________________
१६ दशवकालिकसूत्रम्
[अ०४ जो जीवे वि न याणाइ अजीवे वि न याणई। जीवाजीवे अयाणन्ती कह सो नाही उ संजमं? ॥१२॥ जो जीवे वि विर्याणाइ अजीवे वि वियोणई। जीवाजीवे वियाणन्तो सो हु नाही उ संजमं ॥१३॥ जया जीवमजीवे य दो वि एए वियाणई । तया गई बहुविहं सब-जीवाण जाणई ॥१४॥ जया गई बहुविहं सब-जीवाण जाणई । तया पुखं च पावं च बन्धं मोक्वं च जाणई ॥१५॥ जया पुणं च पावं च बन्ध मोक्खं च जाणई। . तया निविन्दए भोए जे दिवे जे य माणुसे ॥१६॥ जया निन्दिए भोए जे दिवे जे य माणसे । तया चयइ संभोगं सब्भिन्तर-बाहिरं ॥१७॥ जया चयइ संभोगं सब्भिन्तर-बाहिरं। तया मुण्डे भविताणं पहइए अणगारियं ॥१॥ जया मुण्डे भविताणं पवइए अणगारियं । तया संवरमुक्कट्रं धम्मं फासे अणुतरं ॥१९॥ जया संवरमुक्क, धम्म फासे अणुतरं। तया धुणइ कम्म-रयं अबोहि-कलसं कडं ॥२०॥ जया धुणइ कम्म-रयं अबोहि-कलसं कडं । तया सबत्तगं नाणं दंसणं चाभिगछई ॥२१॥
१णइ.
२ Bs य for उ.