Book Title: Dashvaikalaik Nandi Uvavai
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 9
________________ - श्रीजैनसिद्धान्त-खाण्यायमाला कहं चरे कहं चिढे, कमाए कहं सए । कहं भुंजन्तो भासतो, पावकम्मं न बंधइ ॥ ७॥ . जयं चरे जयं चिट्टे, जयमासे अयं सए । जयं भुंजन्तो भासंतो, पाक्कम्मं न बंधइ ॥ ८॥ सबभूयप्पभूयस्त, सम्मं भूयाइ पासओ । पिहिआसक्स्स दंतस्स, पावकम्मं न बंधइ ॥९॥ पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठइ सबसंजए । अनाणी किं काही, किंवा नाही सेयपावगं ॥१०॥ सोदा जाणइ कल्लाणं, सोचा जाणइ पावगं। उभयं पि जाणइ सोचा, जं सेयं तं समायरे ।॥ ११ ॥ जो जीवे वि न याणइ, अजीवे वि न याणइ ! जीवाजीवे अयाणंतो, कहं सो नाहीइ संजमं ॥ १२ ॥ जो जीवे वियाणेइ, अजीवे वि बियाणइ । जीवानीवे वियाणतो, सो हु नाहीइ संजमं ॥ १३ ॥ जय जीक्मजीवे य, दोबि एए वियाणइ । तया गई बहुविहं, सवं जीवाण जाणइ ॥ १४ ॥ जया मई बहुविहं, सबजीकाण जाणइ । तथा पुण्णं च पावं च, बंधं मुक्खं च जाणइ ॥ १५ ॥ जया पुण्णं च पावं च, बंधं मुखच जाणइ। तया निदिए भोए, जे दिव्वे जे यमाणुसे ॥ १६ ॥ जया निविदए भोए, जे दिवे जे य माणुसे । तया चयइ संजोगं, सब्भिन्तरं बाहिरं ॥१७॥ जया चयइ संजोगं, सब्भितरं बाहिरं । तया मुंडे भवित्ताणं, पवइए अणगारियं ॥ १८ ॥ जया मुंडे भवित्ताण, पवइए अणगारियं । तया संवरमुकिलु, धम्मं फासे अणुत्तरं ॥ १९ ॥ जया संवरमुक्किट्ठ, धम्मं फासे अणुत्तरं । तया धुगइ कम्मरयं, अबोहिकलुसं कडं ॥ २० ॥ जया धुणइ कम्मरयं, अबोहिकलुसं कडं । तया सचत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छइ ॥२१॥ जया सव्वत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छइ । तया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली ॥ २२॥ जया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली । तया जोगे निरुभित्ता, सेलेसि पडिवाइ ॥ २३ ॥ जया जोगे निरुभित्ता, सेलेसिं पडिवजह । तया कम्मं खविचाणं, सिद्धिं गच्छइ नीरओ ॥ २४ ॥ जया कम्मं खवित्ताणं, सिद्धिं गच्छइ नीरओ। तया लोगमत्थथथो, सिद्धो हवइ सासओ ॥ २५ ॥ सुह सायगास समणस्स, सायाउलगस्स निगामसाइस्स । उच्छोलणापहोअस्स, दुल्लहा सुगई तारिसगस्स ॥ २६ ॥ तवोमुणपहाणस्स, उज्जुमइ खन्तिसंजमरयस्स । परीसहे जिणंतस्स, सुलहा सुगई तारिसगस्त ॥२७॥ पच्छा वि ते पयाया, खिष्पं गल्छंति अमरभवणाई । जेसि पिजो तवो संजमो अ, खंती अ वभचरं च ॥ २८ ॥ इयं छजीवणिज, सम्मदिही सथा जए। दुलहं लहित्तु सामण्णं, कम्पुणा न विराहिजासि ॥ २९ ॥ त्ति बेमि ॥ इअ छज्जीवणिआ णामं चउत्थं अज्झपणं समत्तं ॥ ४॥ MONDA

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