Book Title: Dasveyaliya Sutta
Author(s): Ernst Leumann, Walther Schubrin
Publisher: Anandji Kalyanji Pedhi

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Page 29
________________ १८ दशवकालिकसूत्रम्. [अ०५-१ (पिण्डेसणा) ॥ पञ्चममध्ययनम् ॥ प्रथम उद्देशकः ॥ संपत्ते भिक्ख-काल म्मि असंभन्तो अमुछिओ। इमेण कम-जोगेण भन्न-पाणं गवेसए ॥१॥ से गामे वा नगरे वा गोयरग्ग-गओ मुणी। . चरे मन्दमणुब्बिग्गो अबक्खितेण चेयसा ॥२॥ पुरओ जुग-मायाए पेहमाणो महिं चरे। वज्जन्ती बीय-हरियाई पाणे य दग-मट्टियं ॥३॥ ओवायं विसमं खाणं विज्जलं परिवज्जए। संकमेण न गच्छज्जा विज्जमाणे परक्कमे ॥४॥ पवडन्ते व से तत्थ पक्खलन्ते व संजए। हिंसेज पाण-भूयाई तसे अदुव थावरे ॥५॥ तम्हा तेण न गच्छेज्जा संजए सु-समाहिए। सइ अनेण मग्गेण जयमेव परक्कमे ॥६॥ इङ्गालं छारियं रासिं तुस-रासिं च गोमयं । ससरक्वेहि पाएहिं संजओ तं नइक्कमे ॥७॥ न चरेज्ज वासे वासन्ते महियाए व पडन्तिए । महा-वाए व वायन्ते तिरिच्छ-संपाइमेसु वा ॥८॥ न चरेन वेस-सामन्ते बम्भचेर-वसाणएं। बम्भयारिस्म दन्तस्स होज्जा तत्थ विसोतिया ॥९॥ १ H and the Avachuri वशानयने ( for वशानुग: ).

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