जिनपूजा करनी चाहिए ? (2) क्या परद्रव्य या देवद्रव्यसे खरीदे केसरादिसे जिनपूजा की जाय तो पाप (देवद्रव्यभक्षणका दोष) लगेगा ? उत्तर : 'स्वद्रव्यसे ही जिनपूजा करनी चाहिएं' ऐसा पाठ 'द्रव्यसप्ततिका और 'श्राद्धविधि में अवश्य आता है, परन्तु यह पाठ, गृहदेरासरमें रखे मौसंबी आदि द्रव्योंसे संघके बडे देरासरमें जिनपूजा करें तो लोग कहे कि भाई, कैसे बडे धर्मात्मा हैं कि अपने घरदेरासरमें तो स्वद्रव्यका उपयोग करते हैं, लेकिन बडे देरासरमें भी स्वद्रव्यका उपयोग करते हैं, ऐसी जो मुधा प्रशंसा हो, यह न हो उसके लिए घरदेरासरवाले जैनलोगोंको बड़े देरासरमें भी स्वद्रव्यसे ही जिनपूजा करनी चाहिए, जिससे उसकी झूठी प्रशंसा होनेका दोष न लगे / अब इस घरदेरासरका पुराना संदर्भ छोडकर केवल इस वाक्यको उठा लेना-'स्वद्रव्यसे ही जिनपूजा करनी चाहिए'-और उसे सभी जैनोंके लिए लागू कर देना, उसे उचित कैसे समझें ? यदि सभी जैनोंको झूठी प्रशंसा प्राप्त करनेका दोष लगता होता तो उनके लिए भी स्वद्रव्यसे ही जिनपूजा करनेका विधान हो सकता था, लेकिन ऐसा तो हुआ नहीं / ___मुझे लगता है कि, 'सभी जैनोंको स्वद्रव्योंसे ही जिनपूजा करनी चाहिए' ऐसा आग्रह रखनेमें घरदेरासरविषयक संदर्भ भुला दिया गया है और इसी लिए यह आग्रह सभी जैनोंके लिये कराया जा रहा है / ___ अब रही दोष लगनेकी बात कि जो कोई जैन परद्रव्यसे या देवद्रव्यसे पूजा करे तो उसको दोष लगेगा ? इसका उत्तर नकारमें है कि दोष नहीं लगता / हाँ, इतना सही है

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