________________ परिशिष्ट-४ 273 द्रव्य) संघमंदिरमें अर्पित करें / अन्यथा गृहचैत्यके द्रव्यसे ही गृहचैत्यकी पूजा हो लेकिन स्वद्रव्यसे न हो, अतः अवज्ञा-अनादरादि दोष लगे, यह उचित नहीं, क्योंकि स्वदेह, घर, परिवार आदिके लिए गृहस्थ बहुत-सा धन-व्यय करता ही है / यहाँ गृहचैत्यके द्रव्यसे गृहचैत्यकी पूजा करनेका निषेध किया / स्वद्रव्यसे ही गृहमंदिरकी पूजा करनेकी बात बतायी, लेकिन कुटुम्बादिके लिए भारी खर्च करनेवाले गृहस्थके लिए स्वद्रव्यसे पूजा न करने पर अवज्ञा-अनादरादिका दोष निर्दिष्ट किया गया है / देवद्रव्यके भक्षणका नहीं / इस बातको भी ध्यानमें लें / देवगृहे देवपूजापि स्वद्रव्येणैव यथाशक्ति कार्या नतु स्वगृहढौ कितनै वेद्यादि विक्रयोत्थ द्रव्येण, देवसत्क पुष्पादिना वा प्रागुक्तदोषात् / अर्थ : संघमंदिरमें देवपूजा स्वद्रव्यसे ही यथाशक्ति करें, लेकिन निजी गृहमंदिरमें अर्पित नैवेद्यादिके विक्रयसे प्राप्त-उपार्जित द्रव्यसे या देवमंदिरके पुष्पादिसे न करें, क्योंकि पूर्वोक्त (मुधा प्रशंसादि अथवा अवज्ञादि) दोष लगे / यहाँ भी देवद्रव्यके उपभोगका दोष बताया नहीं है / यहाँ भी घरमंदिरके मालिकको ही संघ मदिरमें अपने गृहमंदिरके देवद्रव्यसे अथवा घरदेरासरके पुष्पादिसे पूजा करनेका निषेध किया है उससे देरासरमें देवद्रव्यके पुष्पोंसे पूजा भी होती हो, एसी संभावना है / देवद्रव्यके बाग-बगीचोंमें उत्पन्न पुष्पादि भगवानको समर्पित होते हो, तभी इस प्रकार 'देवसत्कपुष्पादि' कहा जाय, उसके सिवा किस प्रकार कहा जाय ? ... . इन सभी पाठोंका निष्कर्ष : - (1) माली आदिको मुख्यतया अलग वेतन दें / फिर भी नैवेद्य देकर (पुष्प आदिके लिए) मासिक रकम निश्चित की गयी हो तो वह दोषरूप नहीं / नैवेद्य तो देवद्रव्य स्वरूप ही है, अत्ः देवद्रव्यके कारण गृहमंदिरमें भी पुष्प समर्पित करनेका कार्य संपन्न हुआ / . (2) गृहचैत्यके नैवद्यादिसे उत्पन्न रकममेंसे खरीदे पुष्पादि, बड़े देरासरमें अन्य पूजा करनेवालेके द्वारा समर्पित करवायें / (3) दूसरे पूजकका योग न हो तो 'ये गृहमंदिरके देवद्रव्यसे