________________ 226 धार्मिक-वहीवट विचार है / वह गाथाओमें देवद्रव्यकी व्यवस्था की है / दूसरी भी अनेक स्थानों पर देवद्रव्य हो तो पूजा-महापूजा सत्कार-समारचन आदि अनेक शासनप्रभावनाके कार्य होनेसे ज्ञानादि गुण विकसित होते हैं, ऐसे पाठ मिलते हैं / तब देवद्रव्यमेंसे महापूजा, सत्कार समारचन आदि हो और संघकी व्यवस्थाके आधार पर प्रभुपूजा भी क्यों न हो ? जैसे महापूजा आदि कार्य देवद्रव्यमेंसे हो सकते हैं तो प्रभुकी केसर-चंदनकी पूजा भी उसमेंसे हो, ऐसी मेरी मान्यता है / खंभातमें पू. हमारे गुरुजी, प.पू. कमल सूरिजी म. मणिविजयजी, सागरजी म. आदि अनेक आचार्य एकत्र होकर, उन्होंने निर्णय किया था और उसमें लगभग सौ-डेढसो मुनियोंके हस्ताक्षर लिये थे / इस बातका आपको पूरा खयाल होगा ही / संबोध प्रकरणकी गाथाओंसे खंभातके निर्णयकी और देवद्रव्य द्वारा पूजा-महापूजा आदि शास्त्रोंके पाठ प्राप्त होनेसे मुझे लगता है कि श्री संघ व्यवस्था करे तो प्रभुपूजा देवद्रव्यमेंसे की जाय तो शास्त्रविरुद्ध नहीं है / अब मुझे यह विदित करना है कि छद्मस्थभावको लेकर मैं शायद अपनी मान्यतामें गलत राह पर भी होऊँ और यदि भूलता होऊँ तो दुर्गतिका हिस्सेदार बन पाऊँ, उस दशाको प्राप्त न करूँ उसके लिए मैं आपसे पूछ रहा हूँ। मुझे आपसे कोई चर्चा-विवाद नहीं करना है या बाहर प्रचार नहीं करना है / आपके लिखनेके अनुसार, सेवकका अल्पज्ञान होनेसे कहीं भी व्यर्थमें फँस जानेकी उपाधि उठाना ठीक न लगनेसे और आप पूज्य श्री को लिखनेमें कुछ न्यूनाधिक भी न हो जाय इत्यादि उसके बारेमें विदित हो कि प्रस्तुत बात पूछनेमें मुझे आपको बांध देना नहीं है / केवल उपरोक्त प्रयोजनके लिए मैं आपसे पूछवा रहा हूँ / तमो तमारी बुद्धि अनुसार, मेरे पूछे गये प्रश्नोंका प्रत्युत्तर देंगे तो उपकारका प्रत्युपकार करनेका सुअवसर साध सकेंगे / मैं और मेरे शिष्य, परंपरा-शास्त्र विरुद्ध मार्गका निरूपणकर दुर्गतिके भाजन न बने, इसीलिए पूछवानेकी आवश्यकता होती है। ___ पुछायी गयी हकीकतकी स्पष्टता तमने उचित लगे तो करें / उसके बारेमें मेरा आपके पर किसी भी प्रकारका बलात्कार या आग्रह नहीं / सेवक पद्मकी कोटिशः वंदना स्वीकृत करें / .