________________ परिशिष्ट-१ 181 ___ पालिताणामें पर्वत पर यदि चातुर्मास दरम्यान यात्रा होनेवाली नहीं हैं तो वहाँ प्रतिष्ठित जिनबिंबोकी पूजाके लिए रखे गये सत्तर पूजारियोंको आणंदजी कल्याणजीकी कार्यवाहक समिति द्वारा पूजाविधि और आशातना निवारणके लिए समझाना ही होगा / यदि वे ऐसा नहीं करें तो अवश्य दोषभागी बनेंगे / जानबूझकर, हमेशाके लिए घोर आशातना, अविधिको जारी रखनेसे उन कार्यकरोंका संसार दीर्घ हो जायेगा / ___ यह बात अन्य मंदिरों और तीथोंके लिए भी समझ लेनी होगी / जहाँ भी ऐसे विचित्र पूजारियोंको दूर किये जायँ, ऐसी हालत न हो, वहाँ उन्हें जिन भक्ति समझानी चाहिए / उनके वेतनमें बढावा किया जाय, जिससे वे आशातना न करे / जहाँसे ऐसे लोगोंको दूर किये जा सके ऐसी हालत हो, वहाँ जिनप्रतिमापूजन अपने हाथों ले लेना चाहिए / . तब क्या इनमेंसे कुछ भी किया न जाय और पूजारी द्वारा होनेवाली घोर आशातनाएँ दशाब्दियोंसे चली आ रही हैं, उन्हे चलने देनी चाहिए ? संमेलनके श्रमण, इस प्रस्तावके द्वारा, पूजारी द्वारा (और कुछ 'श्रावक द्वारा) होनेवाली घोर आशातनाओंके निवारणार्थ सख्त आग्रह व्यक्त करते हैं / यही प्रस्तावका तात्पर्य है / यदि किसी भी उपायसे आशातना निवारण संभव हो तो पूजारी द्वारा भी अंगपूजादि कराते हों तो संमेलनको बाधा नहीं / . उपरान्त, जिन गाँवोमें अकेले पूजारीके हाथों भगवानको सौंप दिये गये हो, अगर अष्टप्रकारी पूजा करने में वह पूजारी बालाकुंजी आदिसे घोर आशाप्तनाएँ ही करता हो, विधिपूर्वक पूजा करनेके लिए समझाने पर भी यदि वह माननेके लिए तत्पर होता न हो, तो श्रीसंघको कहना होगा कि'हमारे भगवानकी तू अब केवल वासक्षेपपूजा या पुष्पपूजा जैसी शास्त्रमान्य एक ही प्रकारकी पूजा कर / हमें उससे संतोष है / इससे वालाकुंजी आदिसे घोर आशातनाएँ तो कमसे कम टल सकेंगी / ' ऐसी स्थितिमें मात्र वासक्षेप पूजा करनेका विधान हुआ है, उसके आधार पर उन्होंने 'पूजा'का ही छेद कर देनेका आक्षेप संमेलन पर किया है / वे ऐसा समझते होंगे कि पूजा यानी प्रक्षालादि स्वरूप अष्टप्रकारी पूजा, लेकिन यह बात उचित नहीं / शास्त्रकारोंने एकप्रकारी (पुष्पादि स्वरूप) अष्टपुष्पी आदि पूजाको