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२८ . दशवकालिकसूत्रम् [अ०५-१-२ साहवो तो चियत्तेणं निमन्तेज्न जहक्कम, । जइ तत्थ केइ इछज्जा तेहिं सद्धिं तु भुञ्जए ॥५॥ अह कोई न इछज्जा तओ भुञ्जेज्ज एगओ। आलोए भायणे साहू जयं अपेरिसाडियं ॥ ९६ ॥ तित्तगं व कडुयं व कसायं अम्बिलं व महुरं लवणं वा। एयं लबमबटू-पउत्तं महु-घयं व भुञ्जेज्ज संजए ॥७॥ अरसं विरसं वा वि सूइयं वा असूइयं । । । ओल्लं वा जइ वा सुक्कं मन्थु-कुम्मास-भोयणं ॥ ९ ॥ उप्पन नाइहीलेज्जा अप्पं वा बहु फासुयं, मुहा-लई मुहा-जीवी भुञ्जेज्जा दोस-वज्जियं ॥ ९ ॥ दुल्लहा उ मुहा-दाई, मुहा-जीवी वि दुल्लहा, ॥ मुहा-दाई मुहा-जीवी दो वि गच्छन्ति सोग्गई ॥१०॥
॥ ति बेमि ॥
॥ पञ्चममध्ययनम् ॥ द्वितीय उद्देशकः॥
पडिग्गहं संलिहिताणं लेव-मायोए संजए। दुगन्ध वा सुगन्धं वा सबं भुञ्ज, न छड्डए ॥१॥ सेज्जा निसी हियाए समावनी य गोयरे। आयावयद्रा भोचाणं जइ तेण न संथरे॥२॥
१ B अप्परि०, F and Avach. ड्य. . २ हु. ३ 8 मायाय.
8 H and Avach. a