Book Title: Dharmik Vahivat Vichar
Author(s): Chandrashekharvijay
Publisher: Kamal Prakashan

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Page 304
________________ परिशिष्ट-५ 283 प्रबंधकथाओंमें गरीबोंकी ऋणमुक्ति करना आदि बातोंका उल्लेख हुआ है / ऐसे विविध उल्लेखोंकी विविध परंपरामें जीर्णोद्धारका ही निर्णय कैसे किया जाय ? उपरान्त, यहाँ 'जीर्णोद्धार' शब्दके साथ 'आदि' पद जुडा हुआ है / तो आदिसे गुरुवैयावच्च क्यों गृहीत न किया जाय ? 'द्रव्यसप्ततिका' 'श्राद्धजिनकल्प' ग्रन्थके पाठ गुरुपूजनके गुरुद्रव्यको गुरुवैयावच्च विभागमें लिया जा सकता है एसा प्रायश्चित्तदान द्वारा बताते है। 'द्रव्य सप्ततिका में प्रश्न किया गया है कि गुरुद्रव्य किस विभागमें लिया जाय ? उसका उत्तर दिया गया है कि जीर्णोद्धार, नव्य चैत्यकरण आदि गौरवार्ह स्थानोंमें किया जाय / यहाँ 'आदि' शब्दसे गौरवार्हस्थान ग्रहण करना पडे / ('आदि' शब्दसे जिनकी अंगपूजामें ले जानेका वहीं प्रतिषेध फरमाया है / अतः वह गौरवार्ह स्थान होने पर भी अब 'आदि' शब्दसे उसका ग्रहण नहीं हो सकेगा) यह सवाल श्रावकोंका ही हो कि गुरुद्रव्यका उपयोग कहाँ हो ? उसके प्रत्युत्तरमें बताया है कि गौरवार्हस्थानमें / अब श्रावकोंके लिए गौरवके योग्य स्थान कौनसे है ? स्पष्ट मालूम होता है कि अपनेसे (श्रावकसे) उपरके विभाग-स्तर उनके लिए गौरव-भूत कहे जाय / श्रावक विभागसे उपरके स्थानोंमें साधु-साध्वी वैयावच्च और ज्ञानविभाग आदि ही स्वीकार्य हैं / ___इस पाठ परसे गुरुद्रव्यको गुरु-वैयावच्चमें ले जानेकी बातको स्वीकृति मिलती है / . 'श्राद्धजिनकल्प में गुरुद्रव्यकी चोरी करनेवालेके लिए प्रायश्चितोंका विधान है / वहाँ चार प्रकारके गुरुद्रव्योंका उल्लेख है : (1) मुहपत्ति-आसनादि (2) अन्न-जलादि (3) वस्त्रादि (4) धनादि / इस चोरीका क्रमशः गुरुमास, चतुर्लघु, चतुर्गुरु और षड्गुरु स्वरूप तप-प्रायश्चित्तरूपमें फरमाया है / उसके साथ उस चोरी हुई चीजोंका प्रत्यर्पण (वस्तु वापस लौटाना) करनेका कहा है / जिस साधुकी जिस वस्तु-मुहपत्ति आदि चोरे गये हो, उस प्रमाणका साधु वैयावच्च करनेवाले वैद्यादिको वस्त्रादि करनेके लिए कहा गया है / ___ यहां गुरुचरणमें रखे मुहपति आदि चारकी (सुवर्ण आदि) चोरी करनेवालको तप-प्रायश्चितके साथ साथ साधुकी वैयावच्च करनेवाले वैद्यको . उस रकमका वस्त्रदान आदि करनेका कहा है /

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