________________ 140 धार्मिक-वहीवट विचार . साधु भिक्षा पाते समय, तद्विषयक 42 दोषोंका सेवन करें तो, उसे अनीति समझी जाय / उसे गृहस्थकी अनीतिके साथ कोई सरोकार नहीं / प्रश्न : (139) साधारण विभाग और शुभ ( सर्वसाधारण) विभागमें क्या फर्क है ? उत्तर : पहले विज्ञापित किया है कि जिन-प्रतिमादि सात क्षेत्रोंका साधारण विभाग कहा जाता है जबकि उन सातों सहित पौषधशाला. आदि दूसरे सात मिलकर कुल चौदह (और वैसे दूसरे भी धार्मिक) क्षेत्रोंका शुभ (सर्व साधारण) विभाग कहा जाता है / संभव हो तो किसी भी रकमको मुख्यतया शुभ (सर्वसाधारण) विभागमें जमा किया जाय / कई लोगोंके मनमें यही बात होने पर भी वे 'साधारण विभाग' ऐसा नाम सूचित करते हैं / अब वे शुभ (सर्वसाधारण) विभाग नामका विशेष ध्यान रखें / इन दोनों विभागोंका दूसरा संयुक्त नाम 'धार्मिक द्रव्य' भी कहा जा सकता है / इस विभागकी रकमका उपयोग लग्नादिके सामाजिक कार्य, स्कूलकालिज आदिके शैक्षणिक कार्य या आरोग्यविषयक अस्पताल आदि शारीरिक क्षेत्रोंके कार्य आदिमें किया नहीं जा सकता / मेढ़कोंकी कत्ल द्वारा आजके स्कूल आदि, गर्भपात द्वारा अस्पताल आदि, आर्यमहाप्रजाकी संजीवनी समान अहिंसाप्रधान धर्मसंस्कृतिके विनाशक है / फिर भी जिनशासनकी संभवित अधोगति दीख पडती हो तो उसके निवारणके लिए, उसकी यथासंभव प्रभावनाके लिए उसमें स्वद्रव्यका दान करना पड़े तो औचित्यके रूपसे दिया जा सकता है / प्रश्न : (140) शुभ (सर्वसाधारण) या साधारण विभागमें आमदनी करनेके उपाय कौन-से हैं ? उत्तर : पहले इतना समझ लो कि, ये विभाग आमदानी करनेके लिये नहीं, लेकिन दानका लाभ उठानेके लिए रखे गये हैं / भूतकालमें इस बातका जिक्र पहेले किया गया है / इस विषयमें पुण्यात्मा, शक्तिशाली, विद्वान, संयमी साधुलोगको, अपनी व्याख्यान शक्ति द्वारा प्रेरणा देनी चाहिए / आज भी जैन संघ जैन श्रमणोंके प्रति बहुमान रखता है / उनकी इच्छा-आज्ञाका तुरंत पालन करता है / यदि वे उपधान, छ'रीपालित संघ, जिनमंदिरोंका निर्माण, प्रतिष्ठा-महोत्सव, नूतन तीर्थोके निर्माण आदिके साथ साथ, सबसे अधिक महत्त्व साधारण और सर्वसाधारण विभागोमें बड़े दान