Book Title: Dashvaikalaik Nandi Uvavai
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 19
________________ (१८) श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला ४६ ॥ ४७ ॥ ४८ ॥ अप्परबे वा गहग्घे वा, कए वा बिक्कए वि वा । पडिअट्ठे समुप्पन्ने, अणवज्वं विआगरे ॥ तवासंजयं धीरो, आस एहि करेहि वा । सयंचिट्ठ वयाहित्ति, नेवं भासिज पण्णवं ॥ बहने इमे असाहू, लोए बुबंति साहुणो । न लवे असाहुं साहुति, साहु साहुति आलवे ॥ नाणदंसणसंपन्न, संजमे अ तवे रयं । एवं गुणसमाउत्तं, संजय साहुमालवे ॥ ४९ ॥ देवाणं मणुआणं च, तिरिआणं च बुग्गहे । अमुगाणं जओ होउ, मा वा होउत्ति नो वए ॥ ५० ॥ वाओ वुद्धं व सीउन्हं, खेमं धायं सिवं ति वा । मा वा होउ ति नो वए ॥ ५१ ॥ न देवदेव त्ति गिरं वइज्जा । वइज्ज वा बुट्ठ बलाहयति ॥ ५२ ॥ गुज्झाणुचरिअति अ । रिद्धिमंतं ति आलवे ॥ ५३ ॥ जा य परोवधायणी । कया णु हुअ एयाणि तहेव मेहं व नहं व मणवं समुच्छिए उन्नए वा पओए, अंतलिक्ख त्तिणं बूआ, रिद्धिमंतं नरं दिस्स, तहे सावजणुमोअणी गिरा, कोह लोह भय हास माणवो, न हासमाणो विगिरं वा ॥ ५४ ॥ सुवक्कसुद्धिं समुपेहि मुणी, गिरं च दुई परिवज्जए सया । मिअं अट्ठे अणुवीs भासए, सयाण मज्झे लहई पसंसणं ॥ ५५ ॥ भाइ दोसे अ गुणे अ जाणिआ, तीसेअ दुट्ठे परिवज्जए सया । छ संजए सामणिए या जए, बइज्ज बुद्धे हिअमाणुलोअं ॥ ५६ ॥ परिक्खभासी सुसमाहिइंदिए, चउकसायानगए अणिस्सिए । स निधुणे धुत्तमलं पुरेकडं, आराहए लोगमणि तहा परं ।। ५७ ।। त्ति बेमि ॥ इअ सुवक्कसुद्धीनामं सत्तमं अज्झयणं समत्तं ॥ ७ ॥

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