Book Title: Dharmik Vahivat Vichar
Author(s): Chandrashekharvijay
Publisher: Kamal Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 263
________________ 242 धार्मिक-वहीवट विचार - योगशास्त्र प्र. 3, श्लोक १२०में लिखा है कि, 'यः सद् बाह्यमनित्यं च क्षेत्रेषु न धनं वपेत् / कथं वराकश्चारित्रं दुश्वरं स समाचरेत् // ' जो मनुष्य अनित्य एसे द्रव्य भी क्षेत्रके विषयमें उपयोगमें न ला सके, वह कृपण दुश्वर चारित्रका आचरण कैसे कर पाये ? ऐसा कहकर स्वद्रव्य द्वारा क्षेत्रभक्ति करने पर जोर दिया है, क्योंकि वह. चारित्र, मोहनीय क्षीण करने में परम निमित्त बनता है / श्राद्धविधि पृ. 49-1 ‘स्वपुष्पचन्दनादिभिः' / पृ. 53-2 'थूआकया सुविवहेण' / पृ. 58-1 पूअं पि पुष्फामिरू जहासत्तीए कुज्जा / " इत्यादि पाठ, स्वद्रव्य द्वारा पूजाका समर्थन करतें हैं / . इससे यह मालूम होता है कि, जिनपूजारूपी द्रव्यस्तवके दो प्रयोजन हैं / एक तो परिग्रहारंभरूपी रोगका औषध और दूसरा सम्यग्दर्शनकी निर्मलता। उन प्रयोजनोंको लक्ष्यमें रखकर जिनपूजाका उपदेश दिया गया है / 'सति देवद्रव्ये' उन पाठों द्वारा, पूजाके लिए होनेवाला जिनद्रव्यका व्यय, यह समक्तिशुद्धिका अंग है ही / उसमें भी स्वद्रव्य द्वारा होनेवाली जिनपूजा यह समकित और चारित्र उभयशुद्धिका अंग है / दोनों प्रकारसे होनेवाली जिनपूजा एकांत लाभदायक हैं / उसमें देवगव्य भक्षणका कोई दोष दृष्टिगोचर नहीं होता / वर्तमानमें स्व अथवा साधारणद्रव्य द्वारा अष्टप्रकारी आदि पूजा करनेका प्रचार है, वह भी शास्त्रोक्त ही है और वह चालू रहना चाहिए और उसके सभी लाभ बता देने चाहिए / महापूजादि भी श्रावक स्वद्रव्य द्वारा करे, तो विशेष लाभ होता है, लेकिन करनेवाला न मिले तो पर्वके दिनों आदिमें देवद्रव्य द्वारा पूजा हो तो शास्त्रविहित है और उससे भी अनेक जीवोंको बोधिलाभ का संभव है / जहाँ पूजाके साधारणमें घाटा है आर नया उत्पन्न हो ऐसा संभव नहीं, वहाँ देवद्रव्य द्वारा उस घाटेकी पूर्ति हो तो उसमें भी कोई बाधा नहीं और वैसा करना यह वर्तमान राजनैतिक परिस्थिति आदिको ध्यानमें रखते हुए समयोचित मालूम होता है / अब केवल प्रश्न यह है कि संबोध प्रकरणमें पूजा, निर्माल्य और कल्पित इस प्रकार तीन भेद किये हैं / उसमें कल्पित अथवा आचरित द्रव्यमें किस द्रव्यकी गणना करे, उसका उल्लेख नहीं / बोली या उछामनीका द्रव्य कल्पित या आचरित माना जाय, ऐसा पाठ दूसरे किसी ग्रन्थमें आया

Loading...

Page Navigation
1 ... 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314