Book Title: Deshi Shabdakosha Author(s): Dulahrajmuni Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 9
________________ जे लक्खणे ण सिद्धा ण पसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु । ण य गउणलक्खणासत्तिसंभवा ते इह णिबद्धा ॥ देस विसेसपसिद्धीइ भण्णमाणा अणंतया हुंति । तम्हा अणाइपाइअपयट्टभासाविसेसओ देसी ॥' प्राकृत के अध्ययन के लिए देशी शब्दों का अध्ययन बहुत आवश्यक है। उनके बिना प्राकृत भाषा संस्कृत आश्रित बन जाती है । इसी आधार पर कुछ विद्वानों ने प्राकृत को संस्कृत से अर्वाचीन बतलाया। प्राकृत का विशाल स्वरूप देशी शब्दों का भण्डार है । उनका सम्बन्ध प्राचीनतम जनभाषा से है। प्रस्तुत देशी शब्दकोश में कुछ शब्द कन्नड़ और तमिल के भी हैं, मराठी आदि भाषाओं के तो हैं ही। उत्तर और दक्षिण की सभी भाषाओं के शब्द आगम साहित्य में मिलते हैं । कुछ शब्द यूनान आदि विदेशी भाषाओं के भी संदृब्ध प्रस्तुत देशी शब्दकोश में आगम, नियुक्ति, भाष्य, चूणि और टीका आदि में प्रयुक्त देशी शब्दों का संकलन किया गया है। आगम के व्याख्याकारों ने स्थान-स्थान पर देशी शब्दों का प्रयोग किया है और वे किस अर्थ में देशी हैं, इसका उल्लेख भिन्न-भिन्न शब्दावलियों में किया है। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं अतिराउल इति देशीपदं स्वामीकुलमित्यर्थः । अविहाड–देशीभाषया बालकः । आइंति (अव्यय) देशभाषायाम् । आरनाल--कंजियं देसीभासाए आरनाल भण्णति । उअपोते-देशीपदत्वात् आकीर्णे। उंड-देशीवयणतो उंडं मुहं । उग्गह- इति जोणिदुवारस्स सामइकी संज्ञा । उग्घाडपोरिसि- समयभाषया पादोनप्रहरे। अमाघाय -अमारिरूढिशब्दत्वात् । प्रस्तुत ग्रन्थ में आचार्य हेमचन्द्र की देशी नाममाला का भी अविकल संकलन किया गया है। अंगविज्जा आदि अन्य स्रोतों से भी देशी शब्दों का संग्रहण किया है । इसके मूल में लगभग दस हजार से भी अधिक शब्द संगृहीत हैं । आगम संपादन के साथ शब्दकोश की जो योजना है, उसके अन्तर्गत तीन कोश पहले प्रकाशित हो चुके हैं १. आगम शब्दकोश २. एकार्थक कोश ३. निरुक्त कोश १. देशी नाममाला, आचार्य हेमचन्द्र, १३,४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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